
*🚩 सावधान हिन्दुराष्ट्र की आवाज सुनों हिन्दुओं अब गैर हिन्दुओं को भारत की संस्कृति को स्वीकारना ही होगा उनको?* हिन्दू राष्ट्रशत्रु विचारधारा पर मंथन :- *देशविरोधी विचारधाराओं का खेल अब तेजी से शुरू हो गया है सावधान हो जाओ हिन्दुओं*” मित्रों अब विवाद छिड़ ही गया है तो इसका अंत भी होना चाहिए न?” अयोध्या जी का फैसला स्वीकार करना पड़ा है उनको, 370,35ए कलम रद होने पर सहन शीलता झख मारकर बढानी पड़ी उनको,ट्रीपल तलाक़ के चले जाने से दाह वाली पीड़ा होने लगी है!काशी, मथुरा, कुतुब मीनार, ताजमहल और अब देश भर के सैंकड़ों हजारों हिन्दू मंदिर, तीर्थ स्थान की अस्मिता जागृत होने से मौलाना समाज बेचैनी महसूस कर रहे हैं।इसी बेचैनी घबराहट में दिमाग कंट्रोल में नहीं रहता,और इसलिए जो उसे बोलना नहीं चाहिए है वही उनकी जुबान पर आ जा रहा है! और गुस्से में नहीं बोलने के शब्दों का उच्चारण हो जाता है।भारत पर पहले इस्लामिक आक्रमण काल से आज दिन तक सतत संधर्ष बना रहा है और ये बात सच है लेकिन इस संघर्ष में जीत सनातन धर्म राष्ट्र भक्त हिन्दू धर्म समाज की ही हुई है।बस उनमें और हम में फर्क सिर्फ इतना है कि जीत के उत्तराधिकारी के रूप में आप बड़ाई हिंदूओं ने अपने परंपरागत संस्कारों में नहीं होने से कभी नहीं की !इस्लाम के अनुयायियों को तीन बातों को समझनी और स्वीकार करनी ही पड़ेगी,क्योंकि १. भारत वर्ष पर क्रुरता पूर्वक आक्रमण कारियों का वर्तमान समय के मुस्लिमों से उसका कोई जैविक संबंध नहीं है,२. “हम हिंदूओं के शासक हैं” इस मानसिक ग्रंथी से हिन्दुराष्ट्र भारत के मुस्लिम समुदाय को बाहर निकलना ही पड़ेगा और दूसरा कोई रास्ता नही हैं यहाँ रहना है तो हिन्दू संस्कृति अपनाओ,३.एक दूसरे के कौटुंबिक पारिवारिक जनों की हत्या से रक्तरंजित इस्लामिक इतिहास को ध्यान में भुला कर और अपने ही लिखित सच्चाई को स्वीकारने की जरूरत को रखकर आप सब ‘यहां नहीं रह सकते हैं तो अन्य जगहों पर चले जाओं’ अपने सच को स्वीकार मत करो यह कहने का नैतिक या संवैधानिक अधिकार किसी भी मौलाना को नहीं है।लेकिन हिन्दू राष्ट्र्जन यानी कि पूर्ण भारत वंशीय धर्मसमाज ने जितने समूहों को हजम कर आत्मसात किया है उतना विश्व के किसी समुदाय ने नहीं किया है।इससे ‘पसंद नहीं होने’ की बात हिंदूओं के रक्त में नहीं है,इस्लाम के अनुयायियों को अन्य समुदायों के साथ नहीं रहना पसंद आया हो ऐसा एक भी अपवाद स्वरूप उदाहरण विश्व के इतिहास में नहीं है।वर्तमान भारत केरल मोपला कांड के समय वाला नहीं है,१९४७ के विभाजन काल का भारत नहीं रहा है, बहु संख्यक हिन्दू समाज का आत्मगौरव जागृत होने से राजकीय नेतृत्व को भी धारदार बनना पड़ेगा यह वास्तविकता को तथा कथित अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को स्वीकार करना ही पड़ेगा।
जिहाद,वोट बैंक के रूप में समुदाय का उपयोग करनेवाले स्वार्थी राजनितिक दलों की तुष्टिकरण रहमदिली से अपना मनचाहा काम करवा लेने वाली लतखोरी को भारत के मुस्लिम समाज को छोड़ने का अब समय आ गया है।उपासना पद्धति भिन्न है/ भले हो इस पर हिंदूओं को कोई तकलीफ़ नहीं है, क्योंकि ‘विविधता में एकता हिंदू की विशेषता’ शताब्दियों से प्रस्थापित है।भिन्न भिन्न विचारधारा के समुदायों की सह अस्तित्व सफलता एक दूसरे की परस्पर त्याग वृत्ति पर निर्भर करता है।
पारसी,यहुदी लोग एवं सीरियन ईसाई जैसे भिन्न भिन्न घटक अपनी धार्मिक भावनाओं में थोड़ा बहुत समाधान कर अपने आप को ‘भारतीय’ बना कर अपनी धार्मिक आस्थाओं को अंकुरित रख सकते हैं तो मुस्लिम समुदाय ऐसा क्यों नहीं कर सकते?छठी और सातवी शताब्दी से हिंदू धर्म समाज संगठन के अभाव से और विशाल हृदय के कारण बहुत कुछ बातों को सहन करके समझौता करते आए हैं। मतलब इतने लंबे अरसे से सहनकर समझौता करते रहने के बाद भी अब हिंदूओं को ज्यादा कुछ करने की आवश्यकता नहीं है।आक्रामक भाषा, आतंकी हमले,षड्यंत्रों से डरकर हिन्दू बहुसंख्यक समुदाय का मानसिक परिवर्तन होता ही रहेगा ऐसी सोच मौलाना अभी भी रखते हैं तो उनकी ये सोच नहीं उनकी बहुत बड़ी भुल है।अब हिन्दुराष्ट्र शक्तिशाली बनकर जाग उठा है भारत की विकास यात्रा का एजेंडा भारत के राष्ट्रीय हिंदू धर्म समाज ने निश्चित कर लिया है।अब समझदार मुस्लिम समुदाय को कट्टरपंथी नेतृत्व की चुंगाल से हिम्मत पूर्वक बाहर निकलकर आगे आने की जरूरत है। आप मेरे मौलानाओं!भारतवर्ष के मानबिन्दुओं को आप लोगों के द्वारा स्वीकार कर लेने से आप सबका साथ हिंदूओं को स्वीकार्य है।वंदे मातरम भारतमाता की जय *🙏🏻 जय जय श्रीराम बोलिए, सूत्रों से कुबेररामसपहा,प्रधानसम्पादक समाचार जागो छत्तीसगढ़ भारत?🚩*