वे मुल्क, जिन्होंने सार्स जैसी महामारी से लिया सबक, अब जीत रहे हैं कोरोना से जंग lessons from sars and mars and what india can learn coronavirus | knowledge – News in Hindi

सार्स का हमला
सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम या सार्स नाम की ये बीमारी नवंबर 2002 से जुलाई 2003 के बीच फैली. सबसे पहले दक्षिणी चीन में सार्स रोग प्रकोप शुरू हुआ, जिसके जल्दी ही उसके सारे पड़ोसी देशों को चपेट में ले लिया. श्वसन तंत्र पर हमला करने वाली इस बीमारी से 774 लोगों की मौत दर्ज की गई. कोरोना के मुकाबले ये आंकड़ा कुछ भी नहीं है, लेकिन पूर्वी एशिया इससे हिल गया. चीन और उसके पड़ोसी देशों जैसे हांगकांग, जापान, ताईवान, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया और मकाऊ में हेल्थ सिस्टम में बड़े स्तर पर बदलाव दिखे. साथ ही लोगों की आम जिंदगी में भी ये बदलाव देखे गए.

अब भी अगर किसी को सर्दी-खांसी होती है तो वो मास्क पहने बिना बाहर नहीं निकलता
जैसे चीन (China) के पड़ोसी देश वियतनाम (Vietnam) को एक विजेता की तरह देखा जा रहा है. यहां अब तक सिर्फ 288 कोरोना संक्रमित आए, जिनमें से अब केवल 47 मामले एक्टिव हैं, वहीं एक भी मौत नहीं हुई है. ये अपने आप में कोरोना से सबसे बड़ी जीत कही जा सकती है. लेकिन इसके पीछे कुछ दिनों या महीनों की नहीं, बल्कि सालों की तैयारी है. वियतनाम भी सार्स से प्रभावित हुआ था. इसके बाद ही इसके साथ ईस्ट एशिया के लगभग सारे प्रभावित देशों में लोगों ने लंबे वक्त तक मास्क पहना. इन देशों में बीमारी खत्म होने के बाद से लेकर अब भी अगर किसी को सर्दी-खांसी होती है तो वो मास्क पहने बिना बाहर नहीं निकलता.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक एक बड़ा बदलाव ये रहा कि लोग पब्लिक प्लेस पर किसी भी चीज को ऊंगलियों से छूने से परहेज करने लगे. जैसे अगर कोई लिफ्ट में है तो वो बटन को ऊंगलियों की टिप से नहीं दबाएगा, बल्कि ऊंगलियों के जोड़ (finger knuckle) से दबाएगा. इससे सीधा संपर्क टल जाता है. लगातार हाथ धोना इन सभी देशों में एक नियम बन चुका है. साथ ही सार्वजनिक स्थानों पर जाने पर शरीर का तापमान चेक किया जाता है, फिर चाहे वो रेस्त्रां हो या फिर कोई सरकारी बिल्डिंग. लोग खुद भी अपने घरों पर रोज तापमान लेते हैं. ये वहां की प्रैक्टिस में आ चुका है.

ही सार्वजनिक स्थानों पर जाने पर शरीर का तापमान चेक किया जाता है, फिर चाहे वो रेस्त्रां हो या फिर सरकारी बिल्डिंग
आम लोगों की रुटीन प्रैक्टिस तो बदली है, साथ ही हेल्थ को लेकर सरकारी नजरिया भी बदला. सार्स से पहले हेल्थ इंश्योरेंस या हेल्थ की सुविधाओं पर सरकारी पैसे कम लगाए जाते थे. लेकिन महामारी के बाद ये रवैया बदला. चीन में इसे ठीक करने के लिए अलग अप्रोच अपनाया गया. यहां सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं तो सुधरी हीं, साथ ही सोशल हेल्थ स्कीम भी शुरू की गईं. कुछ ही सालों के भीतर सेहत पर सरकारी फंडिंग तीन गुनी से भी ज्यादा हो गई और सबका इंश्योरेंस सुनिश्चित किया गया. दक्षिण कोरिया का हेल्थकेयर सिस्टम भी काफी अच्छा रहा है. साल 2015 में Organisation for Economic Co-operation and Development (OECD) ने दुनिया का सबसे अच्छा हेल्थकेयर सिस्टम घोषित किया था. यूके के फ्री हेल्थकेयर सिस्टम NHS की तुलना में यहां का सिस्टम निजी तरीके से चलता है लेकिन देश की 97 प्रतिशत आबादी को नेशनल हेल्थ इंश्योरेंस मिलता है. छोटे देशों, जैसे वियतनाम, कंबोडिया और लाओस ने काफी भारी रकम हेल्थ केयर के लिए ली.

कुछ ही सालों के भीतर सेहत पर सरकारी फंडिंग तीन गुनी से भी ज्यादा हो गई और सबका इंश्योरेंस सुनिश्चित किया गया
साल 2009 में फैले H1N1 ने भी इन देशों को और सतर्क कर दिया. वैसे सार्क के दौरान एक बड़ा बदलाव हुआ. Association of South-East Asian Nations ने कई संस्थाओं के साथ मिलकर ये तय किया कि किसी भी तरह की बीमारी के संक्रामक दिखने की अवस्था में WHO दूसरे देशों को सर्तक करेगा ताकि वे संभल सकें. इसक तहत International Health Regulations (IHR) और भी तगड़ा हुआ. जैसे सिर्फ 18 ही महीने के भीतर IHR रिवाइज हो गया, जबकि आमतौर पर इंटरनेशनल संस्थाओं में किसी भी नियम के संशोधन में सालों लग जाते हैं.
यही वजह है कि चीन से सटा होने और लगातार व्यापार या दूसरे कारणों से आवाजाही होने के बाद भी ईस्ट एशियन देश कोरोना से मुकाबला जीतते दिख रहे हैं.
पुराने वक्त में होने वाली हैजा, प्लेग जैसी महामारियों के बाद भारत को पहली ही बार इतने बड़े स्तर पर स्वास्थ्य संकट देखना पड़ा है. माना जा रहा है कि इस महामारी के दौरान लिए गए सबक, जैसे हाथ धोना और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे तरीके आगे काफी काम आ सकते हैं. साथ ही पब्लिक हेल्थ को लेकर सरकारी तरीके भी बदलेंगे. इसके अलावा गैरजरूरी और जरूरी बिजनेस ट्रैवल जैसी चीजें भी तय होंगी.
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