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पति की दिर्घायु की कामना के लिए बहनो मे दिखा श्रद्धा भक्ति और उत्साह के इंद्रधनुषी रंग हरितालिका तीज पर हुए विविध सांस्कृतिक आयोजन


रतनपुर -अखंड सौभाग्य एवं पति के दिर्घायु जीवन की.कामना के साथ शिव आराधना का पर्व हरितालिका तीज श्रद्धा,आस्था, और भक्ति के रस से पूरा नगर डूबा रहा।प्रातः काल से ही नगर की तीजहारिनो द्वारा शिव के गौर पूजा से व्रत का विधि पूर्वक शुरवात किया जिसके तहत नदी के बालू को शुद्ध जल मे सात बार धोकर के शिव और पार्वती की प्रतिमा बनाई गई और उनकी विधिवत पूजा की गई। संस्कार भारती रतनपुर की मातृशक्ति प्रमुख श्रीमती वर्षा श्रीवास्तव ने इस व्रत के विषय मे जानकारी देते हुए बताया की। हरितालिका तीज का व्रत भाद्रपद मास के तृतीया तिथि को मनाया जाता है।

प्राचीन काल में माता पार्वती ने कठोर तप करके शिवजी की पूजा की एवं उनको अपने पति के रूप में वरण किया था। इसलिए कुवांरी कन्या भी इस व्रत को करके श्रेष्ठ पति प्राप्ति की कामना करती है। इस दिन हम लोग अपने पारंपरिक व्यंजन ठेठरी,खुरमी,गुजिया पपरी विशेष रूप से बनाते है।बांस के बने हुए 16 पर्रीयो मे मंगल सुहाग का समान के साथ ही बेसन से ही स्वर्णाभूषण की प्रतिकृति के रूप मे माता जी के लिए तैयार गहनो को पर्रीयो मे ही भरकर शिव पार्वती को अर्पित करते है।साथ ही 16 प्रकार के फूल पत्तों से छत्र सजाया जाता है जिसे फूल्हेरा कहते है मायके से मिली हुई साडियो को फुल्हेरा के चारो ओर सजाते है।जो इस व्रत मे विशेष आकर्षण का केंद्र होता है। रात्रि मे शिवजी का षोषडोपचार पूजा के बाद माताएँ भजन किर्तन के माध्यम से शिव स्तुति करते हुए रात्रि जागरण करती है।फिर सभी सुहागिन महिलाएं एक दुसरे को हल्दी कुमकुम करके,अंखड़ सुहाग के लिए शुभकामनाएं देती है। चतुर्थी तिथि को प्रातकालः पवित्र सरोवर मे फुलेरा का विसर्जन करने के बाद इस व्रत का पारणा किया जाता है।कोराना के बाद हम लोगो का यह पहला सार्वजनिक उत्सव होने के कारण तैयारी को लेकर हम सभी बहने बेहद उत्साहित है।
इस पूजा मे  सुधा श्रीवास्तव, वंदना श्रीवास्तव, श्रीमती वत्सला श्रीवास्तव, श्रीमती मनोरमा शर्मा, श्रीमती सीता शर्मा, जशोमती जंघेल, कल्पना उजवने,तृप्ति भोजराज,  ममता यादव सहित बड़ी संख्या मे माताएँ शामिल हुई।

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