#SarkarOnIBC24 : चुनावी लड़ाई.. हिंदू Vs ईसाई पर आई! केशकाल विधायक ने पूरा किया चैलेंज, क्या अब इस्तीफा देंगें संतराम नेताम?
प्रकाश नाग/केशकाल : 2023 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की कुछ सीटों पर हिंदुत्व और धर्मांतरण के मुद्दे ने गजब का अहम चुनावी मुद्दा है। ऐसे में कांकेर जहां इसको लेकर तनाव रहा है। वहां बीजेपी के नेता को चैलेंज मिला और उसने कथा करवाकर चैलेंज पूरा किया। इससे इस इलाके में धर्मांतरण में जनमत को प्रभावित करने का जो पावर है..वो दिखता है। दूसरी ओर बघेल के विरोधी जिस तरह खुलकर उसके खिलाफ आ गए हैं। उसने भी दूसरे दौर को गर्म कर दिया है।
दरअसल, IBC24 पर हुई फोनो डिबेट में पूर्व कांग्रेसी विधायक संतराम नेताम ने, पूर्व IAS और केशकाल से मौजूदा बीजेपी, विधायक नीलकंठ टेकाम पर, उनकी पत्नी पर गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा कि विधायक जी की पत्नी खुद कन्वर्ट हो चुकी हैं। ईसाई धर्म का प्रचार करती हैं। पूर्व विधायक संतराम ने इसी डिबेट में, नीलकंठ टेकाम को चैलेंज दिया कि वो 25 अप्रैल को केशकाल बस स्टैंड पर, सपरिवार सत्यनारायण की कथा कराएं तो मैं राजनीति से सन्यास ले लूंगा। गुरूवार को नीलकंठ टेकाम ने उसी चैलेंज को निभाते हुए सपत्नीक सत्यनारायण की पूजा की। पूजा खत्म कर नीलकंठ टेकाम ने परिवारजनों और समर्थकों के साथ अब संतराम नेताम को अपनी बात पूरी करते हुए राजनीति से सन्यास लेने का चैलेंज दिया है। इधर, पूरा दिन पूर्व विधायक संतराम नेताम की प्रतिक्रिया का इंतजार किया जाता रहा। वहीं, कांग्रेस पार्टी इस पूरे मसले पर पूर्व विधायक का बचाव करती, बीजेपी पर हमलावर नजर आई।
Read More : SarkarOnIBC24: चुनावी लड़ाई..हिंदू Vs ईसाई पर आई! सियासी युद्ध में हुई सत्यनारायण कथा की एंट्री!
दरअसल, जिस वक्त धर्मांतरण का मुद्दा चहुंओर चर्चा में था, उसी दौर में, IBC24 ने आरोप लगाने वाले और जिनपर आरोप हैं उन्हें आमने-सामने लाकर, 9 मार्च 2024 को एक फोनों डिबेट का मंच तैयार किया। वहां भी कांग्रेस नेता संतराम नेताम ने बीजेपी विधायक नीलकंठ टेकाम की पत्नी पर धर्मांतरित होकर ईसाई धर्म का प्रचार करने के गंभीर आरोप लगाये थे। नीलकंठ टेकाम ने इसका खुलकर खंडन किया, अब नीलकंठ टेकाम का दावा है कि जिस चैलेंज के तहत वो सपरिवार सत्यनारायण पूजन कर दिखा चुके हैं, उसी के तहत कांग्रेस नेता, पूर्व विधायक अपनी खुद की बात भी निभाएं। राजनीति छोड़कर दिखाएं। सवाल ये क्या आरोप लगाने वाले और चैलेंज करने वाले नेता को ये दांव उल्टा पड़ गया है। उससे भी बड़ा सवाल ये कि क्या वाकई ऐसे चैलेंज को, उसे निभाने या उससे किनारा करने को जनता सीरियसली लेती है, क्या इससे वाकई जनसरोकार जुड़ा है ?