छत्तीसगढ़दुर्ग भिलाई

गाँधी और हिंदी है देश की पहचान-बीएसपी सीईओ दासगुप्ता

 

संयंत्र की राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठक समारोहपूर्वक संपन्न

भिलाई। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती महोत्सव की कड़ी में अनिर्बान दासगुप्ता, मुख्य कार्यपालक अधिकारी एवं अध्यक्ष, राजभाषा कार्यान्वयन समिति, भिलाई इस्पात संयंत्र के मुख्य आतिथ्य में राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठक  मानव संसाधन विकास केन्द्र, भूतल सभागार में संपन्न हुई। इस बैठक में अतिथि वक्ता के रूप में छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध इतिहासकार एवं साहित्यकार आचार्य रमेंद्रनाथ मिश्र, अध्यक्ष, बख्शी सृजन पीठ, भिलाई ने अपने उद्बोधन से सदन का मान बढ़ाया।

इस गरिमामय कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्रगान से हुआ तत्पश्चात अभ्यागत अतिथियों द्वारा गाँंधीजी के चित्र पर माल्यार्पण एवं मंगलदीप प्रज्ज्वलन किया गया। इस बैठक में संयंत्र के समस्त कार्यपालक निदेशकगण एवं सभी विभागों के मुखिया समिति के माननीय सदस्य के रूप में उपस्थित थे। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के करकमलों द्वारा आचार्य रमेंद्रनाथ मिश्र, अध्यक्ष, बख्शी सृजन पीठ, भिलाई को शाल, श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह से सम्मानित किया गया।

हिंदी एवं गाँधी के युग्म आयोजन में एक अभिनव प्रदर्शनी भी लगाईं गई थी जिसमें गांँधीजी द्वारा निकाले गए समाचार पत्र हरिजन, यंग इंडिया, नवजीवन की विशेष घटनाओं पर प्रकाशित मूल प्रतियाँ लगाईं गई थी। इसमें आजादी के पूर्व की प्रमुख विदेशी पत्रिका जिनके मुख पृष्ठ पर गाँधीजी का कवर पेज है एवं अन्य प्रमाणिक दस्तावेज की प्रदर्शनी भी थी जो मुख्य आकर्षण थे। इस नयनाभिराम प्रदर्शनी को साकारस्वरूप देने में आशीष कुमार दास, प्रबंधक, एस.एम.एस.1 एवं  सी. अशोक कुमार, खदान मुख्यालय का विशेष योगदान रहा। इसके अलावा राजभाषा विभाग द्वारा एकल प्रयोग प्लास्टिक से संबंधित प्रतिबंधित एवं स्वीकृत वस्तुओं एवं गांँधीजी के हिंदी पर दिए गए उद्बोधनों के प्रेरक पोस्टर लगाए गए थे, जिसकी सभी अतिथियों ने मुक्त कंठ से सराहना की।

हिंदी के इस रसमयी आयोजन में वाह-वाह क्या बात है के मंच के विजेता संयंत्रकर्मी कवि किशोर तिवारी, वरिष्ठ तकनीशियन. मार्स-1 ने भारतेंदु एवं गाँधी पर हिंदी के विचार को जोड़ते हुए सुमधुर कविता पाठ किया, जिसे सुनकर सभी मंत्रमुग्ध हो गए।

मुख्य अतिथि इस अवसर पर संबोधितकरते हुए कहा कि गाँधी और हिंदी है देश की पहचान है। राजभाषा हिंदी के प्रति बापू का अनुराग नि:संदेह अनुकरणीय है। एक गुजराती व्यक्ति इंग्लेंड में बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त कर जब देश को वर्षों की दासता से आजाद करने का सपना देखता है, तो वो सपने को पूरा करने के लिए पूरे देश को कैसे एकाकार किया जाए? यह प्रश्न उसके मन में कौंधता है। अंतत: वह राष्ट्रहित के लिए अपनी भाषा को दरकिनार करते हुए जन-जन तक अपनी बात पहुँचाने के लिए हिंदी को ही प्राथमिकता देता है। गाँधी जी ने हिंदी में देश की आजादी का स्वरूप देख लिया था। वे हमेशा कहते थे कि जब तक भारत की राष्ट्रभाषा अंग्रेजी बनी रहेगी तब तक भारत गुलाम है।

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