छत्तीसगढ़धर्म

स्वामिश्री: १००८ अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती द्वारा आज आषाढ़ कृष्ण द्वितीया दिन गुरुवार तारीख १६ जून २०२२ ईसवीय को अपराह्न १ बजे श्रीविद्यामठ केदारघाट वाराणसी में आयोजित

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स्वामिश्री: १००८ अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती द्वारा आज आषाढ़ कृष्ण द्वितीया दिन गुरुवार तारीख १६ जून २०२२ ईसवीय को अपराह्न १ बजे श्रीविद्यामठ केदारघाट वाराणसी में आयोजित

 

*प्रकट शिवलिंग का अपूजित रहना महापाप*
शास्त्रों में अनेक स्थानों पर यह कहा गया है कि देवता सामने हों तो उन्हें पूजना चाहिये। न पूजने पर महापाप लगता है। लिङ्गपुराण का एक वचन देखिए – *वरं प्राणपरित्याग: शिरसो वापि कर्तनम् । न तु असम्पूज्य भुंजीत शिवलिंगे महेश्वरम् ।* तात्पर्य यही है कि किसी भी दशा में शिवलिङ्ग अपूजित नहीं रहना चाहिये।

सौ करोड़ से अधिक संख्या वाले सनातनधर्मियों के देश में `ज्ञानवापी सर्वे’ के दौरान प्रकाश में आये भगवान् श्री आदि विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग का आज के दिन तक लगभग एक महीने से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी अपूजित रहना गहरे दु:ख का ही नहीं, अपितु शास्त्रों के अनुसार दोष-पाप का भी विषय है।

*पूज्यपाद शंकराचार्य जी ने सौ करोड़ से अधिक सनातनियों को पाप में पड़ने से बचाया।*
समस्त सनातनधर्मियों को इसी दोष-पाप से बचाने और कृपा कर प्रकट हुए भगवान् शिव का आशीर्वाद सबको प्राप्त कराने का अपना अभिभावकदायित्व समझकर ही पूज्यपाद ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारकाशारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज ने हम अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती को प्रकट प्रभु की पूजा को काशी भेजा था।
हमारे द्वारा की जाने वाली पूजा सौ करोड़ सनातनधर्मियों की ओर से की जाने वाली प्रतीक/प्रतिनिधि पूजा होती। पर हमें ऐसा करने से वाराणसी के जिला प्रशासन द्वारा बलपूर्वक रोक दिया गया। स्पष्ट है कि प्रकट शिवलिङ्ग की पूजा के लिए सनातनधर्मियों की ओर से उनके परम्परया धार्मिक अभिभावक पूज्यपाद शंकराचार्य जी ने पहल की। ऐसे में प्रकट शिवलिङ्ग के अपूजित रहने का जो दोष-पाप है वह अब सनातनधर्मियों को तो नहीं ही लगेगा। एक तरह से कहा जाये तो पूज्यपाद शंकराचार्य जी ने इस दोष-पाप से करोड़ों सनातनधर्मियों को बचा लिया।

*हम नहीं कर रहे थे किसी कानून का उल्लंघन*
हमने प्रशासन के समक्ष कोई जिद नहीं की। किसी कानून का उल्लंघन न तो किया न तो कहा। यहाँ तक कि अकेले ही एक हाथ में अपना धर्मदण्ड और दूसरे हाथ में पूजा की थाली लेकर पूजा के लिए मठ से निकल रहे थे। प्रशासन को साफ साफ यह बता दिया था कि हम आप द्वारा घोषित किसी निषिद्ध क्षेत्र में प्रवेश नहीं करेंगे। दरवाजे पर ही पूजा समर्पित कर पूजा पहुँचाने का सुख पा लेंगे। यही नहीं, हमने यहाँ तक लचीला रुख रखा था कि प्रशासन ही किसी को नियुक्त कर यह पूजा अर्पित कर दे। पर प्रशासन ने हमें हमारी आज्ञा के विरूद्ध हमारे मठ के अन्दर प्रविष्ट होकर हमें बाहर निकलने से बलपूर्वक रोक दिया । इस तरह वाराणसी के जिला प्रशासन ने सौ करोड़ सनातनियों की अभिलाषा को पूरा होने नहीं दिया जबकि यह माँग बड़ी विनम्रता से माँगी जा रहा थी और उनकी आस्था और धर्मशास्त्र से जुड़ी थी।

