2021 साल खत्म होने को है,जिसकी शुरुआत दिसम्बर से हो गई है,लेकिन इस बीते साल दिल्ली पुलिस के लिए कुछ यादें खट्टी तो कुछ मीठी रही।The year 2021 is about to end, which has started from December, but this past year, some memories were sour and some were sweet for Delhi Police.
लेकिन ये साल दिल्ली पुलिस के कुछ खास रहा,जहां तीन पुलिस आयुक्तों ने चार्ज संभाला और दिल्ली पुलिस में बदलाव के लिए कई कार्य किए। सबसे ज्यादा बदलाव बदली पुलिसिंग के लिए मौजूदा कमिश्नर राकेश अस्थाना का नाम प्रमुखता से रहा। पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना ने पदभार संभालते ही दिल्ली पुलिस में ऐसे बदलाव किए जो शायद कई वर्षो में नहीं किए गए। आयुक्त का बदलाव का उद्ेश्य राजधानी को एक स्मार्ट और अव्व्ल पुलिसिंग व क्राइम पर कंट्रोल था। इस मुहिम में वह काफी हद तक सफल भी रहें,लेकिन क्राइम के बढ़ते आंकड़े,रेप की बढ़ती वारदातें और पुलिस के दामन पर लगे दागों ने दिल्ली पुलिस की कार्यशैली पर कई सवाल भी उठाए। पुलिस आयुक्त के बदलाव में उन्होंने डिजिटल तकनीकी पर विश्वास जताया वहीं उन्होंने महिला सशिक्तकरण पर भरोसा जताया और हर समय में केवल एक ही मूल मंत्र रखा कि किसी भी तरह का विभाग में न तो भ्रष्टाचार दिखे और न ही क्राइम बढ़े। लेकिन मौजूदा समय के वर्ष और उनके कार्यकाल के आंकड़े कुछ और ही बयां करते है। स्मार्ट पुलिसिंग की मुहिम में जहां वे हर राज्य की पुलिस की कार्यशैली में अव्वल रहें,लेकिन वहीं उनके मातहत लगे अधिकारियों की कार्यशैली के कारण क्राइम के बड़े आंकड़ों और निचले स्तर पर फैले भ्रष्टाचार ने विभाग को शर्मशार किया। आखिर राकेश अस्थाना ने क्या चेलेंज लेकर दिल्ली पुलिस में बदलाव कर स्मार्ट पुलिसिंग का नारा दिया,वहीं कैसे बढ़ते क्राइम ग्राफ ने दिल्ली पुलिस की पुलिसिंग पर सवालिया निशान खड़े किए। इसी पर नवोदय टाइम्स के लिए संजीव यादव और मुकेश ठाकुर की विशेष रिपोर्ट।
हर उठे सवालों का दिया काम से जवाब यहीं
जुलाई माह के अंत में पुलिस कमिश्नर का पदभार संभाल रहें दिल्ली पुलिस कमिश्नर बालाजी श्रीवास्तव को वापिस उनके पद पर भेज गृह मंत्रालय ने गुजरात कैडर से पूर्व सीबीआई के कार्यवाहक निदेशक ,डीजी बीएसएफ और नारकोटिक्स के डीजी रहे राकेश अस्थाना को दिल्ली पुलिस का नया आयुक्त नियुक्त किया। उनकी नियुक्ति पर सरकार से लेकर कई राजनैतिक संगठनों ने कार्यशैली और विवादों में घिरे रहने पर कई सवाल उठाएं,कोर्ट में याचिकाएं डाली गई,जिसका साफ मकसद था कि पुलिस आयुक्त के पद पर राकेश अस्थाना न आए। लेकिन उठे हर सवालों का जवाब महज साढ़े चार माह में उन्होंने दिया। सवालों पर ऐसे जवाब दिए कि हर संगठन सहित राजनैतिक दलों ने चुप्पी साध ली। कारण था कि उनके द्वारा दिल्ली पुलिस में किए गए ऐसे बदलाव और उनकी कार्यशैली जिसके चलते हरएक ने चुप्पी साधी। पुलिस आयुक्त का पदभार उनके लिए दो तरफा चैलेजिंग था,पहला उठ रहें सवालों के जवाबों को देना दूसरा दिल्ली में क्राइम कंट्रोल करना और दिल्ली दंगों की छिड़ी सियासत पर उसी भाषा में जवाब देना। जिसें पुलिस आयुक्त ने बखूबी निभाया।
