29 नवम्बर को अंचल में सक्रिय साहित्यिक संस्था ‘श्रृंखला साहित्य मंच ने अपने 33 वर्ष पूरे किए।On 29 November, a literary organization active in the region, the series Sahitya Manch, completed its 33 years.
छत्तीसगढ़
पिथौरा/ 29 नवम्बर को अंचल में सक्रिय साहित्यिक संस्था ‘श्रृंखला साहित्य मंच ने अपने 33 वर्ष पूरे किए। इस अवसर पर स्थानीय गुरु तेग बहादुर सिंह धर्मशाला में श्रृंखला के सदस्यों की कवि गोष्ठी आयोजित हुई। कार्यक्रम का शुभारंभ माता सरस्वती के पूजन अर्चन के साथ हुआ। गोष्ठी की शुरुआत में मंच के समस्त सदस्यों को बधाई देते हुए कार्यक्रम के सभापति स्वराज्य करुण ने कहा कि इतने लंबे समय तक सामाजिक प्रतिबद्धता के साथ श्रृंखला साहित्य मंच ने सक्रिय रचना धर्मिता निभाते हुए अभूतपूर्व उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसके लिए सभी श्रृंखला के समस्त सदस्य साधुवाद के पात्र हैं।
गोष्ठी के प्रथम रचनाकार के रूप में कवियत्री गुरदीप कौर ने पिता पर एक बहुत ही खूबसूरत रचना पढ़ी। कविता की ये हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ देखिए:-
सब दिखाई देता है पिता के चेहरे पर/कुछ नहीं दिखाई देता उनकी आँखों में/ झूठ बोलती हैं उनकी आँखें/ जहाँ-जहाँ मुझे उनका चेहरा दिखाई देता है ,वहाँ मुझे उनकी आँखों में सपना दिखाई देता है//”
अगले क्रम में ग्रामीण परिवेश से जुड़े कवि माधव तिवारी ने बेटी की विदाई पर पिता की अंतर्दशा का चित्रण छत्तीसगढ़ी कविता के माध्यम से किया। उनकी ये पंक्तियाँ बहुत प्रभावशाली थी:-
“बाजा आथे बाजत,
चिंता आथे नाचत,
साल भर के कमई नी पुरे
पइसा बाँटत बाँटत।।’
श्रृंखला साहित्य मंच के हास्य व्यंग हस्ताक्षर एस. के. नीरज ने अपनी रचनाओं से गोष्ठी को नया आयाम दिया उनकी ये पंक्तियाँ काबिले तारीफ थी:-
ये भारत की धरा है, बहुत उर्वरा है/
कोरोना काल में प्रदूषण घटा है,
कवियों का उत्पादन बढ़ा है//
छत्तीसगढ़ी भाषा में विशेष दक्षता रखने वाले कवि, सरदार बंटी छत्तीसगढ़िया ने बहुत खूबसूरत रचना का पाठ किया। उनकी इन पंक्तियों पर खूब वाहवाही मिली:-
सुनो सुनोग भाई बंटी के बानी जी, नवा जमाना के नवा कहानी जी/
दादा कमाए हपटा कचारी,
लइका बैरासू मारे फुटानी जी//”
छोटी छोटी पंक्तियों में चुटीली बातें करने वाले कवि कैलाश बंसल ने इन पंक्तियों पर काफी वाहवाही बटोरी:-
“ये बीमा वाले भी गज़ब ढाते हैं/
पति के मरने का फायदा पत्नी को बताते है//”
श्रृंखला के वरिष्ठ कवि एफ. ए. नंद ने चुनाव आते ही चेहरे बदलते नेताओं पर चुटकियाँ लेती हुई कविताएँ पढ़ीं। उनकी ये व्यंग्यात्मक पंक्तियाँ देखिए:-
“गिरगिट के दिन जाने वाले हैं/
बहुत ही जल्द चुनाव आने वाले हैं/”
श्रृंखला साहित्य मंच के सुप्रसिद्ध कवि शिवानन्द महन्ती की गंभीर और धारदार रचनाएँ काफी प्रभावशाली थीं। उनकी ये काबिले तारीफ पंक्तियाँ देखिए:-
“व्यथित गणराज्य में जब गूँजने लगती है जनता की चीख पुकार/
पूँजीवादी हाथों का अक्सर खिलौना हो जाती है जनता की चुनी हुई सरकार//”
गोष्ठी का सफल संचालन कर रहे श्रृंखला साहित्य मंच के अध्यक्ष प्रवीण ‘प्रवाह’ ने अपनी नई कविताओं से गोष्ठी को नया आयाम दिया उनकी ये बेहतरीन पंक्तियाँ देखिए:-
“आग बनना चाहता हूँ चूल्हे की /
बुझाने के लिए पेट की आग//”
सभापति की आसंदी से वरिष्ठ कवि स्वराज्य ‘करुण’ ने अपनी कविताओं से वर्तमान परिवेश पर कटाक्ष किया। उनके एक नवगीत की इन पंक्तियों पर खूब वाहवाही हुई:-
“पता नहीं फिर कब आएगा
सावन मेरे देश में
अब तो चारों ओर घूमते
रावण मेरे देश में।”
श्रृंखला के युवा रचनाकार संतोष गुप्ता ने सभी सदस्यों को बधाई दी। आभार प्रदर्शन में ओजस्वी वक्ता उमेश दीक्षित ने श्रृंखला के 33 वर्षों की सफल यात्रा पर अपने विचार रखते हुए सभी सदस्यों को बधाई दी, और यह यात्रा निरंतर जारी रखने के लिए शुभकामनाएँ दी।