हिन्दू धर्म में माता रानी का देवियों में सर्वोच्च स्थान है। उन्हें अम्बे, जगदम्बे, शेरावाली, पहाड़ावाली आदि नामों से पुकारा जाता है। संपूर्ण भारत भूमि पर उनके सैंकड़ों मंदिर है।
कैसे हुआ देवी का जन्म ?
देवी का जन्म सबसे पहले दुर्गा के रूप में ही माना जाता है जिसे राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए जन्म दिया गया था और यही कारण है कि उन्हें महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं को भगा कर महिषासुर ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था तब सभी देवता मिलकर त्रिमूर्ती के पास गए थे. ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने अपने शरीर की ऊर्जा से एक आकृति बनाई और सभी देवताओं ने अपनी शक्तियां उस आकृति में डाली. इसीलिए दुर्गा को शक्ति भी कहा जाता है. दुर्गा की छवि बेहद सौम्य और आकर्षक थी और उनके कई हाथ थे.
क्योंकि सभी देवताओं ने मिलकर उन्हें शक्ति दी इसलिए वो सबसे ताकतवर भगवान मानी जाती हैं. उन्हें शिव का त्रिशूल मिला, विष्णु का चक्र, बह्मा का कमल, वायु देव से उन्हें नाक मिली, हिमावंत (पर्वतों के देवता) से कपड़े, धनुष और शेर मिला और ऐसे एक-एक कर शक्तियों से वो दुर्गा बनी और युद्ध के लिए तैयार हुईं.
दुर्गा की शक्तियों के बारे में रिगवेद के श्लोक 10.125.1 से लेकर 10.125.8 तक देवी सूक्त: में पढ़ा जा सकता है.
आखिर पूजा 9 दिन ही क्यों की जाती है?
जब दुर्गा या देवी ने महिषासुर पर हमला किया और एक-एक कर दैत्यों को मारना शुरू किया तब भैंसे का रूप धारण करने वाले महिषासुर को मारने के लिए उन्हें 9 दिन लगे. इसलिए नवरात्रि को 9 दिन मनाया जाता है. इससे जुड़ी अन्य कथाएं भी हैं जैसे नवरात्रि को दुर्गा के 9 रूपों से जोड़कर देखा जाता है और कहते हैं कि हर दिन युद्ध में देवी ने अलग रूप लिया था और इसलिए 9 दिन 9 अलग-अलग देवियों की पूजा की जाती है. हर दिन को अलग रंग से जोड़कर भी देखा जाता है.
क्यों है अष्ट भुजाओं वाली?
देवी दुर्गा को अष्ट भुजाओं वाली कहा जाता है. कुछ शास्त्रों में 10 भुजाओं वाला भी कहा जाता है. वास्तु शास्त्र में 8 अहम दिशाएं होती हैं, लेकिन कई जगहों पर 10 कोण या दिशाओं की बात की जाती है. इनमें हैं प्राची (पूर्व), प्रतीची (पश्चिम), उदीची (उत्तर), अवाचि (दक्षिण), ईशान (नॉर्थ ईस्ट), अग्निया (साउथ ईस्ट), नैऋत्य (साउथ वेस्ट), वायु (नॉर्थ वेस्ट), ऊर्ध्व (आकाश की ओर), अधरस्त (पाताल की ओर). कई जगह 8 दिशाएं ही मानी जाती हैं क्योंकि आकाश और पाताल की ओर को दिशा का दर्जा नहीं दिया जाता. हिंदू शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना गया है कि देवी दुर्गा हर दिशा से अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और यही कारण है कि उनकी 8 भुजाएं हैं जो आठों दिशाओं में काम करती हैं.
शेर की सवारी ही क्यों ?
देवी को शेर पर सवार बताया जाता है. दुर्गा का वाहन शेर है और इसे अतुल्य शक्ति से जोड़कर देखा जाता है. ऐसा माना जाता है कि शेर पर सवार होकर दुर्गा मां दुख और बुराई का अंत करती हैं.
दुर्गा को त्रयंबके क्यों कहा जाता है?
दुर्गा को त्रयंबके कहा जाता है यानी तीन आखों वाली. शिव भी त्रिनेत्र कहलाएं हैं जिनकी तीन आखें थी. दुर्गा को शिव का ही आधा रूप माना जाता है जिसे शक्ति भी कहा जाता है. दुर्गा की तीन आखें अग्नि, सूर्य और चंद्र का प्रतीक मानी जाती हैं.
दुर्गा की पूजा के लिए 108 मंत्रों का जाप क्यों होता है?
नवरात्रि को दुर्गा पूजा के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि भगवान राम ने मां दुर्गा की पूजा की थी जिन्हें राम ने महिषासुर मर्दिनी के नाम से ही संबोधित किया था. ये पूजा रावण से युद्ध करने के पूर्व की गई थी और इसीलिए दशहरा नवरात्रि के अंत में मनाया जाता है जिस दिन रावण का वध हुआ था. माना जाता है कि राम जी ने दुर्गा पूजा के वक्त 108 नीलकमल चढ़ाए थे दुर्गा को और इसलिए ही 108 को शुभ माना जाता है.
