कोरबा। छत्तीसगढ़ किसान सभा के बैनर तले आज 30 जून को बांकीमोंगरा में एसईसीएल कोरबा क्षेत्र के भूविस्थापित किसानों एवं विस्थापन प्रभावित गांवों की पंचायत का आयोजन किया गया, जिसमें 15 गांवों के किसानों ने हिस्सा लिया। इस पंचायत में विस्थापन प्रभावित गांवों में बुनियादी मानवीय सुविधाओं के विस्तार के साथ ही मूल खातेदारों को काबिज जमीन की वापसी के लिए संघर्ष करने का प्रस्ताव पारित किया गया । किसान पंचायत ने प्रशासन द्वारा खनिज न्यास निधि के दुरुपयोग की भी तीखी निंदा की और खनन प्रभावित क्षेत्रों में वहां रह रहे लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए इस निधि का उपयोग करने तथा बांकीमोंगरा क्षेत्र के एसईसीएल हॉस्पिटल को सर्वसुविधायुक्त बनाकर इस क्षेत्र की आम जनता के लिए खोलने के साथ लंबित नौकरी का जल्द निराकरण करने की भी मांग की।
छग किसान सभा के जिला अध्यक्ष जवाहर सिंह कंवर और सचिव प्रशांत झा ने बताया कि इस पंचायत में सुराकछार बस्ती, रोहिना, बांकी बस्ती, मडवाढ़ोढा, भैरोताल, कपाटमुड़ा, डबरीपारा, घोड़देवा, गजरा, बांधापारा, मोंगरा, पोंसरा, तेलसरा सहित 15 गांवों के विस्थापन प्रभावित किसान शामिल हुए। इस किसान पंचायत की अध्यक्षता जवाहर सिंह कंवर, दीपक साहू, जनकदास, सत्रुहन दास, जिर्बोधन कंवर ने की।
पंचायत में हिस्सा लेते हुए फुलेश्वर सूरजइहा, गणेश राम चौहान, विशाल सिंह, जीवन दास, लखपत दास, गोविंद सिंह कंवर, ज्योतिभूषण यादव, अर्जुन सिंह के साथ अन्य विस्थापन प्रभावित किसानों ने अपनी समस्याओं पर विस्तार से बात रखी और इन सभी की बातों पर चर्चा की गई। किसान सभा के जिलाध्यक्ष जवाहर सिंह कंवर ने बताया कि भूमि अधिग्रहण के 50-60 सालों बाद भी किस तरह एसईसीएल खनन प्रभावित गांवों के लोगों को सड़क, बिजली, पानी, स्कूल, स्वास्थ्य, स्ट्रीट लाईट जैसी बुनियादी व मूलभूत सुविधाओं से वंचित कर रही हैं। किसान सभा जिला सचिव प्रशांत झा ने कोरोना काल मे स्वास्थ्य पर आए संकट और समय पर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध न होने और निजी क्षेत्र की लूट के बारे में भी विस्तार से बताया। इस अनुभव की रोशनी में उन्होंने राज्य सरकार द्वारा निजी स्वास्थ्य क्षेत्र को सरकारी खजाने से बढ़ावा देने के फैसले का तीखा विरोध किया तथा एसईसीएल बांकी मोंगरा हॉस्पिटल को सर्वसुविधायुक्त बनाकर आम जनता के लिए खोलने और निःशुल्क इलाज की मांग की।
किसान सभा नेता और भू-विस्थापित दीपक साहू ने कहा कि उनकी भूमि का अधिग्रहण तो केंद्र सरकार के कानून के अनुसार किया जाता है, लेकिन जब पुनर्वास, मुआवजा व रोजगार की बात आती है, तो इस पर केंद्रीय कानून लागू न कर एसईसीएल की घटिया नीति लागू की जाती है। अब यह नीति विस्थापन पीड़ित किसान स्वीकार नहीं करेंगे और केंद्र या राज्य सरकार की बेहतर नीति को लागू करने की मांग करेंगे। उन्होंने कहा कि जिस अधिग्रहित भूमि पर दसियों साल बाद भी वे काबिज हैं, उस भूमि को मूल खातेदारों को वापस किया जाना चाहिए । किसान पंचायत ने इस मुद्दे पर आंदोलन-अभियान छेड़ने का भी निर्णय लिया।
🔺 किसान सभा के नेताओं ने बताया कि भू-विस्थापित किसानों की इस पंचायत में डि-पिल्लरिंग के कारण किसानों को हुए नुकसान का मुआवजा देने और जमीन को खेती योग्य बनाने, जिला खनिज न्यास निधि (डीएमएफ) से खनन प्रभावित गांवों में मूलभूत सुविधाओं का विस्तार करने, भू-विस्थापित परिवारों को प्रमाण पत्र देने, बेरोजगारों को वैकल्पिक रोजगार देने, लंबित नौकरी के प्रकरणों का जल्द निराकरण करने आदि मुद्दों-मांगों पर भी चर्चा की गई और खनन प्रभावितों को लामबंद करने का फैसला किया गया।
🔴 खनन और विस्थापन प्रभावित किसान पंचायत ने आगामी दिनों में इन सभी मांगों को लेकर हस्ताक्षर अभियान चलाने और एसईसीएल के चारों क्षेत्रों के साथ ही देबू व एनटीपीसी और अन्य संस्थानों के विस्थापित किसानों को भी बड़े पैमाने पर लामबंद करने का निर्णय लिया है ।