छत्तीसगढ़

विकासखण्ड के ग्राम बुंदेली में जाति बदलकर जमीन की खरीदी करने का मामला प्रकाश में आया The matter of buying land by changing caste came to light in village Bundeli of development block.

पिथौरा, विकासखण्ड के ग्राम बुंदेली में जाति बदलकर जमीन की खरीदी करने का मामला प्रकाश में आया है। स्पष्ट प्रतीत होता है कि खरीदी करने वाले व्यक्ति द्वारा कूटरचना कर लाभ लिया गया है। इसकी शिकायत सर्व आदिवासी समाज के ब्लॉक अध्यक्ष मनरखन ठाकुर ने कलेक्टर के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर 03 बिंदुओं में जांच किए जाने की मांग कि है।

प्रेषित आवेदन में उल्लेखित है कि बुंदेली पटवारी हल्का नंबर 28 तहसील पिथौरा जिला महासमुन्द स्थित भूमि खसरा नम्बर 2228 एवं 2229 रकबा क्रमशः 0.12 एवं 0.08 हेक्टेयर भूमि बिंझवार (आदिवासी) अजजा वर्ग के भूस्वामी हरि वल्द रूटू एवं चमारिन वल्द शोभा दोनों जाती बिंझवार (अजजा) वर्ग से ग्राम बुंदेली के अधीन उक्त भूमि रही है। अजजा वर्ग की भूमि को सीबाई पिता महेत्तर पति सुकलाल प्रभाकर जाति सतनामी द्वारा अपने पति सुकलाल प्रभाकर वल्द सोनू सतनामी के माध्यम से स्वयं को कंवर जाति (आदिवासी) बताकर अपने नामे में रजिस्ट्री कराने उप पंजीयक कार्यालय महासमुन्द उपरोक्त भूमि को बैमानी पूर्वक , छल एवं कपट पूर्वक, कूटरचना करके पंजीकृत बैनामा का निष्पादन विगत 18 सितंबर 2000 को किया जा चुका है। एवं खसरा नम्बर 2228 एवं 2229 को अपने नाम पर राजस्व अभिलेख में दर्ज करवाकर उक्त भूमि का उपभोग कर लाभ प्राप्त कर रहे हैं। यह कृत्य सरासर बेईमानी पूर्वक मूल्यवान सम्पत्ति को हड़पने जैसा कृत्य है।

उक्त आपराधिक कृत्य के लिए सीबाई पिता महेत्तर पति सुकलाल जाति सतनामी एवं सुकलाल प्रभाकर वल्द सोनू जाति सतनामी निवासी बुंदेली के खिलाफ कूटरचना एवं छलकपट जैसे कृत्य किये जाने पर कड़ी कार्रवाई की जाए एवं मूल भूमिस्वामी हरि वल्द रुटू एवं चमारिन पिता शोभाराम बिंझवार को वापस दिलाया जाने आदिवासी समाज ने कलेक्टर महासमुन्द के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर मांग की है। आदिवासी समाज के ब्लॉक अध्यक्ष मनराखन ठाकुर ने इस संदर्भ में कहा कि सामाजिक व्यक्ति की भूमि समाज के बाहर बिक्री हेतु बिना अनुमति के संभव नहीं है। गलत ढंग से कूटरचना कर एवं जाति गलत बताकर आदिवासी बनकर जमीन खरीदी करने वाले कतिथ गिरोह के खिलाफ कड़ी कार्रवाई किये जाने की मांग की है। उन्होंने आगे कहा कि यदि इस पर तत्काल संज्ञान नहीं लिया जाता तो आदिवासी समाज उग्र आंदोलन करने बाध्य होगा। जिसकी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी।

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