क्राइम कंट्रोल पर जीरो टॉलरेंस की नीति,न मानने पर बदले डाले घर
पदभार संभालते ही उन्होंने सबसे पहले दिल्ली पुलिस में क्राइम कंट्रोल के लिए विशेष निति बनाई,और कहा कि वे हर चीज बर्दाश्त कर सकते है,लेकिन क्राइम कंट्रोल में लापरवाही पर उनकी नीति जीरो ट्रॉलरेंस की है,हुआ भी वहीं। पदभार संभालते ही प्रकाश अस्थाना ने दिल्ली पुलिस के सभी स्पेशल सीपी सहित ज्वाईंट सीपी स्तर के अधिकारियों के साथ बैठक की। इस बैठक के बाद उन्हेंाने एक वीडियो काफ्रेंसिंग की जिसमें उन्होंने सीधे तौर पर सभी अधिकारियों को क्राइम कंट्रोल मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति की बात कही। इस मौके पर उन्होंने विशेषकर किसी भी क्राइम की जांच पर विशेष फोकस रखने के लिए कहा। इसके अलावा मौके पर दिल्ली में हुई हिंसा संबंधित रिपेार्ट और किसान आंदोलन के संबंध मं प्रगति रिपोर्ट सहित सुरक्षा इंतजाम की जानकारी ली। इसी के चलते उन्होंने अपने कार्यकाल में अब तक 154 इंस्पेक्टरों के कार्यक्षेत्र में बदलाव किया और अब तक वे लापरवाही के चलते 12 से अधिक थानाप्रभारियों को संस्पेड कर चुके साथ ही कई शीर्ष अधिकारियों के कार्यक्षेत्र बदल दिए।
दंगों में अब नहीं होती पुलिस की किरकिरी, बदली टीम, विशेषज्ञ लगाएं
जब पदभार संभाला था तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है वर्ष 2020 फरवरी में हुए नार्थ ईस्ट इलाके के दंगे। जिसमें पुलिस ने 750 से ज्यादा एफआईआर कर करीब 1400 लोगों को गिरफ्तार किया। कई संगीन मामले दर्ज किए,लेकिन जैसे जैसे मामलों में कोर्ट में ट्रायल शुरु हुआ तो आरोपी बरी होने लगे। यही नहीं कई प्रकरण में दिल्ली पुलिस को मुंह की खानी पड़ी,यही नहीं एक एसीपी को डिमोट तक करना पड़ा। चूकि प्रकाश अस्थाना को नारकोटिक्स सहित सीबीआई में कई संगीन जांचों को सुलझाने का महारत थी,नतीजतन केन्द्र सरकार को इन पर भरोसा था। जिसको उन्होंने बखूबी निभाया। हालांकि उनके पदभार संभालते ही कुछ केसों में जब पुलिस ने मात खाई तो उन्होंने पुरे वकील पैनल को ही बदलवा दिया और पेशवेर टीमों को लगाया,जिसके कारण मौजूदा समय में चल रहें केसों में दिल्ली पुलिस मात नहीं खा रही। यही नहीं उनके कार्यकाल में पेश की 27 चार्जशीट में से 1 केस में आरोपी बरी हुए,जबकि अन्य केसों में आरोपियों को कोर्ट ने अभी तक जमानत नहीं दी। कारण था लगाए गए वकीलों द्वारा दिल्ली पुलिस का पक्ष मजबूती से रखा गया। जिसके चलते कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की दलीलों को माना।
