Bribery in CG: रिश्वत के ‘रखवाले’! खाकी पर दाग, सिस्टम पर सवाल… आखिर कब तक लेन-देन का अड्डा बने रहेंगे थाने? देखें रिपोर्ट
Bribery in CG: रायपुर। किसी भी राज्य में लॉ-एंड-ऑर्डर और सुरक्षा के लिए सीधे तौर राज्य की पुलिस जिम्मेदार होती है। 24 साल के पृथक प्रदेश के इतिहास में छत्तीसगढ़ पुलिस के सामने ढेरों चुनौतियों आई, उसका सामना किया, कई कामयाबियां पाईं। लेकिन, ये भी उतना बड़ा कड़वा सच है कि चंद पुलिस वालों की वजह से खाकी दागदार होती है। राज्य की पुलिसिंग पर सवाल उठते हैं। सरकार चाहे कांग्रेस की हो या बीजेपी की, हर बार दावे सख्त, सतर्क और संवेदनशील पुलिसिंग के किए जाते रहे। लेकिन, जमीन पर करप्शन तंत्र का हिस्सा बने, उसे चलाते, उसमें लिप्त चंद खाकीधारियों ने पुलिस की साख और सरकार की मंशा दोनों को जमकर पलीता लगाया है।
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चुस्त सुशासन और सख्ती सख्त एक्शन का दम भरती सरकारों के सारे मंसूबों पर कुछ वर्दीधारी पानी फेरते नजर आते हैं। हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ में सामने आई कुछ घटनाएं इसकी ताजा मिसाल हैं। रायपुर महिला थाना प्रभारी वेदवती दरियो को, शुक्रवार को ACB टीम ने FIR दर्ज करने के बदले 20 हजार रुपए रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया। आरोपी महिला TI ने पीड़ित महिला से उसके पति के खिलाफ केस दर्ज करने के लिए 50 हजार की घूस मांगी। पीड़ित महिला की शिकायत पर महिला TI को ट्रैप करने ACB के DSP रैंक के अफसर पहुंचे, शिकायतकर्ता महिला मूलत: गरियाबंद की रहवासी है जो रायपुर, लोधीपारा में रहकर लोगों के घरों में खाना बनाने का काम करती है।
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शनिवार को आरोपी महिला TI को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे 19 जुलाई तक न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया गया। रामानुजगंज में, बलरामपुर जिले के सनवाल थाना क्षेत्र में एक प्रधान आरक्षक का 50 हजार रुपये लेते ऑडियो वायरल हुआ है, जिसमें वो चैकिंग के दौरान JCB संचालक पर कार्रवाई के ऐवज में प्रधान आरक्षक 50 हजार रुपए रिश्वत मांगते सुनाई पड़े। प्रधान आरक्षक ने स्वीकारा कि वो कार्रवाई के लिए पैसों की डिमांड कर रहे थे और तो और प्रधान आरक्षक का दावा है कि ये सब कुछ थाना प्रभारी की जानकारी में है। अंबिकापुर में जब 2 अलग-अलग थानों में बाइक चोरी के 4 आरोपी गिरफ्तार किए गए तो उसमें से एक आरक्षक भी शामिल था। आरोपी आरक्षक को बर्खास्त कर गिरफ्तार कर लिया गया है।
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इन प्रकरणों के सामने आने पर विपक्ष सरकार को पूरी तरह से फेल बताता है तो सत्तापक्ष सफाई की मुद्रा में है, ऐसे प्रकरणों पर कठोर कार्रवाई का दावा कर रही है। ये तो बस चंद ताजा उदाहरण मात्र हैं, अगर ऐसे मामलों को जमा करें तो साल भर में दर्जनों ऐसे प्रकरण पुलिसिंग पर सवाल उठाते नजर आते हैं। कुल मिलाकर दावे चाहे जितने भी कर लें, लेकिन इस तरह के प्रकरणों से ना केवल खाकी दागदार और बदनाम होती है। बल्कि सरकार की चुस्त और क्लीन पुलिसिंग की मंशा पर भी पानी फिरता दिखता है। सबसे बड़ा और गंभीर सवाल ये कि क्या प्रशासन के, सरकारों के सारे प्रयासों पर करप्शन जिंदाबाद का खेल भारी है? क्या प्रोफेशनल और अकाउंटेबल पुलिसिंग जैसे दावे केवल कागजों में ही जिंदा बचे हैं?