व्यक्तित्व निर्माण मे जीवन का अनुभव ही सच्चा साथी है …..सुमनलता यादव युवा लेखिका
मनुष्य जन्म लेते ही अनुभव करना शुरू कर देता है।बचपन मे उसका मस्तिष्क विकासशील अवस्था मे होता है इसलिए कुछ बचपन की बातें याद नहीं रहती।सबसे पहले हम अपनी माता पिता से अनुभव प्राप्त करते हैं फिर अपने परिवेश से व अपने विद्यालय के माहौल,अपने शिक्षक,अपने सहपाठी से अनुभव प्राप्त करते हैं।शिक्षा ग्रहण करने के बाद हम अपने कार्यलय व कार्यस्थल से अनुभव प्राप्त करते हैं।इस प्रकार मनुष्य जन्म से मृत्यु तक कुछ न कुछ अनुभव प्राप्त करता रहता है।यही अनुभव उसके जीवन का मार्ग प्रशस्त करता है।
जो व्यक्ति नकारात्मक सोच रखते हैं उन्हें नकारात्मक अनुभव प्राप्त होते हैं जिसके कारण उन्हें जीवन मे दुःख का अनुभव ज्यादा होता है,लेकिन जो व्यक्ति सकारात्मक सोचते हैं उन्हें सकारात्मक अनुभव प्राप्त होता है।सबसे ज्यादा ज्ञान और अनुभव तो शिक्षा से,यात्रा से व किताबें पढ़ने से प्राप्त होता है।
“अनुभव जीवन का सार है
कुछ सीखने की ललक उसी व्यक्ति में होती है जिसे सफलता से प्यार होता है।”
हम और आप जीवन मे जो कुछ भी कार्य करते हैं उससे कुछ न कुछ अनुभव जरूर प्राप्त करते हैं। कार्य जितना कठिन होता है अनुभव भी उतना ही ज्यादा मिलता है।प्रत्येक व्यक्ति के जीवन मे अनुभव प्रेरणा व उत्साह का कार्य करता है और हमे हमेशा अच्छा व बेहतर निर्णय लेने में मदद करता है।हमारे जीवन मे अवनुभ का होना उतना ही आवश्यक है जितना कि शिक्षित होना।प्रत्येक व्यक्ति अनुभव से ही बहुत कुछ सीखता है,इसलिये अनुभव को पुस्तकीय ज्ञान से ऊपर माना जाता है।मनुष्य का जीवन पूर्णतः अनुभव पर ही आधारित होता है।अनुभव से ही हमे सहन शक्ति मिलती है और यही आगे चलकर हमारा स्वभाव भी बन जाता है।हमारे व्यवहार में उतरे अनुभव के शब्द ही हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं।दूसरों के अनुभव से भी हमे बहुत से सिख मिलते हैं।
जीवन का शाश्वत सत्य है जन्म और मृत्यु इन दोनों के बीच “अनुभव”।जन्म लेने के साथ ही मनुष्य के मृत्यु का समय भी तय होता है,मौत से हर व्यक्ति डरता है लेकिन मौत का अनुभव व्यक्ति को जीवन की सच्चाई बता जाता है।मैने भी आज दूसरी बार मृत्यु को बहुत करीब से अनुभव किया है।