हिन्दू धर्म में माता रानी का देवियों में सर्वोच्च स्थान है। उन्हें अम्बे, जगदम्बे, शेरावाली, पहाड़ावाली आदि नामों से पुकारा जाता है। संपूर्ण भारत भूमि पर उनके सैंकड़ों मंदिर है।
कैसे हुआ देवी का जन्म ?
देवी का जन्म सबसे पहले दुर्गा के रूप में ही माना जाता है जिसे राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए जन्म दिया गया था और यही कारण है कि उन्हें महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं को भगा कर महिषासुर ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था तब सभी देवता मिलकर त्रिमूर्ती के पास गए थे. ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने अपने शरीर की ऊर्जा से एक आकृति बनाई और सभी देवताओं ने अपनी शक्तियां उस आकृति में डाली. इसीलिए दुर्गा को शक्ति भी कहा जाता है. दुर्गा की छवि बेहद सौम्य और आकर्षक थी और उनके कई हाथ थे.
क्योंकि सभी देवताओं ने मिलकर उन्हें शक्ति दी इसलिए वो सबसे ताकतवर भगवान मानी जाती हैं. उन्हें शिव का त्रिशूल मिला, विष्णु का चक्र, बह्मा का कमल, वायु देव से उन्हें नाक मिली, हिमावंत (पर्वतों के देवता) से कपड़े, धनुष और शेर मिला और ऐसे एक-एक कर शक्तियों से वो दुर्गा बनी और युद्ध के लिए तैयार हुईं.
दुर्गा की शक्तियों के बारे में रिगवेद के श्लोक 10.125.1 से लेकर 10.125.8 तक देवी सूक्त: में पढ़ा जा सकता है.
आखिर पूजा 9 दिन ही क्यों की जाती है?
जब दुर्गा या देवी ने महिषासुर पर हमला किया और एक-एक कर दैत्यों को मारना शुरू किया तब भैंसे का रूप धारण करने वाले महिषासुर को मारने के लिए उन्हें 9 दिन लगे. इसलिए नवरात्रि को 9 दिन मनाया जाता है. इससे जुड़ी अन्य कथाएं भी हैं जैसे नवरात्रि को दुर्गा के 9 रूपों से जोड़कर देखा जाता है और कहते हैं कि हर दिन युद्ध में देवी ने अलग रूप लिया था और इसलिए 9 दिन 9 अलग-अलग देवियों की पूजा की जाती है. हर दिन को अलग रंग से जोड़कर भी देखा जाता है.
क्यों है अष्ट भुजाओं वाली?
देवी दुर्गा को अष्ट भुजाओं वाली कहा जाता है. कुछ शास्त्रों में 10 भुजाओं वाला भी कहा जाता है. वास्तु शास्त्र में 8 अहम दिशाएं होती हैं, लेकिन कई जगहों पर 10 कोण या दिशाओं की बात की जाती है. इनमें हैं प्राची (पूर्व), प्रतीची (पश्चिम), उदीची (उत्तर), अवाचि (दक्षिण), ईशान (नॉर्थ ईस्ट), अग्निया (साउथ ईस्ट), नैऋत्य (साउथ वेस्ट), वायु (नॉर्थ वेस्ट), ऊर्ध्व (आकाश की ओर), अधरस्त (पाताल की ओर). कई जगह 8 दिशाएं ही मानी जाती हैं क्योंकि आकाश और पाताल की ओर को दिशा का दर्जा नहीं दिया जाता. हिंदू शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना गया है कि देवी दुर्गा हर दिशा से अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और यही कारण है कि उनकी 8 भुजाएं हैं जो आठों दिशाओं में काम करती हैं.
शेर की सवारी ही क्यों ?
देवी को शेर पर सवार बताया जाता है. दुर्गा का वाहन शेर है और इसे अतुल्य शक्ति से जोड़कर देखा जाता है. ऐसा माना जाता है कि शेर पर सवार होकर दुर्गा मां दुख और बुराई का अंत करती हैं.
दुर्गा को त्रयंबके क्यों कहा जाता है?
दुर्गा को त्रयंबके कहा जाता है यानी तीन आखों वाली. शिव भी त्रिनेत्र कहलाएं हैं जिनकी तीन आखें थी. दुर्गा को शिव का ही आधा रूप माना जाता है जिसे शक्ति भी कहा जाता है. दुर्गा की तीन आखें अग्नि, सूर्य और चंद्र का प्रतीक मानी जाती हैं.
दुर्गा की पूजा के लिए 108 मंत्रों का जाप क्यों होता है?
नवरात्रि को दुर्गा पूजा के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि भगवान राम ने मां दुर्गा की पूजा की थी जिन्हें राम ने महिषासुर मर्दिनी के नाम से ही संबोधित किया था. ये पूजा रावण से युद्ध करने के पूर्व की गई थी और इसीलिए दशहरा नवरात्रि के अंत में मनाया जाता है जिस दिन रावण का वध हुआ था. माना जाता है कि राम जी ने दुर्गा पूजा के वक्त 108 नीलकमल चढ़ाए थे दुर्गा को और इसलिए ही 108 को शुभ माना जाता है.