जानें उस टैक्सी ड्राइवर की कहानी, जिसने क्वारंटीन सेंटर के लिए दान कर दिया अपना दो मंजिला अस्पताल – know the story of a taxi driver who donated his two storey hospital to the Quarantine Center | knowledge – News in Hindi

बहन की इलाज न मिलने से हुई मौत, बना डाला अस्पताल
शहीदुल अपने परिवार को पालने के लिए टैक्सी चलाते हैं. दरअसल, सीने में संक्रमण के बाद 2004 में सही इलाज नहीं मिल पाने के कारण शहीदुल की बहन मारुफा की मौत हो गई थी. इस सदमे से उबरने के बाद लस्कर ने संकल्प लिया कि वह इलाज की कमी के चलते किसी गरीब को मरने नहीं देंगे. उन्होंने करीब 12 साल तक दिनरात मेहनत की और पाई-पाई जोड़कर एक दोमंजिला अस्पताल बना डाला. इस अस्पताल को बनाने के लिए 12 साल लंबे संघर्ष के दौरान कुछ लोगों ने उनकी मदद की तो कइयों ने इसे मुंगेरी लाल के हसीन सपने बनाकर मजाक भी उडाया. हालांकि, इस दौरान उनकी पत्नी शमीमा उनके साथ खड़ी रहीं और संघर्ष में मिलकर काम किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में शहीदुल का जिक्र कर चुके हैं.
पत्नी के गहने और अपनी तीन टैक्सियां तक बेंच डालीं
लस्कर की पत्नी ने अस्पताल के लिए पूर्नी गांव में जमीन खरीदने के दौरान पैसे कम पड़े तो अपाने सारे गहने बेच दिए. आज जब शमीमा इलाज के बाद खुश होकर अपने घर लौटते गांव वालों को देखती हैं तो उन्हें गहने बिक जाने का अफसोस नहीं होता है. अस्पताल बनाने की कवायद में शहीदुल को अपनी तीन टैक्सियां भी बेचनी पडीं. शहीदुल के अस्तपताल में 8 डॉक्टर गरीबों का मुफ्त इलाज करते हैं. शहीदुल अस्पताल को चार मंजिला बनाने की योजना पर काम कर रहे थे. वो चाहते थे कि अब अस्पताला में आर्थिक रूप से मजबूत लोगों का मामूली फीस लेकर इलाज शुरू किया जाए. हालांकि, अब वह अपना अस्पताल दान कर चुके हैं. उनके अस्पताल में 40 से 50 बिस्तरों वाला क्वारंटीन सेंटर बन सकता है.
पीएम मोदी ‘मन की बात’ में कर चुके हैं लस्कर का जिक्र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने भी अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 50वें एपिसोड में शहीदुल का जिक्र किया था. शहीदुल को दिल्ली (Delhi) भी बुलाया गया था, लेकिन प्रधानमंत्री से उनकी मुलाकात नहीं हो पाई थी. शहीदुल ने मुख्यमंत्री राहत कोष (Cm relief Fund) में भी कोरोना वायरस से मुकाबले के लिए टैक्सी की कमाई में से 5,000 रुपये दान किए हैं. लस्कर के अस्पताल को क्वारंटीन सेंटर बनाने से पहले स्वास्थ्य अधिकारियों (Health Officers) ने वहां की सुविधाओं का मुआयना किया था. पूरी तरह से तसल्ली होने पर अधिकारियों ने उनके अस्पताल को क्वारंटीन सेंटर बनाने की मंजूरी दे दी. शहीदुल और उनका परिवार अस्पताल के ही एक कमरे में रहते हैं.

‘शहीदुल ने बहन की याद में अस्पताल का नाम मारुफा मेमोरियल हॉस्पिटल रखा. (फोटो साभार: Bangla Latestly)
बहन की याद में नाम रखा ‘मारुफा मेमोरियल हॉस्पिटल’
शहीदुल ने वर्ष 1991 में 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद एक स्थानीय कॉलेज में आगे की पढ़ाई के लिए एडमिशन लिया था, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते पढ़ाई बीच में ही रोककर 1993 से टैक्सी चलाना शुरू कर दिया. 2004 में बहन के बीमार होने के बाद वे उसे लेकर हर अस्पताल गए, लेकिन कहीं पैसों की कमी तो कहीं इलाज की कमी के कारण मारुफा को बचा नहीं सके. उन्होंने अपनी बहन की याद में बनवाए दोमंजिला अस्पताल का नाम भी मारुफा मेमोरियल हॉस्पिटल रखा है. शहीदुल कहते हैं, ‘मुझे लगा कि ऐसा कुछ करना चाहिए ताकि कोई व्यक्ति इलाज के अभाव में असमय ही मौत के मुंह में न समाए. मेरी तरह किसी और इलाज की कमी में अपनों को खोने की तकलीफ सहने की जरूरत न हो.’ पूर्नी गांव के सबसे पास का अस्पताल भी 11 किमी दूर है. वहां तक पहुंचना भी काफी मुश्किल था. गांव में अस्पताल बनने के बाद पूर्नी के साथ ही आसपास के दर्जनों गांवों को राहत हो गई.’
जरूरत होने पर सरकार अस्पताल का करेगी इस्तेमाल
शहीदुल के अस्पताल को क्वारंटीन सेंटर बनाने के लिए दान करने के फैसले से गांव के लोग बहुत खुश हैं. वहीं, जिला प्रशासन (Administration) भी उनकी काफी तारीफ कर रहा है. प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि उनके अस्पताल में साफ-सफाई बेहतर है. वहां 40 से 50 बिस्तर का क्वारंटीन सेंटर (Quarantine Center) आसानी से बन सकता है. जरूरत होने पर सरकार इसका इस्तेमाल करेगी और वहां दूसरी जरूरी सुविधाएं जुटा ली जाएंगी. प्रशासन ने शहीदुल और उनके परिवार के रहने का भी वैकल्पिक इंतजाम कर दिया है. शहीदुल का सपना है कि इस अस्पताल में तमाम आधुनिक सुविधाएं हों ताकि किसी को इलाज के लिए बाहर नहीं जाना पड़े.
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