मिशन कश्मीर जमीन या आवाम?-लेख

मिशन कश्मीर जमीन या आवाम??
आज मैं नही लिखूंगा क्योंकि आज लिखना खतरे से खाली न होगा आज अगर मैं लिखूंगा तो दुश्मनी मोल ले लूंगा ,आज ज्ञान दिया तो ट्रोल हो जाऊंगा आज मैंने 370 लागू होने पर जमीन ले सकते है कश्मीर में इससे हटकर कुछ भी बात की तो मुझे ब्लैक लिस्टेड किया जाना तय है। अगर मैंने धारा 370 पर कोई भी सेक्शन पर अपने विचारों को रखते हुए असहमति जताई तो मैं कश्मीरी पत्थरबाजों में गिना जाऊंगा, आज मैंने अगर अपने विचार आलोचकों या समीक्षकों की तरह रखे तो पक्का मेरे घर के आस पास कुछ सेफरोन तिरंगे लहराने लगेंगे । आज मैंने अगर थोड़ा भी इधर उधर बिना नाप टोल कर अपानी सोच समझ अगर लोगो के सामने रखी तो पक्का में टुकड़े गैंग में आ जाऊँगा या मेरे घर के बाहर देशद्रोही या कोई तमगा जरूर पिज़्ज़ा डिलीवरी बॉय से पहले पहुंच जाएगा । आज मैं खुश हूं कश्मीरी जमीन के लिए अब हम कश्मीर में अपने राज्य की तरह हर प्रकार के स्वतंत्र कार्य कर सकेंगे । पर एक दुख मुझे बड़ा सता रहा है । कि क्या मैं आज भी कश्मीर की वादियों में आराम से अपने परिवार के साथ आस पास के राज्यों जैसे मध्यप्रदेश ,उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़ इत्यादि राज्यों की तरह सुरक्षित और निडर रह पाऊंगा । फिर मन में विचार आता है कि अभी तो महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल जैसे प्रदेशो में भी बाहर से आकर रहने वाले लोगो को वहाँ के रहवासी नफरत और बोझ की तरह देखते हैं, उनके दमन से भी नही चूकते है। हम अपने राज्यों में आस पास की फैक्टरी या रोजगार की उपलब्ध कंपनियों में लोकल रहवासियों के लिए आरक्षण की मांग करते हैं लड़ाईयां भी लड़ते हैं। उसके बाद भी यह लोकल रहवासियों की लड़ाई खत्म नही होती, प्रदेश स्तर की घुसपैठ को बंद करवाने की लड़ाई लड़ते है। कुछ एक को छोड़ कर कोई भी राज्य अपने पड़ोसी राज्य की किसी भी स्तर पर मदद नही करना चाहता। कश्मीर की आवाम का मिजाज तो और उल्टा है उनमें अलगाववादी, एवम जमुहरियत या अनेक छोटे छोटे दल है जिनकी विचारधारा बिल्कुल ही अलग है। आपकी हमारी सोच से तो बिल्कुल ही अलग है । एक बड़े वर्ग की राय तो दिमाग को खराब कर देने जैसी है। पर एक विषयवस्तु वहाँ समान है वो है कट्टरता खूबसूरती से लदे सफेद कश्मीर के दाग हम कभी करीब से नही देख पाए क्योंकि हमने उसे बस कुछ सीमित दूरबीन में जहाँ तक नजर गई वहां तक देखा और दूर से खूबसूरत कश्मीर अंदर से हमे पता न हो सका। इतने सालों आए 370 न हटाये जाने का कारण सिर्फ कागजों की उथल-पुथल या 1 हफ्ते की जद्दोजहद जो हमारे ग्रह मंत्री ने की कभी नही था। विषय जमीन का न होकर विषय था आवाम का । वहाँ की आवाम को मिलाकर वाद संवाद कर या हवा बदल कर उनके अधिकार सुन कर उन्हें जोडें कर मुख्य धारा में मिलने का सवाल था।
खैर मोटा भाई ने 7 8 दिन की दौड़ भाग और नजरबन्द लोगो के सीने और विचारों पर जूते रख कर पेपरों के गट्ठर मै 70 सालो से बंद 370 को हटा दिया है। और तकनीकी विजय हासिल की है । परिणाम है और हवा और आवाम की अनदेखी के परिणाम आना बाकी रह गया है। वर्तमान केंद्र सरकार की एक अच्छी बात यह है, वे खुद के निर्णयों को इस प्रकार से प्रचारित कर लेती हैं कि जैसे अलादिन को चिराग मिल गया हो । भूतकाल के उदाहरण सामने हैं। आशा है इस निर्णय में क्षेत्ररक्षण बड़ी समझ सोच और जोखिम एवम भविष्य के परिणामो को ध्यान में रख कर किया गया होगा ।केंद्र को बधाई एक बार फिर मन मे वही प्रश्न है जो 10 साल पहले था ।
*जमीन या आवाम
कश्मीर की वादियों को शहर की छत से निहारता पंछी।
आपका अंकित मेड्डी जैन।