दिल्ली सरकार और पुलिस में विवाद
अमूमन दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस में अक्सर कार्यक्षेत्र और बनने वाली नीतियों को लेकर टकराव सामने आते रहें है,और इसी के कारण हर कमिश्नर सरकार के निशाने पर रहते थे।लेकिन मौजूदा कमिश्नर ने इसे भी आसानी से संभाला। इसी का नतीजा है कि उनके कार्यकाल में एक भी विवाद दिल्ली सरकार से नहीं हुआ। न तो दंगों को लेकर ही सरकार और पुलिस आमने सामने आई और न ही किसान आंदोलन में पुलिस के द्वारा उठाए गए किसी भी कदम पर सरकार ने टिप्पणी की। यही नहीं उनके पदभार संभालने के दौरान दंगे प्रकरण में जिस वकील पैनल को लेकर एलजी से विवाद चल रहा और मामला राष्ट्रपति तक जा पहुंचा था,उसे भी आसानी से सुलझाा लिया गया।
किसान आदोलन : न तो दिखा विवाद और न अशांति
गत एक साल से भी ज्यादा समय से कृषि बिल को लेकर दिल्ली के तीन बार्डर गाजीपुर,टीकरी और सिंघू बंद हैं। जिसके चलते राजधानी जाम से परेशान है। वहीं किसानों ने कई बार दिल्ली में घुसने की चेतावनी देकर सरकार को चुनौती दी। यहां तक जब वे पद संभाल रहें थे तभी किसानों ने हजारों की संख्या में जंतर मंतर पर धरने की धमकी तक दे डाली,जिसे पुलिस आयुक्त ने बखूबी हैंडल किया। किसानों को जंतर मंतर तक आने दिया ओर शांति से वापिस भी जाने दिया गया। यही नहीं वे लगातार किसानों से मिलते भी रहें।
दिल्ली पुलिस में चल रही आईपीएस अफसरों की खींचतान खत्म
बालाजी श्रीवास्तव को अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर का जिम्मा सौंप जाने के बाद से कई सीनियर अधिकारी खासे नाराज थे। इसी के चलते पूर्व सीपी ट्रैफिक ताज हसन छूटटी पर चले गए थे,हालांकि उन्हें अन्य जगह डीजी बना दिया गया,लेकिन उसके बाद भी कई सीनियर अधिकारी अंदर खाने उनसे नाराज थे,लेकिन राकेश अस्थाना के प्रदभार संभालते ही उन्होंने सभी विवादों पर विराम लगा दिया। आते ही उन्होंने मुख्यालय सहित दिल्ली पुलिस अफसर लॉबी में कार्यो का इस तरह से बंटवारा किया सभी ने चुप्पी साध ली। यही न हीं उन्होंंने एक मिनी सचिवालय भी बनवाया ,जिसका नतीजा ये रहा कि एक ही जगह से क्राइम कंट्रोल की नीति पर काम किया गया।
ट्रैफिक और थानों की बदल दी रुपरेखा,दिखी स्मार्ट पुलिसिंग
पुलिस आयुक्त ने पहले खुद सडक़ों का आकलन किया और क्राइम वर्किगं की बारिकियों को देखा,जिसके बाद उन्होंने जहां पुलिसिंग क्षेत्र में बदलाव किए वहीं ट्रैफिक व्यवस्था में नया प्रयोग किया। नए प्रयोग के तहत क्राइम की तरह टै्रफिक सर्किल को भी जिलों को बांटा गया और वहीं पर भी सीनियर अधिकारियों की नियुक्ति की। यही नहीं थानों में तीन इंस्पेक्टर सहित पीसीआर से लेकर बीट वर्किंग में काफी बदलाव किया,जिससे न पुलिसकर्मियों पर प्रेशर दिखे और न ही तनाव। इसके पीछे केवल मंशा है कि ट्रेफिक व्यवस्था सही हो वहीं क्राइम कंट्रोल हो।
