” *दूसरों को दुख देना, मूर्खता एवं दुष्टता है – ज्योतिष l*

“दूसरों को दुख देना, मूर्खता एवं दुष्टता है। स्वयं सुखी होना, बुद्धिमत्ता एवं सभ्यता है। और दूसरों को सुख देना, परोपकार एवं श्रेष्ठता है।”
इस संसार में सब प्रकार के लोग हैं। किन्हीं लोगों के संस्कार घटिया किस्म के हैं। किन्हीं के मध्यम, और किन्हीं के उत्तम संस्कार भी हैं। जिसके जैसे संस्कार हैं, वह व्यक्ति वैसे ही कर्म करता है।
*”जो बुरे संस्कारों वाला व्यक्ति है, वह बुरे कर्म करता है, अर्थात दूसरों का शोषण करता है, उनको परेशान करता है, दुख देता है। झूठ छल कपट चोरी बेईमानी आदि करता है। संसार के बुद्धिमान लोग, और ईश्वर भी उसे मूर्ख और दुष्ट कहते हैं। ऐसे लोगों को समाज, राजा और ईश्वर अनेक प्रकार से दंड देते हैं।” समाज के लोग उस को अपमानित करते हैं। राजा उसे जेल में डाल देता है। *”यदि वह दुष्ट व्यक्ति इनकी पकड़ में नहीं आया, तो अंत में ईश्वर उसे कीड़ा मकोड़ा पशु पक्षी वृक्ष वनस्पति जंगली जानवर या समुद्री जीव के रूप में जन्म देकर अनेक दुख देता है। उनकी सारी स्वतंत्रता छीन लेता है। इसलिए ऐसे काम नहीं करने चाहिएं।”
“दूसरे प्रकार के लोग ऐसे हैं, जो स्वयं सुखी रहते हैं। उनके संस्कार अच्छे हैं। वे बुद्धिमत्ता से काम करते हैं। सब काम समय पर करते हैं। नियम अनुशासन का पालन करते हैं। ऐसे लोग बुद्धिमान कहलाते हैं।”ईश्वर उन्हें सुख देता है। समाज के बुद्धिमान लोग भी उन्हें सुख देते हैं, और उन्हें अच्छा मानते हैं।
*”तीसरे प्रकार के लोग बहुत अच्छे संस्कारी हैं। वे स्वयं तो सुखी रहते ही हैं, साथ ही साथ दूसरों को भी वे अनेक प्रकार से सुख देते हैं। उनकी सेवा करते हैं। परोपकार के कर्म करते हैं। यज्ञ करते हैं। वेदों का प्रचार करते हैं। वैदिक गुरुकुल आदि का संचालन करते हैं। गौशाला और अनाथालय चलाते हैं। धर्मार्थ औषधालय का संचालन करते हैं। वे गरीब तथा रोगी लोगों की सेवा और रक्षा करते हैं। इस प्रकार के कर्म करने वाले जो परोपकारी लोग हैं, वे श्रेष्ठ कहलाते हैं। ईश्वर ऐसे श्रेष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करता है।”
इन तीनों की तुलना करें और देखें, कि इन तीनों में से कौन अधिक अच्छा है? फिर आप अपना भी परीक्षण करें, कि आप इन तीनों में से किस वर्ग में आते हैं। धीरे-धीरे अपने स्तर को ऊंचा उठाते हुए तीसरे वर्ग में आना चाहिए। सेवा परोपकार का आदि कर्म करके श्रेष्ठ बनना चाहिए।” “जब आप तीसरे वर्ग में अर्थात ‘श्रेष्ठ’ की श्रेणी में आ जाएंगे, तो ईश्वर आपका ‘सम्मान’ करेगा। ईश्वर, श्रेष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करता है। जो व्यक्ति ऐसे श्रेष्ठ बनकर ईश्वर से सम्मानित होता है, वही वास्तव में देवता है, उसी का जीवन सफल है।”