भगवान के नाम रूप लीला और धाम का आश्रय लेना कल्याण कारी है
भगवान के नाम रूप लीला और धाम का आश्रय लेना कल्याण कारी है।
पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य महाभाग द्वारा संस्थापित राधा कृष्ण भवन धमतरी मे आयोजित सर्वजनहित कल्याण कारी साम्बसदा शिव महामृत्युंजय रुद्राभिषेक समारोह एवं शिव सहस्त्रार्चन महोत्सव कार्यक्रम के प्रधान यज्ञाचार्य पं झम्मन शास्त्री जी महाराज ने श्रद्धा लु भक्तों के सुमधुर वाणी मे सम्बोधित करते हुए ।कहा भगवान शिव जी के नाम स्वभाव और प्रभाव तीनो रूपो का चिन्तन करते हुए पुज्य पाद् जगद्गुरु शंकराचार्य जी ने कहा है शिव शंकर प्रलयकर शिव जी प्राणी मात्र को विश्राम प्रदान करने वाले सुखनिधान मंगल के धाम है उनका नाम लेने से जीव मात्र का कल्याण संभव है ।महा प्रलय के समय तीसरा नेत्र खोल देते है ।तो प्रलयकर भी है ध्यान रहे शिव जी तमोगुणी व्यक्तियो के लिए त्रीशूल भी रखते है। शिव जी भोले है तो हाथ मे भाला भी रखते है ।इसलिए शिव जी उपासक भक्त तेजस्वी ओजस्वी होते है।
अन्याय अधर्म अनीती के विरोध मे संघर्ष करने की प्रेरणा भगवान शिव जी से लेने की आवस्यकता है ।एकादश रूद्रवतार हनुमान जी इसलिए अपने लीला मे सेवा , सत्संग और संकीर्तन का आलम्बन लेकर ज्ञानीयो मे अग्रगण्य तथा बुद्धिमानो मे वरिष्ठ होते हूए ।धर्म संस्कृति एवं आदर्श परम्परा तथा राम राज्य की स्थापना के लिए असुरो के संहार भी करते है तथा भक्तो के उद्धर के लिए सदैव राम नाम जपते जपते प्रभु को अपने वश मे कर लिए भजन ऐसा हो काम रहित तो प्रभु शीघ्र प्रसन्न हो जाते है।राम मंत्र तारक भी है मारक भी है।मंत्र , देवता, यज्ञ , विधी सम्मत सम्पादन करने पर भगवतप्राप्ती के लिए मोक्षपाने के लिए परम साधन है कही शास्त्र विपरीत परम्परा से मंत्र प्रयोग यज्ञ किए तो मारक भी है ।इसलिए ध्यान देना चाहिए सनातन शास्त्र सम्मत वैदिक विधा का अवलम्बन लेकर ही उपासना यज्ञादि सत्कर्म करे
आचार्य श्री ने बताया दक्ष प्रजापति ने भी यज्ञ कराया शिव जी को अपमानित करने के उद्देश्य से भगवान ने विध्वंस करा दिया रावण ने भी यज्ञ किया तामस यज्ञ उसे भी विध्वंस करा दिया । यज्ञ मे विधि द्रव्य और उद्देश्य मान तीनो शुद्ध हो तो भगवान पुरा करने स्वयं पहुंच जाते है ।भगवान राम जंगलो मे ॠषि मुनियो की यज्ञ रक्षा के लिए अवतार लेते है।
सात्विक यज्ञ से स्वयं प्रकट होकर लीला करते है भगवान आद्य शंकराचार्य साक्षात शिव के अवतार थे ।
आज से 2528 वर्ष पूर्व जब सनातन परम्परा पर चारो तरफ से आक्रमण हो रहा था तो धर्म संस्कृति यज्ञ पूजा भजन कथा मठ मंदिर तीर्थ धाम की पुनः स्थापना के लिए देश भी एकता एवं अखण्डता के लिए उन्होंने आध्यात्मिक क्रांती के द्वारा शासन तंत्र एवं व्यास पीठ दोनो का शोधन कर सनातन शासन तंत्र की स्थापना भी इसलिए कलयुग में सार्वभौम धर्म गुरू शंकराचार्य मान्य है ध्यान रहे राम राज्य धर्म राज्य की स्थापना मनु के सिद्धांत पर आधारित था उस समय कोई दीन दुखी दरिद्र नही थे सब परस्पर प्रेम करते थे। उस व्यस्था का नाम ही वर्णाश्रम धर्म था जिसके पालन से शिक्षा रक्षा वाणिज्य और सेवाये 4 प्रकल्प समाज मे सदा संतुलित रहे इसलिए इस आदर्श परम्परा के पालन से ही राष्ट्र का विश्व का सर्वविध उत्कर्ष संभव है ।आयोजक राजेश शर्मा जी आयोजन स्थल राधा कृष्ण भवन धमतरी
धर्म संघ पीठपरिषद आदित्य वाहिनी आनंद वाहिनी छत्तीसगढ़