समाज/संस्कृति
दो हाथ Two hands
*# दो हाथ #*
सुक्र है कि सलामत है, मेरे दोनों हाथ,
दुआ , प्रार्थना में उठते मेरे दोनों हाथ ।
ग़ैर न पहचाने इस दिल की गुप्त बातें,
इसलिए तो रब ने दिए मेरे दोनों हाथ ।
इक हाथ जो हाथ से मिल गए,अद्भुत,
इतिहास की संकल्पना है, दोनों हाथ ।
दो हाथ मिले, मानो दो दिल खिल रहे,
बहुत कुछ सिखलाती है , दोनों हाथ ।
दो – दो हाथ करलें , ये पंक्ति बड़ी भी,
डर से छिना गब्बर ने हां , दोनों हाथ ।
झुकते भी हैं , तो संग उठते भी तो हैं ,
एक नम्र ,दूजा आशीष के,दोनों हाथ ।
एक से बेहतर दो भला ,
इनको किसने कब छला ।
हाथ से हाथ मिल जाए ,
दोनों हाथों की यह कला ।
मेरी रचनाओं को किसी भी तरह से उपयोग करने से पहले मेरी अनुमति अनिवार्य है , सर्वाधिकार सुरक्षित
*छोटू लाल नागवंशी*
थरगाँव,बलौदा बाजार(छ.ग.)