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*कोरोना और लॉकडाउन ने नवरात्र व रमजान के सीजन में लगाया ग्रहण, जरूरतमंदों को मौसमी फलों के पड़ रहे लाले*

✍️रितु नामदेव

बेमेतरा:- नवरात्र एवं रमजान के सीजन में मौसमी सीजनयुक्त फलों के कारोबार पर ज़िलाव्यापी तालाबन्दी का व्यापक असर देखने को मिल रहा है।जबकि लॉकडाउन लगने के बाद से ही त्योहारी सीजन, धार्मिक अनुष्ठानों, मरीजों व घरेलू परिवारिक कार्यक्रमों का काफी महत्व रहता है।जिसके चलते फलों की काफी डिमांड होने के चलते जरूरतमंदों की पूर्ति में बहुतायत कमी देखने को मिल है।ज़िला मुख्यालय से लेकर समस्त नगरीय व ग्रामीण क्षेत्रों में सीजनयुक्त फलों को लेकर मारामारी की स्थिति नज़र आ रही है ।आम नागरिक मौसमी फलों के लिये दर-दर भटकते देखे जा रहे है। गौरतलब हो कि नवरात्र में उपवास रखने वाले श्रद्धालुओं एवं रमजान में रोजा रखने वाले रोजेदारों के लिए मौसमी फल ही जरूरी होता है।जिसमे सेब, अंगूर, अनार, नाशपती, मुसम्बी, संतरा, केला, पपीता, आम इत्यादि धार्मिक अनुष्ठानों में काफी उपयोगी होता है।इसके साथ ही मरीजों के लिए काफी फायदेमंद व मह्त्वपूर्ण माना जाता है।इसके बावजूद पूरे क्षेत्र सहित जिलेभर में फलों की किल्लत देखते को मिल रही है। यू तो समूचे ज़िलाक्षेत्र सहित पूरे ज़िले में कोविड-19 के बढ़ते प्रकोप के चलते लॉकडाउन का दौर चल रहा है।जिसमे अब फलों की मार ने फलप्रेमियों की चिंता बढा दी है।चूँकि लॉकडाउन लगे होने से फलों का आयात बन्द व प्रभावित है।वही पुराना स्टॉक कुछ दिनों पूर्व ही खत्म हो चुका है।जिससे महंगी कीमतों पर भी फल नही मिल रहे है।आलम यह है कि पूरे ज़िलाभर में दैनिक जरूरत, रोजे व उपवास तोडने, घरेलू परिवारिक कार्यक्रम एवं बिस्तर पर रहने विभिन्न बीमारियों के रोगियों की जरूरत की पूर्ति के लिए आम नागरिक दूर दूर तक फलों को ढूंढते फिर रहे है।जो लॉकडाउन में एक बड़ी मुसीबत बन चुका है। जिससे अंततः स्थानीय व क्षेत्रीय फलों से ही काम चलाना पड़ रहा है।जिसमे मुख्य रूप से तरबूज, खरबूजा, केला, लकड़ी, पपीता इत्यादि ही अभी ग्रामीण परिवेश में जरूरतमन्दो के लिए मिल रहे है।लेकिन मौसमी फल आम आदमी की पहुंच से बाहर हो चुका है।जबकि लॉकडाउन के बाद ही फलों का मार्केट गुलजार हो पायेगा।तबतक नवरात्र व रमजान का सीजन भी खत्म हो जाएगा।

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