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महर्षि पतंजलि

पतंजलि प्राचीन भारत के एक मुनि थे जिन्हे संस्कृत के अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों का रचयिता माना जाता है। एक लोकप्रिय कहानी के अनुसार वह ऋषि अत्री और उनकी पत्नी अनुसूया के पुत्र थे।


महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) को अनंत का अवतार कहा जाता है, पवित्र नाग जिस पर महाविष्णु योग निद्रा में विश्राम करते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार भगवान विष्णु को शिव का नृत्य देखने के लिए उत्साहित देखकर, आदिशेष नृत्य सीखना चाहता था। ताकि वह अपने भगवान को खुश कर सके, इसके द्वारा प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने आदिशेष को आशीर्वाद दिया, और कहा कि भगवान शिव उनकी भक्ति के लिए, उन्हें आशीर्वाद देंगे। वह जन्म लेंगे ताकि वह मानव जाति को आशीर्वाद दे सकें और नृत्य कला का नेतृत्व कर सकें।

इस समय गोनिका नाम की एक सुप्रसिद्ध महिला, जो पूरी तरह योग के लिए समर्पित थी, एक योग्य पुत्र के लिए एक मुट्ठी भर जल के साथ प्रार्थना कर रही थी, जब उसने एक छोटा सांप उसके हाथ में घूमता देखा। वह सांप एक मानव रूप में बदल गया। वह सर्प आदिशेष के अलावा कोई नहीं था। जिसने महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) के रुप में जन्म लिया था।

जहाँ तक जन्म भूमि की बात रही, परंपरा कहती है कि वह किसी भी साधारण स्थान पर पैदा नहीं हुए थे। वह एक ऊँचे स्थान, एक दिव्य खगोलीय निवास से थे। परमपावन श्री श्री रविशंकर जी ने महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) को उच्च सम्मान में रखा है। उन्होंने पतञ्जलि (पतंजलि) योग सूत्र पर एक सरल और सुंदर टिप्पणी दी है। टिप्पणी इसकी प्रमाणिकता और गहराई में उत्कृष्टता देती है।

महर्षि पतंजलि का काल

इनका काल आज से करीब 200 ई. पूर्व माना जाता है। पतंजलि के ग्रंथों में लिखे उल्लेख से उनके काल का अंदाजा लगाया जाता है कि संभवतः राजा पुष्यमित्र शुंग के शासन काल 195 से 142 ई. पूर्व इनकी उपस्थिति थी।

पतंजलि कौन थे?

पतंजलि एक प्रख्यात चिकित्सक और रसायन शास्त्र के आचार्य थे। रसायन विज्ञान के क्षेत्र में अभ्रक, धातुयोग और लौह्शास्त्र का परिचय कराने का श्रेय पतंजलि को जाता है। राजा भोज ने महर्षि पतंजलि को तन के साथ हीं मन के चिकित्सक की उपाधि से विभूषित किया था।

इनको योगशास्त्र के जन्मदाता की उपाधि भी दी जाती हैं। जो हिन्दू धर्म के छह दर्शनों में से एक है। इन्होंने योग के 195 सूत्रों को स्थापित किया। जो योग दर्शन के आधार स्तंभ हैं। इन सूत्रों के पढ़ने की क्रिया को भाष्य कहा जाता है। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग की महत्ता का प्रतिपादन किया है। जिसका जीवन को स्वस्थ रखने में विशेष महत्त्व है। इनके नाम इस प्रकार हैं। – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, ध्यान, धारणा, प्रत्याहार, समाधि।


इनमें से वर्तमान समय में केवल आसन, प्राणायाम औए ध्यान हीं प्रचलन में हैं। इनके प्रयासों के कारण हीं योगशास्त्र किसी एक धर्म का न होकर सभी धर्म और जाति के शास्त्र के रूप में प्रचलित है।

