हिंदू धर्म के अनुसार प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का व्रत किया जाता है। कालाष्टमी को भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। यह तिथि भगवान काल भैरव को समर्पित होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान भैरव, शिव जी के ही रूद्रावतार हैं।
इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है। भगवान भैरव के अष्ट स्वरुप हैं जिनमें से गृहस्थ जीवन जीने वाले साधारण जन को बटुक भैरव की आराधना करनी चाहिए। ये भगवान भैरव का सौम्य स्वरुप हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार जो भी भगवान भैरव के भक्तों का अहित करता है उसे तीनों लोक में कही भी शरण प्राप्त नहीं होती है। इनकी पूजा से नकारात्मक शक्तियों, भय और शत्रुओं से मुक्ति प्राप्त होती है।
👉कालाष्टमी शुभ मुहूर्त
आषाढ़ कृष्ण पक्ष अष्टमी आरंभ- 01 जुलाई 02:01 पी एम
आषाढ़ कृष्ण पक्ष अष्टमी समाप्त – 02 जुलाई 03:28 पी एम
कालाष्टमी पूजा विधि
अष्टमी तिथि के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करके व्रत का संकल्प करें।
अब मंदिर की साफ-सफाई करके भगवान के सामने दीपक प्रज्वलित करें।
कालभैरव भगवान के साथ भगवान शिव की भी विधि-विधान से पूजा करें।
इसके बाद पूरे दिन व्रत करें और रात को पुनः पूजन करें।
भगवान कालभैरव की पूजा रात्रि के समय करने का विधान है।
धूप, काले तिल, दीपक, उड़द और सरसों के तेल से काल भैरव की पूजा करनी चाहिए।
इसके साथ ही उन्हें हलवा, मीठी पूरी और जलेबी आदि का भोग लगाना चाहिए।
वहीं पर बैठकर भैरव चालीसा का पाठ करें। पाठ पूर्ण हो जाने के पश्चात आरती करें।
👉कालाष्टमी महत्व
कालाष्टमी पर भगवान कालभैरव की पूजा आराधना करने से शत्रु बाधा से मुक्ति प्राप्त होती है। इसी के साथ जातक को अंजान भय, ग्रह दोष आदि से भी मुक्ति प्राप्त होती है। भगवान कालभैरव अपने भक्तों की हर संकट से रक्षा करते हैं। कालाष्टमी के दिन व्रत रखकर भगवान भैरव की पूजा से साधक के जीवन के संकट और समस्याएं दूर हो जाती हैं।
👉कालाष्टमी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। जब इस बात पर बहस बढ़ गई, तो इसका समाधान खोजने के लिए सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई।
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इसके बाद सभी से यह प्रश्न किया गया कि तीनों में श्रेष्ठ कौन है? इस पर सभी देवों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोज लिया। उस बात का समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया, परंतु ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए। इस बात पर शिव जी को क्रोध आ गया।
इसके बाद शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया। भगवान भैरव के अवतार का वाहन काला कुत्ता है। इनके एक हाथ में छड़ी है। इस अवतार को ‘महाकालेश्वर’ व दंडाधिकारी के नाम से भी जाना जाता है। शिव जी के इस स्वरुप को देखकर देवता भी भयभीत हो गए।
भगवान शिव के रुद्रावतार भगवान भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं। ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भगवान भैरव पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया।
इसके बाद भगवान शिव ने भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति का उपाय बताते हुए उन्हें पृथ्वी लोग पर जाकर प्रायश्चित करने को कहा। इस तरह से कई वर्षों के पश्चात अंत में जाकर काशी में इनकी यात्रा पूर्ण हुई। जिसके बाद ये काशी में ही स्थापित हो गए। इस तरह से ब्रह्महत्या के पाप का प्रायश्चित करने के कारण इनका नाम ‘दंडपाणी’ भी पड़ा।