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आज नवरात्र के तीसरे दिन होगी माँ चंद्रघँटा की उपासना

आज नवरात्र के तीसरे दिन होगी माँ चंद्रघँटा की उपासना

कवर्धा-पण्डित देव दत्त शर्मा
सहसपुर लोहारा

सबका संदेश न्यूज़ छत्तीसगढ़ कवर्धा- आज यानी 1 अक्टूबर मंगलवार को नवरात्र की तृतीया तिथि पर माता चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना की जाएगी। यह शक्ति माता का शिवदूती स्वरूप है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। माता चंद्रघंटा शक्ति माता का शिवदूती स्वरूप है।
तृतीय देवी चंद्रघण्टा की उतपत्ति !
हिन्दुस्तान के धरातल पर युगों से परम शक्ति ईश्वर के दर्शन की लालसा चली आ रही है। यहां समृद्ध परम्पराएं इस बात की गवाह हैं, कि यहाँ मानवता व धर्म की रक्षा हेतु ईश्वरीय शक्ति का किसी न किसी रूप में अवतार होता रहता है। हो भी क्यों न ? क्योंकि धरती में सुख समृद्धि बिना देवी-देंवताओं की कृपा के नहीं हो सकती है। कुटिल, दुष्ट, भयंकर राक्षसी प्रवृत्ति संसार में व्याप्त होकर धर्म व मानवता को हानि पहुंचाने हेतु सदैव तत्पर होने लगती है। दैत्यों के संहार,अनीति व अनाचार को हटाने के लिए ही माँ दुर्गा नव रूपों में प्रकट हुई हैं। जिसमें माँ दुर्गा के तृतीय मूर्ति को चंद्रघण्टा के नाम से जाना जाता है। माँ श्रद्धालु भक्तों की भय पीड़ा व दु:खों को मिटाने वाली हैं। भक्त जनों के मनोरथ को पूर्ण करने वाली हैं। देवी के इस रूप की उत्पत्ति नवरात्रि के तीसरे दिन होती है। यह रूप सभी प्रकार की अनूठी वस्तुओं को देने वाला तथा कई प्रकार की विचित्र दिव्य ध्वनियों को प्रसारित व नियंत्रित करने वाला होता है। इनकी कृपा से व्यक्ति की घ्राण शक्ति और दिव्य होती है। वह कई तरह की खुशबुओं का एक साथ आनन्द लेने में सक्ष्म हो जाता है। माँ दैत्यों का वध करके देव, दनुज, मनुजों के हितों की रक्षा करने वाली हैं। जिनके घण्टा में आह्ल्लादकारी चंद्रमा स्थिति हो उन्हें चन्द्रघण्टा कहा जाता है। अर्थात् जिनके माथे पर अद्र्धचंद्र शोभित हो रहा है। जिनकी कांति सुवर्ण रंग की है ऐसी नव दुर्गा के इस तृतीय प्रतिमा को चन्द्रघण्टा के नाम से ख्याति प्राप्त हुई हैं। यह दैत्यों का संहार भयानक घण्टे की नाद से करती है। यह माता दस भुजा धारी हैं । जिनके दाहिने हाथ में ऊपर से पद्म, वाण, धनुष, माला आदि शोभित हो रहे हैं । जिनके बायें हाथ में त्रिशूल, गदा, तलवार, कमण्डल तथा युद्ध की मुद्रा शोभित हो रही है। माता सिंह में सवार होकर जगत के कल्याण हेतु दुष्ट दैत्यों को मारती हैं। माँ का यह रूप शत्रुओं को मारने हेतु सदैव तत्पर रहता है।
चंद्रघण्टा की पूजा का विधान

 

माँ चंद्रघण्टा श्री माँ दुर्गा का तृतीय रूप है, जिनकी पूजा आराधना नवरात्रि के तीसरे दिन करने का विधान होता होता है। अत: माँ चन्द्रघण्टा की पूजा शास्त्रीय विधान को अपनाते हुए करना चाहिए। शारीरिक शुद्धता के साथ ही मन की पवित्रता का भी ध्यान रखना चाहिए। इस दिन माता की पूजा विविध प्रकार के सुगन्धित पुष्पों तथा विविध प्रकार के नैवेद्यों व इत्रों से करने का विधान होता है। जिससे साधक को वांछित फलों की प्राप्ति होती है। शरीर में उत्पन्न पीड़ाओं का अंत होता है। पूजा व क्षमा प्रार्थना के बाद माँ को प्रणाम करते हुए पूजा व आराधना को माता को अर्पण कर देना चाहिए।
माँ चंद्रघण्टा की कथा
माँ चन्द्रघण्टा असुरों के विनाश हेतु माँ दुर्गा के तृतीय रूप में अवतरित होती है। जो भयंकर दैत्य सेनाओं का संहार करके देवताओं को उनका भाग दिलाती है। भक्तों को वांछित फल दिलाने वाली हैं। आप सम्पूर्ण जगत की पीड़ा का नाश करने वाली हैं। जिससे समस्त शात्रों का ज्ञान होता है, वह मेधा शक्ति आप ही हैं। माँ दुर्गा – भव सागर से उतारने वाली भी आप ही हैं । आपका मुख मंद मुस्कान से सुशोभित, निर्मल, पूर्ण चन्द्रमा के बिम्ब का अनुकरण करने वाला और उत्तम सुवर्ण की मनोहर कान्ति से कमनीय है, हे देवि ! आप प्रसन्न हों। परमात्मस्वरूपा आपके प्रसन्न होने पर जगत् का अभ्युदय होता है ।
माँ चंद्रघण्टा का मंत्र
माँ चंद्रघण्टा के विविध मंत्रों को कई संदर्भों में प्राप्त किया जा सकता है। माँ की स्तुति के अनेक मंत्र दुर्गा सप्तशती के मानक ग्रंथ में है। उनके रूप लावण्य सहित उनकी प्रतिमा का वर्णन व उनके मंत्रों का वर्णन यथा स्थान प्राप्त होता रहता है। माता चंद्रघण्टा की पूजा विधि-विधान व श्रद्धा भाव से करना चाहिए।
देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

माँ चंद्रघँटा माहात्म्य
माँ चंद्रघण्टा के महात्म्य को दुर्गा सप्तशती में कई स्थानों पर वर्णित किया गया है। माँ की कांति स्वर्णिम है तथा सिंह के ऊपर सवार होती हैं। माँ प्रचण्ड भुजदण्डों वाले दैत्यों का घमंड चूर करने वाली देवि तुम्हारी जय हो! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो, अर्थात् माँ दुर्गा के तृतीय रूप चंद्रघण्टा को बारंबार प्रणाम है। कहने का अभिप्राय है कि माता चन्द्रघण्टा जो कि माँ दुर्गा का ही रूप है। जिसके व्रत अनुष्ठान व पूजन से वांछित फलों की प्राप्त होती है। रोग, पीड़ाओं सहित कई तरह के दर्द दूर होते हैं। अत: यत्न पूर्वक नवरात्रि के पावन पर्व पर माता की अर्चना करनी चाहिए।

ध्यान मंत्र

पिण्डजप्रवरारूपा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्रयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ।।
अर्थात- मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दस हाथों में शस्त्र आदि हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए तैयार रहने जैसी है। इनके घंटे की भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव, दैत्य आदि सभी डरते हैं।
महत्व असुरों के साथ युद्ध में देवी चंद्रघंटा ने घंटे की टंकार से असुरों का नाश कर दिया था। नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन किया जाता है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वत: प्राप्त हो जाती है तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

 

 

 

 

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