पतंजलि द्वारा रचित ग्रन्थ

भारतीय दर्शन शास्त्र के धरोहर में इनके लिखे तीन ग्रंथों का वर्णन मिलता है। जिनके नाम हैं – योगसूत्र , आयुर्वेद पर ग्रन्थ एवं अष्टाध्यायी पर भाष्य। पतंजलि ने परिणि द्वारा रचित अष्टाध्यायी पर टिका लिखा जिसे महाभाष्य के नाम से जाना जाता है। महाभाष्य एक व्याकरण का ग्रन्थ है। जिसे वर्तमान समाज का विश्वकोश भी कहा जाता है। महाभाष्य द्वारा व्याकरण के जटिलता के रहस्य को सुलझाने में मदद मिलती है। इस ग्रन्थ के माध्यम से शब्द की व्यापकता पर प्रकाश डाल कर महर्षि पतंजलि ने स्फोटवाद नामक एक नविन सिद्धांत का प्रतिपादन किया है।


योगसूत्र की रचना महर्षि पतंजलि ने आज से लगभग 200 ई. पूर्व लिखा था। इस ग्रन्थ का अनुवाद विभिन्न देशी एवं विदेशी भाषाओं किया जा चुका है। भारतीय साहित्य के देन योगशास्त्र आज फिर से अपनी चरम पर है। अज इसका प्रचलन शरीर को स्वस्थ रखने के साथ हीं दिमाग को भी शांत करने के लिए किया जा रहा है।

महर्षि पतंजलि के नियम

पतंजलि ने कहा की जब तक ज्ञान चर्चा हेतु एक साथ 1000 शिष्य इकट्ठे नहीं होते, वह योग सूत्रों का प्रतिपादन नहीं करेंगे। ऐसे में विंध्य पर्वत के दक्षिण में 1000 शिष्य इकट्ठे हुए। महर्षि की एक और शर्त थी, उन्होंने कहा कि उनके और शिष्यों के बीच एक पर्दा रहेगा, जब तक ज्ञान का सत्र समाप्त न हो कोई भी उस परदे को नहीं उठाया जाएगा और न ही कक्ष से बाहर जाया जायेगा।

महर्षि पतंजलि ने 1000 शिष्यों को परदे के पीछे रहकर बिना एक शब्द बोले ज्ञान देना आरम्भ किया। यह एक अलौकिक दृश्य था, शिष्य अभूतपूर्व ऊर्जा का संचार महसूस कर रहे थे, पतंजलि बिना कुछ कहे ज्ञान का संपादन कर रहे थे।

शर्त की अवहेलना

एक शिष्य को लघुशंका के लिए कक्ष छोड़ना पड़ा, उसने सोचा की वह चुपचाप जायेगा और वापिस आ जायेगा। एक और शिष्य को जिज्ञासा हुई की महर्षि परदे के पीछे क्या कर रहे है? उसने उत्सुकतावश पर्दा उठा दिया। परदे के उठाते ही वहां उपस्थित शिष्य भस्म हो गए। यह देख पतंजलि अत्यंत दुखी हुए। उसी समय लघुशंका से लौटे शिष्य ने कक्ष में प्रवेश किया और बिना अनुमति के बाहर जाने के लिए क्षमा-याचना की।

पतंजलि का श्राप

करुणावश महर्षि पतंजलि ने बचे हुए सभी योग सूत्र उस शिष्य को दे दिए पर साथ ही उसे नियम की अवहेलना के लिए ब्रह्मराक्षस बन जाने का श्राप दिया। उन्होंने कहा की जब तक तुम ये ज्ञान किसी एक विद्यार्थी को नहीं देते, तब तक तुम ब्रह्मराक्षस बने रहोगे। ऐसा कहकर पतंजलि अंतर्ध्यान हो गए। इसका अर्थ ये है की जब कोई ज्ञानी व्यक्ति गलत करता है तो वह अधिक खतरनाक है, वह ब्रह्मराक्षस जैसी अवस्था है। ऐसे ही जब कोई ज्ञानी व्यक्ति गलत करता है, तो वह अबोध व्यक्ति के अपराध करने से अधिक खतरनाक है।

शिष्य ब्रह्मराक्षस बन कर एक पेड़ पर लटक गया और उस रास्ते से निकलने वाले राहगीरों से वह एक प्रश्न पूछता, जो भी उसका सही उत्तर नहीं देता; वह उसे खा जाता था। कुछ हजार वर्षो तक ऐसे ही चलता रहा और इस ब्रह्मराक्षस को कोई भी सक्षम विद्यार्थी नहीं मिल पाया।

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