छत्तीसगढ़

आश्चर्य कि आनंद सागर मैं रह कर भी हम दुखी :-स्वामी सदानंद सरस्वती जी

*आश्चर्य कि आनंद सागर मैं रह कर भी हम दुखी :-स्वामी सदानंद सरस्वती जी*

आत्मा आनंद स्वरूप है वह व्यापक है व्यापक होने के कारण सारे संसार में वह व्याप्त है इस तरह विचार करें तो यह स्पष्टत: सिद्ध होता है कि हम आनंद के समुद्र में डूब रहे हैं पर फिर भी हम स्वयं को दुखी समझते हैं यह कितने आश्चर्य की बात है उक्त उद्गार ज्योतिष पीठाधीश्वर एवं द्वारका द्वारका पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के प्रमुख शिष्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज ने आज परमहंसी गंगा आश्रम के धर्म मंच पर अपने चातुर्मास प्रवचन में गीता पर व्याख्यान करते हुए व्यक्त किए उन्होंने आगे बताया कि आश्चर्य होता है कि आनंद स्वरूप होने के बाद भी अविधा की उपाधि से यह जीव स्वयं को पग पग पर दुखी समझता है जबकि उसमें दुख का लेश भी नहीं है पूज्य स्वामी जी ने आगे कहा कि कबीर दास जी भी इसलिए कहते हैं कि “पानी में मीन प्यासी मोही रहि – रहि आवत हांसी” आनंद रूपी जल में रहने वाली मछली दुख रूपी प्यास से पीड़ित है यह देख हंसी ही आती है और कुछ कहते नहीं बनता है उन्होंने अनेक उदाहरण देते हुए लोगों को हस मार्ग की संरचना से समझने का प्रयास किया आनंद तुम्हारे भीतर है बाहर तुम कितना ही भटकलो दुखी ही रहोगे आनंद पाने के लिए किसी भी व्यक्ति को विषयों से अपने इस चित्र को हटाकर आत्मा के सच्चे स्वरूप में केंद्रित करने की आवश्यकता है यदि कोई कहे कि मैंने ब्रह्म को जान लिया है मैं ब्रह्म ज्ञानी हो गया हूं तो समझो कि उसने अभी नहीं जाना क्योंकि जान गया होता तो उसमें अदैव्त की प्रतिष्ठा हो जाती अदैव्त की प्रतिष्ठा हो जाने पर वह किस दूसरे से कहेगा कि उसने जान लिया ब्रह्म ज्ञान शब्द का नहीं अनुभूति का विषय है वही अनुभूति हमारा आनंद वाले स्वरूप का हमें अनुभव करा देती है |

*ईश्वर सदा रहता है अद्यतन*

ब्रह्म विद्यानंद ब्रह्मचारी जी ने बताया कि द्रव्य काल सापक्ष है कांच की अपेक्षा से वे नए और पुराने होते रहते हैं पर ईश्वर कभी भी पुराना नहीं होता वह नित्य नवीन देता है क्योंकि वह काल से भी परे है उन्होंने आगे बताया कि इसीलिए मुक्तावली के रचयिता ने भगवान को ईश्वर को नित्य नूतन कह कर संबोधित किया है |

*गुरुओं का हर कार्य शिक्षकों की शिक्षा के लिए*

स्वामी श्री 1008 अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि हर क्रिया हर एक कलाप आदर्श होता है सोच कर कि इससे हमारी शिक्षकों को शिक्षा मिलेगी ब्रह्मा जी भी गुरुवर ब्रह्मा में गुरु हैं अतः उनका भी हर कार्य व्यवहार शिष्य शिक्षार्थ ही है सरस्वती पर मोहित होना और असुरों से डर कर भागना भी उनकी शिक्षाएं ही है सरस्वती पर मोहित होकर भी यह दिखाते हैं कि जो अपनी ही जन्म आई कन्या पर आकृष्ट होगा उसका तेज भी नष्ट होगा और उसकी लोकनिंदा भी होगी असुरों से भागकर बताते हैं कि समलैंगिक संबंध उचित संबंध नहीं है यही गुरूद्वारा आचार शास्त्र की स्थापना है

कार्यक्रम में सर्वप्रथम पादुकोण का पूजन डॉ नितिन शर्मा एवं डॉक्टर चौबे जी द्वारा संपन्न हुआ स्वागत के वचन ऋतुराज पंडित ने किया भजन की प्रस्तुति नारायण झारिया ने की संचालन पंडित श्री राजकुमार शास्त्री ने एवं संयोजन पंडित सुंदरलाल पांडे ने किया |

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