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Krishna ne kyun diya tha Ashwathama ko Shrap? : जाने किस वजह से आज कलयुग में भी दर दर भटक रहा है महाभारत का ये श्रापित योद्धा..

Mahabharat Krishna ne kyun diya ashwathatma ko shrap

Krishna ne kyun diya tha Ashwathama ko Shrap? : महाभारत युद्ध से पूर्व गुरु द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी माता कृपि ने शिव की तपस्या की। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्हे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। कुछ समय पश्चात् माता कृपि ने एक सुन्दर तेजश्वी बाल़क को जन्म दिया। जन्म ग्रहण करते ही इनके कण्ठ से हिनहिनाने की सी ध्वनि हुई जिससे इनका नाम अश्वत्थामा पड़ा। जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी। जो कि उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी। वह मणि अश्वत्थामा को बुढ़ापे, भूख, प्यास और थकान से भी बचाती थी। भगवान शिव से प्राप्त उस शक्तिशाली दिव्य मणि ने अश्वत्थामा को लगभग अजेय और अमर बना दिया था।

Krishna ne kyun diya tha Ashwathama ko Shrap?

महाभारत युद्ध के समय गुरु द्रोणाचार्य जी ने हस्तिनापुर (मेरठ) राज्य के प्रति निष्ठा होने के कारण कौरवों का साथ देना उचित समझा। अश्वत्थामा भी अपने पिता की तरह शास्त्र व शस्त्र विद्या में निपुण थे। महाभारत के युद्ध में उन्होंने सक्रिय भाग लिया था। पिता-पुत्र की जोड़ी ने महाभारत युद्ध में पाण्डव सेना को तितर-बितर कर दिया। पांडवों की सेना की पराजय देख़कर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को कूटनीति अपनाने का विमर्श दिया। इस योजना के अंतर्गत यह सूचना प्रसारित कर दी गई कि “अश्वत्थामा” का वध हो गया है। जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की सत्यता ज्ञात करनी चाही तो उन्होने उत्तर दिया-“अश्वत्थामा वध कर दिया गया, परन्तु गज”। परन्तु उन्होंने बड़े धीमे स्वर में “परन्तु गज” कहा, और मिथ्या वचन से भी बच गए।

Krishna ne kyun diya tha Ashwathama ko Shrap?

श्रीकृष्ण ने उसी समय शन्खनाद किया, जिसके शोर से गुरु द्रोणाचार्य अंतिम शब्द सुन ही नहीं पाए। अपने प्रिय पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर अपने शस्त्र त्याग दिये और युद्धभूमि में नेत्र बन्द कर शोक संतप्त अवस्था में विराजित हो गये। गुरु द्रोणाचार्य जी को नि:शस्त्र देखकर द्रोपदी के भ्राता द्युष्टद्युम्न ने खड्ग (तलवार) से उनका मस्तक (शीश) विच्छेद कर डाला। गुरु द्रोणाचार्य की निर्मम वध के पश्चात पांडवों की विजय होने लगी। अपने राजा दुर्योधन की ऐसी अवस्था देखकर और अपने पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु का स्मरण कर अश्वत्थामा अधीर हो गया। दुर्योधन जल बंधन की कला जानता था। सो जिस सरोवर के निकट गदायुध्द हो रहा था उसी सरोवर में प्रवेश कर गया और जल को बांधकर छुप गया। दुर्योधन के पराजित होते ही युद्ध में पाण्डवो की विजय सुनिश्चित हो गई, समस्त पाण्डव दल विजय की प्रसन्नता में मतवाले हो रहे थे।

Krishna ne kyun diya tha Ashwathama ko Shrap? : अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर पांडवों के विनाश करने का प्रण लिया

अश्वत्थामा को जब पता चला कि गुरु द्रोण का वध छल से किया गया है, तो उसने अंदर प्रतिशोध की ज्वाला धधक उठी। अश्वत्थामा ने पांडवों के वंश का विनाश करने का प्रण लिया। इसके बाद अश्वत्थामा ने पांडव सेना पर नारायणस्त्र से प्रहार किया लेकिन श्रीकृष्ण ने पांडवों सहित सभी योद्धाओं को बचा लिया। इसके बाद अश्वत्थामा का क्रोध यहां ही शांत नहीं हुआ, बल्कि उसने पांडवों के शिविर में जाकर पांडवों को निद्रा में ही मारने की योजना बनाई लेकिन उस रात शिविर में द्रौपदी के पांचों पुत्र अपनी मां और पांचों पांडवों से मिलने आए थे। जब ये पांचों बालक नींद में सो रहे थे, तो अश्वत्थामा पांचों का वध कर दिया। कुछ कहानियों में इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि अश्वत्थामा ने जानबूझकर पांडव पुत्रों का वध किया था।

Krishna ne kyun diya tha Ashwathama ko Shrap?

अश्वत्थामा का क्रोध यहीं पर शांत नहीं हुआ बल्कि जब श्रीकृष्ण और पांडवों को अश्वत्थामा के इस जघन्य पाप के बारे में पता चला, तो उसे अपनी करनी पर बिल्कुल भी लज्जा नहीं आई। अपने प्राणों की रक्षा के लिए अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र अर्जुन पर छोड़ दिया। श्रीकृष्ण ने जब अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र रोकने के लिए कहा, तो उसने ब्रह्मास्त्र की दिशा अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल शिशु की तरफ मोड़ दी। श्रीकृष्ण ने अपनी शक्ति से उत्तरा के मृत शिशु को फिर से जीवित कर दिया। अश्वत्थामा के बढ़ते आंतक को रोकना बहुत आवश्यक हो गया था।

Krishna ne kyun diya tha Ashwathama ko Shrap? : इस पाप के कारण भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को दिया भयानक शाप

क्रोध और प्रतिशोध की अग्नि में जलता हुआ अश्वत्थामा अंधा हो चुका था। ऐसे में अश्वथामा को रोकना अत्यंत आवश्यक को गया था क्यूंकि वह पूरी सृष्टि के विनाश का कारण बन सकता था। तभी श्रीकृष्ण ने द्रौपदी और पांडवों के मासूम पुत्रों का वध करने और एक गर्भस्थ शिशु को मारने का प्रयास करने के लिए अश्वत्थामा को दंड दिया। कृष्ण ने अश्वत्थामा की दिव्य मणि उसके माथे से निकाल ली। इसके बाद भी अश्वत्थामा शांत नहीं हुआ और श्रीकृष्ण पर प्रहार करने लगा। अश्वत्थामा के प्रायश्चित के लिए श्रीकृष्ण ने उसे शाप दिया कि ‘तुम अपने पिता की मृत्यु को स्वीकार नहीं कर पा रहे हो, इसलिए मृत्यु का सत्य तुमसे कलियुग के अंत तक दूर ही रहेगा। तुमने ऐसा पाप किया है कि तुम मनुष्यों के बीच रहने के लायक नहीं हो, इसलिए तुम हमेशा भटकते रहोगे। तुम्हारा शरीर लघु और गंध से भरा रहेगा, तुम्हारे माथे से सदैव लहू बहता रहेगा। जिससे तुम्हें अपने पाप याद आएंगे। कोई भी तुम्हारी सहायता के लिए आगे नहीं आएगा’।

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