भ्रष्टाचार पर अंकुश,चलाया पुलिसकर्मियों पर चाबूक
पुलिस आयुक्त के संज्ञान में जैसे ही फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस के जरिए दिल्ली पुलिस में भर्ती 12 सिपाहियों का मामला आया और जांच दिखी तो तत्काल उसे पूरा करवा 12 पुलिसकर्मियों को एक साथ बर्खास्त किया। एक साथ इतनी बर्खास्तगी पहली बार की गई गई। इसके अलावा अब तक 7 एसएचओ लापरवाही मामले में संस्पेंड किए गए और 11 पुलिसकर्मियों को अवैध उगाही व अन्य लापरवाही के चलते निलम्बित कर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया ।
उफ्फ इतने प्रयास,लेकिन जमीनी स्तर पर क्राइम नहीं हुआ कंट्रोल,ये बड़े कारण जिम्मेदार
पुलिस आयुक्त ने भले ही पुलिसिंग में बदलाव किए वहीं कई ऐसे प्रयास किए जिससे दिल्ली में पुलिसिंग नई तरह से दिखे और हर तरह के बढ़ते क्राइम पर अंकुश लगाया जाए,लेकिन उनकी ये नीतियां जमीनी स्तर पर उतनी कारगार नहीं हुई। शहर में बढ़ते स्ट्रीट क्राइम,रेप की आंकड़े और पुलिस विभाग में मिलने वाले भ्रष्टाचार से लगातार विभाग की छवि धूमिल हुई। हालांकि इन आंकड़ो से परेशान पुलिस आयुक्त ने लगातार डीसीपी स्तर पर बदलाव और उनके पेंच कसे,लेकिन उसके बाद भी लगातार अपराध बढ़ रहा है। आईए आपको बताते है इसके बड़े कारण क्या हैं?
आपेरशन के जरिए ही केवल क्राइम कंट्रोल करना
पुलिस आयुक्त के निर्देशन पर राजधानी में दिल्ली में अलग अलग जगहों पर आपरेशन सुर्दशन,शक्ति,प्रहरी सहित कई आपरेशनों को चला कर अपराधियों की धरपकड़ की गई,मंशा कि अगर पेशवर अपराधी सलाखों के पीछे होगें तो अपराध ग्राफ कम होगा। यही नहीं जिला स्तर के अलावा स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच ने भी विशेष मुहिम के तहत गैंगस्टरों पर लगाम कसी ताकि गैंगवार और सडक़ों पर हो रही हत्याओं पर अंकुश लगाया जा सके। लेकिन यही मुहिम उन पर भारी पड़ रही है। जमीनी स्तर पर अब केवल जिला स्तर पर केवल आपरेशन के तहत ही बदमाशों की धरपकड़ की जाती है,जबकि थाना स्तर पर अपराधियों के अंकुश पर इंटेलिजेंस वर्किंग पर काम नहीं हो रहा है,इसी का नतीजा है कि घरेलू हिंसा सहित स्ट्रीट क्राइम में बेहताश वृद्धि हुई है।
अधिकांश नवनियुक्त डीसीपी काम से नहीं कर पा रहें प्रभावित
