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मान्यता प्राप्त पत्रकार होने का मतलब यह नहीं है कि आपके पास कानून हाथ में लेने का लाइसेंस है_सुप्रीम कोर्ट

मान्यता प्राप्त पत्रकार होने का मतलब यह नहीं है कि आपके पास कानून हाथ में लेने का लाइसेंस है: सुप्रीम कोर्ट

देश की सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है कि आप पत्रकार हैं इसका मतलब यह नहीं है कि आपके पास कानून हाथ में लेने का लाइसेंस है

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध एक मामले की सुनवाई करते हुए देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि “पत्रकार या रिपोर्टर होने का मतलब यह नहीं है कि आपके पास कानून अपने हाथ में लेने का लाइसेंस है” सुप्रीम कोर्ट के द्वारा यह टिप्पणी एक पत्रकार की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करने के दौरान कही गई है .

क्या है मामला
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लाइव ला के मुताबिक मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक पत्रकार को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था इस आदेश के खिलाफ पत्रकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख दिया था जिसके सुनवाई के दौरान माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा यह टिप्पणी की गई।

मामला विस्तार से मामला यह है
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कि जिस पत्रकार को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के द्वारा अग्रिम जमानत देने से इंकार किया गया था वह पत्रकार एक नवजात बच्चे की अवैध बिक्री और खरीद से जुड़े रैकेट का पर्दाफाश करने की कोशिश में लगा हुआ था लेकिन बाद में उसी पत्रकार के ऊपर खबर दबाने के लिए रिश्वत मांगने का आरोप लगा जिसके बाद पत्रकार ने कहा कि वह एक मान्यता प्राप्त संवाददाता है। उसने 26 जुलाई 2021 को दैनिक भास्कर में एक न्यूज़ पब्लिश की थी जिसमें नवजात बच्चे की अवैध बिक्री से जुड़े एक रैकेट का पर्दाफाश किया गया था और जवाबी कार्यवाही के रूप में जो बच्चों की खरीद बिक्री वाला रहकर था उसमें एक आरोपी को गिरफ्तार किया गया था।

आगे क्या हुआ?
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माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पहले याचिकाकर्ता और दूसरे पत्रकारों को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया था हालांकि बुधवार को न्यायमूर्ति एस ए बोपन्ना और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेष की डिवीजन बेंच के द्वारा कहा गया कि याचिकाकर्ता अब अंतरिम सुरक्षा का हकदार नहीं है याचिकाकर्ता दूसरे मामलों में भी शामिल है इसके अलावा राज्य के वकील के अनुसार याचिकाकर्ताओं के खिलाफ जांच पूरी हो चुकी है ऐसे में क्या याचिकाकर्ता को हिरासत में लेने की आवश्यकता है इस पर जांच अधिकारी को विचार करना है।

याचिका कर्ता के वकील का तर्क
मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की वकील के द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में यह पक्ष रखा गया कि आरोपों के अनुसार फिरौती 5000000 रुपए की मांगी गई थी और भुगतान की रकम केवल ₹50000 थी यह शिकायतकर्ता की तरफ FIR एफ आई आर में दिया गया अविश्वसनीय बयान है इस पर न्यायमूर्ति बोपन्ना ने कहा कि कुछ भी विश्वसनीय अविश्वसनीय नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
आपत्तिकर्ता ने हाईकोर्ट में पत्रकारों और अन्य आवेदकों की याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि वे पत्रकार के रूप में दायित्व नहीं निभा रहे थे बल्कि लोगों को ब्लैकमेल करने का रैकेट चला रहे थे यह जो लाइन आप पढ़ रहे हैं यह पत्रकारों के खिलाफ आरोप में कहा गया था ।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि

एमपी हाईकोर्ट ने कहा की “यह स्पष्ट है कि आवेदक के खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं वह एक पत्रकार या एक समाचार पत्र के लिए मान्यता प्राप्त रिपोर्टर के रूप में आवेदक के कर्तव्यों के निर्वहन से संबंधित नहीं है यदि किसी पेशे की आड़ में कोई परोक्ष कार्य किया जाता है तो उसे सुरक्षा नहीं दी जा सकती।”

ब्लैकमेल करने वालों के ऊपर कड़ा प्रहार
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यहां माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा जो टिप्पणी की गई है वह उन लोगों के ऊपर कड़ा प्रहार करती है जो पत्रकारिता की आड़ में पत्रकारिता का धौंस दिखाकर लोगों को ब्लैकमेल करने और अपनी किसी भी गैर कानूनी उद्देश्य की पूर्ति करने वसूली करने के लिए उपयोग करते हैं आज के समय में ऐसे तमाम लोग पत्रकारिता या मान्यता प्राप्त पत्रकारिता का चोला पहनकर गैरकानूनी कृतियों में लगे हुए हैं ऐसे कई मामले सामने आते हैं तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी ऐसी स्थिति में एक बहुत ही महत्वपूर्ण टिप्पणी साबित होगी।

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