*प्रकट होकर भी अपूजित शिवलिङ्ग का दोष-पाप किसको?*
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह दोष-पाप अब किसको लगेगा? उत्तर कठिन नहीं। स्वाभाविक है कि जिसने हमें वहाँ पूजा करने जाने देने से रोक दिया उसी को यह दोष-पाप लगेगा। पर बहुत से लोगों के मन में यह भ्रम है कि शंकराचार्य जी के धार्मिक प्रतिनिधि को रोका किसने? और यह भ्रम किसी और ने नहीं, वाराणसी के जिला प्रशासन ने ही फैलाया है। बार-बार इस सन्दर्भ में उनके द्वारा न्यायालय का नाम लिया गया। यही बात दुर्भाग्य से वस्तुस्थिति को ठीक से न समझ पाने के कारण मीडिया ने भी चलाई। जिससे आम जनमानस के मन में यह बात बैठ गयी है कि सम्भवत: न्यायालय ने पूजा से रोका हुआ है इसलिए प्रशासन रोक रहा है।
ऐसे में आप जनता के मन में धारणा यह बनी कि प्रशासन न्यायालय के निर्णय का पालन करवाना चाहता है और शंकराचार्य जी और उनके प्रतिनिधि न्यायालय को कुछ समझ ही नहीं रहे हैं जो कि पूर्णतया गलत है।
अधिकांश लोग समझेंगे कि न्यायालय ने रोका है अत: दोष-पाप का भागी भी न्यायालय ही होना चाहिये।

*उच्चतम न्यायालय का निर्णय पूरी तरह से न्यायसंगत और सौहार्द्रपूर्ण*
इस सन्दर्भ में उच्चतम न्यायालय का निर्णय पूरी तरह न्यायसंगत और सौहार्द की भावना को संपोषित करने वाला है। उच्चतम न्यायालय ने बहुत महत्वपूर्ण बातें कही हैं जिन पर पूरे देश का ध्यान आकृष्ट होना चाहिए।
निचली अदालत के शिवलिङ्ग के स्थान को सील करने की बात उच्चतम न्यायालय ने हटाया और उसे ड्यूली प्रोटेक्ट करने को कहा। जिसका सीधा सा तात्पर्य है कि शिवलिङ्ग को सामान नहीं अपितु प्राणवान् और सम्माननीय माना।
यही नहीं, उच्चतम न्यायालय ने अपने २० मई के आदेश में जिलाधिकारी वाराणसी को स्पष्ट निर्देश दिये हैं जिसमें सभी पक्षों से बात कर धार्मिक परिपालना सुनिश्चित करने को कहा है। परन्तु
जिलाधिकारी वाराणसी ने केवल मुस्लिम पक्ष की धार्मिक परिपालनाओं को सुनिश्चित किया है और हिन्दू पक्ष अपने प्रभु को अपूजित देखने के लिये मजबूर है।

*अब उनके इस व्यवहार को क्या संज्ञा दें?*

जिलाधिकारी प्रथमदृष्ट्या न तो सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानते दिखाई देते हैं और न ही इस सन्दर्भ में हमारे पत्र का कोई जबाब देते हैं। उनके इस व्यवहार को हम क्या कहें? उच्चतम न्यायालय की अवमानना या हम आस्तिक हिन्दुओं पर अन्याय?

*हम इस समय इतना ही कहना चाहेंगे कि हम अपने धार्मिक दायित्वों का निर्वहन दृढ़ता से करेंगे। भगवान् प्रकट हुये हैं तो उनकी पूजा अवश्य होगी।*

*11लाख गावों/मोहल्लों में होगी आदि विश्वेश्वर की प्रतीक पूजा*

भारत देश का हर एक आस्तिक हिन्दू प्रकट आदि विश्वेश्वर की पूजा करना चाहता है। अतः जब तक लोग स्वयं आकर साक्षात् पूजा नहीं कर लेते हैं तब तक भारत के सात लाख से अधिक गावों तथा चार लाख शहरी मोहल्लों में स्थानीय स्तर पर समवेत होकर किसी शिवमंदिर में प्रतीक रूप में विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा करेंगे।

*प्रथम पूजा कल 9 बजे से होगी केदारेश्वर मन्दिर में*

जिस मोहल्ले में शंकराचार्य जी का श्रीविद्यामठ स्थित है उस पीताम्बरपुरा मोहल्ले में स्थित प्रसिद्ध केदारेश्वर मन्दिर में कल पूर्वाह्न नौ बजे से आदि विश्वेश्वर प्रभु की प्रतीक पूजा स्वामिश्रीः के नेतृत्व में होगी।

*सात लाख गांव और चार लाख मुहल्लों में होगी आदि विश्वेश्वर की देशव्यापी प्रतीक पूजा*
स्वामिश्री: ने कहा कि जब तक आदि विशेश्वर का पूजा व भोग शुरू नही होता तब तक पूरे देश के सात लाख गांव व चार लाख मुहल्लों में आदि विश्वेश्वर की प्रतीक पूजा होगी। पूरे देश के सनातनधर्मी अपने अपने गाॅव एवं मुहल्लों में स्थित शिव मन्दिर में स्थापित किसी भी शिवलिंग पर भगवान आदि विश्वेश्वर का जलाभिषेक करेंगे। जिसमें मोहल्ले के निवासी उपस्थित रहेंगे।

प्रेषक
साध्वी पूर्णाम्बा
कार्यसेवालय प्रमुख

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