महिला शस्क्तिकरण के तहत पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना ने पहली बार दिल्ली पुलिस के इतिहास में 6 जिलों की कमान को नए आईपीएस महिलाओं के हाथों में सौंपा और उम्मीद की ये लोग बेहतर संचार व्यवस्था के तहत लोगों से मिलकर काम करेगें साथ ही अपराधों पर अंकुश लगाएगीं। लेकिन इसमें अगर जमीनी स्तर पर देखे तो कुछ ही डीसीपी पब्लिक संचार सहित जमीन पर दिखाई दी। बताया जाता है कि अधिकांश मामलों में ये लोग केवल अपने पीआर तक ही सीमित दिखी और गुडवर्क पर फोकस जबकि घटित क्राइम पर कोई बड़ी रणनीति नहीं बनाई। पुलिस आंकड़ों में देखे तो स्ट्रीट क्राइम में ईस्ट दिल्ली में सबसे ज्यादा वारदातें घटी है,वहीं साऊ र्दन रेंंज की वारदातों को देखे बीते 25 दिनों के दौरान 15 से ज्यादा रेप की वारदातें हुई जो पुलिस की कार्यशैली पर सवालिया निशां है। इसी तरह नार्थ ईस्ट और बाहरी दिल्ली में आपराधिक वारदातें काफी तेजी से बढ़ी हैं।
कारण कहीं ये तो नहीं
बताया जाता है कि अधिकांश डीसीपी स्तर के अधिकरियों ने अपना ऑफिशियल नंबर अपने पसंदीदा मातहत लोगों को दिया हुआ है और वे मीडिया सहित आम लोगों से नहीं मिलना चाहते। यही नहीं फोन केवल उनकी मर्जी पर तय होता है कि वे उठाए या नहीं। यही नहीं ये भी सामने आया है कि सुनवाई तो वे सीधे केवल सीमित समय पर ही मिले,नहीं तो उनके मातहत लोगों से ही बात करें,जबकि पुलिस आयुक्त सहित शीर्ष अधिकारी हर समय पब्लिक के लिए मौजूद रहते हैं।
👉कोविड के बाद बढ़ती बेरोजगारी ने बढ़ाई टेंशन
कोविड की पहली वेब और दूसरी वेब के बाद के साइबर क्राइम सहित स्ट्रीट क्राइम में खासी बढ़ोतरी हुई है,इसके पीछे का कारण है, बढ़ती बेरोजगारी। जिसके चलते अधिकांश युवाओं का रुख इस तरह बढ़ा है। हालांकि दिल्ली पुलिस ने विशेष योजनाओं के तहत अपराध के क्षेत्र में गए युवाओं को मुख्य धारा में लाने का प्रयास भी किया है। लेकिन जिस तरह से नबालिग ने अपराध के क्षेत्र में एंट्री मारी उससे आपराधिक आंकड़े तेजी से बढ़े।
ड्रग्स और सट्टे का बढ़ता कारोबार
पुलिस आयुक्त सट्टे और ड्रग्स सहित अवैध उगाही के खिलाफ है, लेकिन गत कुछ पकड़े गए मामलों से साफ हैकि ड्रग्स और सट्टे सहित अवैध उगाही के मामलों में ज्यादा व़ृद्धि हुई है, या यू कहे कि सख्त नीति के चलते मामले सामने आने लगे है। मिली जानकारी के तहत पूर्वी रेंज और साऊर्दन रेंज में बड़े स्तर पर सट्टे और ड्रज्स का कारोबार खुले आम होता है, इत्तफाक ये भी है कि इसमें खुद पुलिसकर्मी शामिल है।
पुलिस के रिकार्ड में दर्ज आंकड़े बयां करते है उनकी कार्यशैली
अपराधों का ग्राफ भी तेजी से बढ़ा
अगर आपराधिक आंकड़ो को देखे तो दिल्ली के हर रेज में आपराधिक वारदातें बढ़ी है। यही नहीं गत वर्षो की तुलना में इस वर्ष हर अपराधों की घटित संख्या दोगूनी हुई है। आंकड़ो के तहत ही स्ट्रीट क्राइम सबसे ज्यादा बढ़ा हैं। इस साल आठ अक्टूबर से 11 नवंबर तक झपटमारी की 1018 वारदातें हुई। पिछले साल इस अवधि में वारदातों की संख्या 928 थीं। वाहनचोरी की 3894 घटनाएं सामने आई। पिछले साल इस अवधि में 3663 वाहन चोरी हुए। लूट की घटनाओं में भी वृद्धि दर्ज की गई है। लूट