छत्तीसगढ़

2008 में आदिवासी उत्थान की सोच से मनमोहन सिंह सरकार द्वारा स्वीकृत राशि छत्तीसगढ़ राज्य वनोपज संघ के खाते में जस का तस बैंक में जमा हैWith the thought of tribal upliftment in 2008, the amount sanctioned by the Manmohan Singh government is deposited in the account of the Chhattisgarh State Forest Produce Association.

*2008 में आदिवासी उत्थान की सोच से मनमोहन सिंह सरकार द्वारा स्वीकृत राशि छत्तीसगढ़ राज्य वनोपज संघ के खाते में जस का तस बैंक में जमा है*

रायपुर :
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ के पावरफुल आईएफएस अधिकारी, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को हटाने के लिए सफलतापूर्वक सुपारी ले ली है….

*केन्द्र सरकार ने वनोपज प्रसंस्करण के लिये दी थी 32 करोड़*
2008 में केंद्रीय अनुसूचित जनजाति मंत्रालय द्वारा कांकेर, बस्तर, सरगुजा, जशपुर, बिलासपुर और कवर्धा जिले में इमली, महुआ और लाख एवं ऐसे ही अन्य वनोपज उपज से संबंधित प्रसंस्करण यूनिट लगाने के लिए ₹ 32 करोड़ों रुपए दिए गए थे। बता दूं कि 2008 में मनमोहन सिंह सरकार ने आदिवासी उत्थान के लिये रमन सिंह सरकार को यह रुपया भिजवायी थी। बिलासपुर के सरकंडा में इमली प्रसंस्करण उद्योग लगना प्रस्तावित था।

*बैंक में 60 करोड़ से ऊपर जमा*
लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ आज तारीख तक किसी भी जिले में वनोपज से संबंधित कोई भी प्रसंस्करण ईकाई नहीं लगा पाई और राशि को बैंक में जमा करके रखी गयी है। आज व्याज सहित यह राशि ₹ 60 करोड़ों रुपए से ऊपर होती है।

*कांकेर वनमंडल को 40 लाख दिया*
इस बीच कुछ समय तक छत्तीसगढ़ राज्य लघु सहकारी संघ में संचालक मंडल कार्यरत नहीं था, प्रभारी अधिकारी पदेन अध्यक्ष के रूप में आईएएस की नियुक्ति हो गई थी। उस समय भी उपरोक्त जिलों में वनोपज से संबंधित उद्योग लगाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। कांकेर जिले के ग्राम नवागांव भावगीर में प्रसंस्करण उद्योग लगाने के लिए जमीन भी अधिग्रहित करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गयी थी, लेकिन वह जमीन वन विभाग की थी, जिससे केंद्र से अनुमति ले लिया गया था और इसके बदले में छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ ने 40 लाख रुपए कांकेर वन मंडल को भुगतान भी कर दिया।

लेकिन उद्योग लगाने की प्रक्रिया में अपने कदम आगे नहीं बढ़ाएं यह राशि आदिवासी बहुल क्षेत्रों के लिए दिया गया था, अब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को बदनाम करने के लिए, ऐसा प्रतीत होता है, उनके विधानसभा क्षेत्र पाटन में इस संबंध में कोई उद्योग लगाने का प्रावधान छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ ने किया है और वह राशि शासन को बहुत जल्द भुगतान भी करने जा रही है।

*तो फिर पाटन बन जायेगा नंदीग्राम*
यदि ऐसा होता है, तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के विरुद्ध, सरगुजा संभाग, बस्तर संभाग, जशपुर और कवर्धा जिला एवं ऐसे ही अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में विरोध के स्वर उठने लगेंगे और ऐसा प्रतीत होगा कि आदिवासियों का पैसा गैर आदिवासी क्षेत्र में खर्च किया जा रहा है, पाटन छत्तीसगढ़ का यह नंदीग्राम बन सकता है, छत्तीसगढ़ सरकार को मुख्य सचिव को और स्वयं मुख्यमंत्री को इसको संज्ञान में लेना चाहिए, नहीं तो उनकी बदनामी होगी और छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ के अधिकारी अपनी कार योजना में सफल हो जाएंगे।

*पूर्व मुख्य सचिव से वफादारी*
वह तो आज तक अपने पुराने मालिक किसी वफादारी कर रहे हैं और उन के माध्यम से प्रतिनियुक्ति पर हुडको अध्यक्ष बनकर नई दिल्ली जाना चाहते हैं।

*रमन शासनकाल में आदिवासी नेता मौन*
2008 से 2018 तक छत्तीसगढ़ में भाजपा का शासन था, इस बीच ननकीराम कंवर, गणेश राम भगत, विक्रम उसेंडी, महेश गागडा वन मंत्री थे और इन 12 वर्षों में आदिवासियों में रामविचार नेताम, रामसेवक पैकरा, केदार कश्यप जैसे कद्दावर आदिवासी भी मंत्री पद पर थे। लेकिन उन्होंने भी कोई प्रयास नहीं किया।

केंद्र की राशि से आदिवासी क्षेत्रों में उद्योग लगाने के लिए और ना ही वन विभाग के अधिकारियों ने उपरोक्त मंत्रियों के संज्ञान में यह बात लायी।

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