
स्वामी विवेकानन्द जब अमेरिका गये थे तो एक दिन वे गेरुए वस्त्र में एक सड़क से गुजर रहे थे। लोगों को उनके वस्त्र बड़े अजीब लगे। वे लोग उनके पीछे-पीछे चलने एवं हँसी-मजाक बनाने लगे। शायद उन लोगों ने सोचा होगा कि यह कोई मूर्ख है।

जब काफी भीड़ इकट्ठी हो गयी, तो स्वामी जी पीछे मुड़कर भीड़ की ओर देखकर बोले–महोदय आपके यहाँ सभ्यता की कसौटी पोशाक है, पर हमारे देश में मनुष्य की पहचान उसके वस्त्रों से नहीं, चरित्र से होती है।’
स्वामी जी का इतना कहना था कि भीड़ लज्जित होकर धीरे-धीरे बिखर गयी।
स्वामी विवेकानन्द जब अमेरिका गये थे तो एक दिन वे गेरुए वस्त्र में एक सड़क से गुजर रहे थे। लोगों को उनके वस्त्र बड़े अजीब लगे। वे लोग उनके पीछे-पीछे चलने एवं हँसी-मजाक बनाने लगे। शायद उन लोगों ने सोचा होगा कि यह कोई मूर्ख है।
जब काफी भीड़ इकट्ठी हो गयी, तो स्वामी जी पीछे मुड़कर भीड़ की ओर देखकर बोले–महोदय आपके यहाँ सभ्यता की कसौटी पोशाक है, पर हमारे देश में मनुष्य की पहचान उसके वस्त्रों से नहीं, चरित्र से होती है।’
स्वामी जी का इतना कहना था कि भीड़ लज्जित होकर धीरे-धीरे बिखर गयी।