की 247 वारदातें दर्ज हुई। पिछले साल यह आंकड़ा हुई हैं तो 224 था। पिछले साल हत्या के प्रयास के 56 केस सामने आये, वहीं इस साल यह नंबर 105 तक पहुँच गया है। झपटमारी की सबसे ज्यादा 112 वारदात पूर्वी जिले में हुई। उत्तरी जिला में 103, शाहदरा जिला में 94, आउटर जिला में 88 झपटमारी की घटना सामने आई। वाहन चोरी के सबसे ज्यादा 414 केस पश्चिमी जिले के हैं। उत्तर पूर्वी दिल्ली में 399, रोहिणी जिला में 361, उत्तर पश्चिम जिला में 328 और उत्तर पूर्वी जिला में वाहन चोरी की 306 घटनाएं हुई हैं। वहीं लूट की सबसे ज्यादा 29 घटनाएं आउटर नॉर्थ दिल्ली में हुई। इसके बाद आउटर जिला में 27, उत्तर पूर्वी जिला में 22 द्वारका में 20 और दक्षिण जिला में 20 वारदातें हुई हुईं।
👉झपटमारी के आंकड़े —
झपटमारी की सबसे ज्यादा वारदातें ईस्ट दिल्ली में घटी 104
जिला —- 2020 —- 2021
पूर्वी —- 104 —- 112
शाहदरा —- 46 —- 94
आउटर —- 65 —- 88
दक्षिण —- 41 —- 57
दक्षिण पश्चिम —- 14 —- 35
आउटर नार्थ —- 29 —- 52
👉लूट के आंकड़े —
लूट की सबसे ज्यादा वारदातें रोहिणी इलाके में घटी
जिला —- 2020 —- 2021
रोहिणी —- 11 —- 19
आउटर नार्थ —- 15 —- 29
पश्चिम —- 09 —- 18
आउटर —-11 —- 27
द्वारका —- 17 —- 20
👉महिला अपराध में भी बढ़ोतरी,घरेलू हिंसा के ज्यादा मामले
राजधानी दिल्ली में महिलाएं न केवल बाहर बल्कि घर के भीतर भी सुरक्षित नहीं हैं। अपराध के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2021 में महिलाओं के प्रति होने वाले सभी अपराधों में बढ़ोत्तरी हुई है। हैरानी की बात यह है कि महिलाओं से घरेलू हिंसा और दहेज हत्या के मामलों में भी इस वर्ष इजाफा हुआ है। 2021 में घरेलू हिंसा 95 फीसदी बढ़ गई है। दिल्ली पुलिस द्वारा जारी अपराध के आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए पुलिस द्वारा उठाए जा रहे कदम व अभियान फेल है। महिलाओं के प्रति इस वर्ष अपराध बढऩे का सबसे बढ़ा कारण बीते वर्ष अपराध का काफी कम होना है। बीते वर्ष महिलाएं घर से कम निकली थीं। इस वर्ष महिलाएं घर से ज्यादा निकली हैं। इसके चलते घर के बाहर महिलाएं अपराध का शिकार बीते वर्ष के मुकाबले ज्यादा हुई हैं। वहीं दूसरी तरफ घरेलू हिंसा के मामले भी दिल्ली में लगातार बढ़ रहे। पति-पत्नी के बीच छोटी-छोटी बातों पर झगड़े होते हैं क्योंकि लोगों के बीच सहनशीलता खत्म हो रही है। दोनों अगर ऑफिस में काम करते हैं तो वहां के दबाव की वजह से भी वह आपस में झगड़ा करते हैं।
अपराध —- वर्ष 2020 —- वर्ष 2021
दुष्कर्म —- 1429 —- 1725
छेड़छाड़ —- 1791 —- 2157
फब्ती कसना —- 350 —- 373
अपहरण —- 2226 —- 3117
घरेलू हिंसा —- 1931 —- 3742
दहेज हत्या —- 94 —- 114
ये भी चौकानें वाली बात,आखिर एनसीआरबी के रिपोर्ट से मेल क्यों नहीं खाते दिल्ली पुलिस के आंकड़े
