सभी जगह लड़कों को उपदेशों से क्यूँ हटा दिया जाता है ? – कवि हरीश शर्मा

क्यूँ हर बच्ची को ये महसूस कराया जाता है कि लड़के उनसे अधिक सुरक्षित हैं।
देश बदल रहा है के नारे तो लग रहे , पर ये समाज सुधारक बोर्ड और विज्ञापन , टैग लाइन क्यूँ नहीं बदलते ?
लक्ष्मणगढ़ – (सीकर) बेटा पढ़ाओ – संस्कार सिखाओ अभियान पर अभियान के आयोजनकर्ता कवि लेखक हरीश शर्मा ने समाज व देश के सामने गहरी सच्चाई पेश करते हुए कहा कि सभी भारतीयों शहरों में जहाँ देखों वहाँ बोर्ड लगे पड़े हैं ,” बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ ” . बेटी देश का अभिमान ” , ” बेटी किसी से कम नहीं. ” सोचता हूँ , बेटे को पढ़ाना ज़रूरी नहीं ? बेटा है तो क्या नालायक भी चलेगा ? कमियां बेटों में ही है तभी तो , बेटियों को इतनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
ये बोर्ड क्यूँ नही लगाए जाते …. ‘ बेटे को बुरी संगत से बचाओ” , ” बेटे को अच्छे संस्कार सिखाओ ” , ” बेटे को स्त्री का सम्मान करना सिखाओ वरना दो थप्पड़ लगाओ “, ” बेटे पर कड़ी नज़र रखो ” , ” बेटे से सवाल पूछो ‘ ..??.
हर जगह लड़कों को उपदेशों से क्यूँ हटा दिया जाता है ? क्यूँ हर बच्ची को ये महसूस कराया जाता है कि लड़के उनसे अधिक सुरक्षित हैं । क्यूँ बेटियों को ही इंफेरिओरिटी काम्प्लेक्स में जकड़े होने का आभास दिलाया जाता है ?
हर लड़की के पिता को ही क्यूँ ये उपदेश दिया जाता है की बेटी को पढ़ाओ ,बड़ा करो , सिखाओ उसकी प्रतिभा को आगे आने दो ?
क्या ये सब लड़कों के पालकों पे लागू नहीं ?
आज तक मैंने एक भी बोर्ड , विज्ञापन या किसी अमिताभ बच्चन या अक्षय कुमार को ये कहते नही सुना कि लड़कों को तमीज़ सिखाओ , सुसंस्कृत करो, उसकी दिनचर्या पर नज़र रखो , महिलाओं का सम्मान करना सिखाओ , सवाल पूछो, क्यूँ ?
बेटे के लेट घर आने पर दरवाज़े पर ही रोक कर दस सवाल क्यूँ नहीं किये जाते ? क्यूँ नही उसी समय उसके दोस्तों के पेरेंट्स को फ़ोन कर के पूछताछ की जाती की ये लोग कहाँ जाते हैं, क्या करते हैं ?
देश बदल रहा है के नारे तो लग रहे , पर ये समाज सुधारक बोर्ड और विज्ञापन , टैग लाइन क्यूँ नहीं बदलते ?
क्यूँ नही पुलिस वाले आधी रात को बाइक और कार से जाते लड़को को रोक कर पूछताछ करते कि इस समय सड़क पर क्या कर रहे हो ?
और क्यूँ नही कोई पिता पुलिस से ये निवेदन करता कि मेरा बेटा देर रात तक पता नही किन किन दोस्तों के साथ घूमता रहता है , क्या करता है ,ज़रा नज़र रखने की कृपा करें ! जिस दिन बेटा सुधर गया, गली मोहल्ले शहर की किसी भी बेटी को कोई डर नही रहेगा। समाज मे एक स्वस्थ वातावरण बनेगा और बेटियां अपने आप सुरक्षित हो जाएंगी , किसी बोर्ड या विज्ञापन की ज़रूरत नहीं रहेगी ।
देश समाज के सभी बड़े बुजुर्ग,शिक्षाविद अधिकारीगण,स्कूल प्रबंधक व बच्चों को जन्म देने वाले जन्मदात्रीयो से निवेदन करना चाहूंगा कि लड़कियों से ज़्यादा ध्यान , लड़कों पर दिया जाए तो सभी सामाजिक कुरीतियों का अंत हो जाएगा।