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यमुना एक्सप्रेसवे बस हादसा: लाशों के ढेर में ऐसे मिलीं 6 जिंदगियां

सबका संदेश न्यूज़- दुर्घटनाग्रस्त बस तक सबसे पहले पहुंचने वाले चौगान निवासी किसान निहाल सिंह ने आंखों देखा जो मंजर बताया उसे सुनकर किसी का भी कलेजा कांप सकता है.
सोमवार तड़के तकरीबन साढ़े 4 बजे जब दिल्ली-लखनऊ जनरथ बस झरना नाले में गिरी तो उस वक्त चौगान गांव, एत्मादपुर के निहाल सिंह खेत में थे. धमाके जैसी आवाज़ सुनकर निहाल घटनास्‍थल की ओर दौड़े चले आए. सबसे पहले निहाल ने ही राहत कार्य शुरू किया था. उन्‍होंने कई घायलों को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त बस से बाहर निकाला और पुलिस को इसकी सूचना दी. इसके बाद वो गांव से दूसरे लोगों को मदद के लिए बुलाकर लाए. बस तक सबसे पहले पहुंचने वाले निहाल ने आंखों देखा जो मंजर बताया उसे सुनकर किसी का भी कलेजा कांप सकता है. कई दिन, महीनों और वर्षों तक इस हादसे की तस्वीर दिल-दिमाग पर असर डाल सकती है.
किसान निहाल ने बताया, ‘ड्राइवर साइड से बस नाले में आधी डूब चुकी थी. बस के शीशे बंद होने के कारण कई लोग हाथ-पैर चला रहे थे. चंद मिनटों में ही खून बस से बहकर नाले के पानी में मिलने लगा था. जिंदा लोग कम और लाशों के ढेर ज्यादा नज़र आ रहे थे. गांव तक मदद मांगने जाता तो काफी देर हो जाती. इसलिए जितना हो सका पहले अकेले ही लोगों को बचाने की ठानी.’
‘अंदर मेरी पत्‍नी और बच्‍ची है’
निहाल ने बताया कि जो लोग चिल्ला रहे थे उन्हें किसी तरह से खींचकर बाहर लाया. उन्‍होंने कहा, ‘इसी बीच एक घायल ने मेरा पैर पकड़ लिया. बोला अंदर मेरी बच्ची और पत्नी है. अगर देर हो गई तो वो मर जाएंगे. यह सुनकर मेरी आंखों से आंसू आ गए, लेकिन मैं अकेला क्या कर सकता था. जो भी घायल पास नज़र आ रहा था और आसानी से निकल सकता था उसे पहले बाहर ला रहा था
कराहने की आवाज आ रही थी, पर कोई दिख नहीं रहा था’
चौगान गांव निवासी निहाल ने आगे कहा, ‘जब मुझे लगा कि अब मैं अकेला कुछ नहीं कर पाऊंगा तो गांव की ओर दौड़ लगा दी. उसने पहले 1 घायल यात्री का मोबाइल लेकर 100 नंबर पर पुलिस को दुर्घटना की सूचना दे दी. तब तक गांव से भी कई लोग आ गए. गांव में एक जेसीबी थी उसे भी ले आए. अब लोगों के कराहने की आवाज़ तो आ रही थी, लेकिन कराहने वाले दिखाई नहीं दे रहे थे. इतनी लाशें पहली बार देखी थी. एक-एक लाश को हटाकर घायलों को तलाशने लगा
निहाल ने कहा, ‘दो-दो, तीन-तीन लाशों के नीचे बेहोश हो चुके घायल दबे हुए थे. 6 घायलों को तो खुद मैंने अकेले ही लाशों के नीचे से निकाला. कराहने की आवाज़ों का पीछा करते हुए घायलों को तलाशने का काम किया.’

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