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो NCRB(एनसीआरबी) की ओर से सालाना जारी किए गए अपराध पर आंकड़े में चार प्रमुख महानगरों में राजधानी दिल्ली में 2020 में सबसे कम साइबर अपराध प्रभावित बताया है। रिपोर्ट के अनुसार 2020 में दिल्ली में सबसे कम 166 साइबर अपराध के मामले दर्ज किए गए। हालांकि, 2019 की तुलना में राष्ट्रीय राजधानी में 2020 में साइबर अपराध बढ़े। 2019 में यहां ऐसे 107 मामले दर्ज किए गए थे। आंकड़ों में बताया गया है कि 166 साइबर अपराध में 31 साइबर स्टॉकिंग के मामले सामने आए। इनमें दिल्ली में 51 केस सिर्फ महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराध के सामने आए। जिसमें 5 फेक प्रोफाइल के केस थे। 20 महिलाओं के खिलाफ अश्लील और आपत्तिजन साइबर क्राइम के मामले हैं।जारी आंकड़ों के अनुसार साल 2020 में दिल्ली में दर्ज मामलों में से 12 मामले महिलाओं/बच्चों (आईपीसी की धारा 354डी) का साइबर स्टॉकिंग करने/धमकाने से संबंधित थे। साइबर अपराध की शिकार महिलाएं हीं नहीं, बल्कि बच्चे भी हुए। आंकड़े बता रहे हैं कि इनमें 5 केस ऐसे हैं, जिसमें सिर्फ बच्चों को ही टारगेट किया गया। एनसीआरबी के आंकड़ों में पिछले साल दिल्ली में ओटीपी फर्जीवाड़ा के सिर्फ 02,मामले बताए गए। धोखाधड़ी के छह मामले और नौ अन्य मामले दर्ज किए गए।
जबकि दिल्ली पुलिस के आंकड़ों से एनसीआरबी के आंकड़े मेल नहीं खा रहे। इस साल दिल्ली पुलिस की ओर से से साइबर क्राइम को लेकर जो आंकड़े जारी किए हैं, उसमें बताया है कि, सबसे ज्यादा 62 फीसदी ऑनलाइन फाइनेंशियल फ्रॉड हुआ। वहीं, सोशल मीडिया से जुड़े 24 फीसदी ठगी के मामले सामने आए। जबकि 14 फीसदी बाकी दूसरे साइबर फ्रॉड थे। दिल्ली पुलिस ने अपने आंकड़ों के ट्रेंड में बताया कि जनवरी में जहां 2हजार शिकायतें साइबर फ्रॉड से जुड़ी थीं। वहीं, मार्च के बाद लॉकडाउन पीरियड में यह रेकॉर्ड हर महीने 4 हजार से ऊपर पहुंच गया। यह फिगर तीन चार महीने तक जस के तस बना रहा। नवंबर-दिसंबर में आकर साइबर फ्रॉड से जुड़ी शिकायतों में गिरावट आई। क्योंकि लॉक डाउन के दौरान साइबर क्रिमिनल्स ने नई मॉड्सऑपरेंडी इस्तेमाल की। उस समय ज्यादातर लोग घरों में थे। सरकारी योजनाओं, जागरुकता और कोविड के समय रोजगार के संकट को फोकस करते हुए अपराधियों ने इसे खूब भुनाया। फेक सरकारी वेबसाइट्स बनाकर आर्थिक मदद और सब्सिडी के ऑफर देकर ठगी की गई। साथ ही हुबहू फेक सरकारी वेबसाइटें बनाकर नौकरियों के बहाने से ठगा गया वहीं, क्तक्र कोड जैसे फ्रॉड में भी तेजी देखी गई। फाइनेंशियल फ्रॉड में केवाईसी वेरिफिकेशन, ई-सिम अपग्रेडेशन की नई मॉड्सऑपरेंडी अपनाई गई। इसी तरह फिशिंग लिंक्स और सेक्सटॉर्शन के केस साइबर सेल के पास ज्यादा आए।