छत्तीसगढ़

ईश्वर को कभी न छोड़ें -ज्योतिष।* वही आपका अनादि काल से अनंत काल तक, अच्छी या बुरी प्रत्येक परिस्थिति में साथ देने वाला, सच्चा मित्र है

**ईश्वर को कभी न छोड़ें -ज्योतिष।*
वही आपका अनादि काल से अनंत काल तक, अच्छी या बुरी प्रत्येक परिस्थिति में साथ देने वाला, सच्चा मित्र है।
जीवन में कभी सुख आता है, कभी दुख आता है। कभी लाभ होता है, कभी हानि होती है। कभी कोई व्यक्ति सहयोग देता है, तो कोई विरोध करता है। कभी व्यक्ति स्वस्थ होता है, तो कभी रोगी भी हो जाता है इत्यादि अनेक ऊंची नीची परिस्थितियां जीवन में आती रहती हैं। *जब अच्छी अनुकूल सुखदायक परिस्थितियां होती हैं, तब तो व्यक्ति प्रसन्न रहता है। उसे किसी प्रकार की कोई चिंता तनाव टेंशन नहीं होती। परंतु जब प्रतिकूल परिस्थितियाँ आती हैं, तब वह दुखी चिंतित परेशान एवं तनाव युक्त हो जाता है। तब अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए वह सांसारिक उपाय ढूँढता है। अपने मित्रों साथियों से निवेदन करता है कि मैं मुसीबत में हूं, मेरी सहायता करें। मेरी समस्याएं हल करें। मेरे दुखों को दूर करें।
ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में परिवार एवं समाज के लोग भी उसकी मदद करते हैं। रोगी होने पर चिकित्सक डॉक्टर आदि भी उसकी सहायता करते हैं। परंतु इन सब की एक सीमा है। *ये सब लोग अल्पज्ञ एवं अल्पसामर्थ्य वाले हैं। इनका सामर्थ्य सीमित होने से, सारी समस्याओं को ये लोग दूर नहीं कर पाते।
जब व्यक्ति चारों ओर से समस्याओं से घिर जाता है। सांसारिक सहारे काम नहीं आते, समस्याएँ हल नहीं हो पातीं। तब अंत में उसे ईश्वर याद आता है। तब वह ईश्वर की शरण लेता है, और प्रार्थना करता है कि *”हे भगवन ! अब तो आप ही मेरे रक्षक हैं। अब सारे सहारे फीके पड़ गए हैं। कोई भी मेरी समस्या को हल नहीं कर पा रहा है। मैं रोगी हो गया हूं। चिकित्सकों डॉक्टरों ने भी हाथ ऊंचे कर दिए हैं। वे भी यही कह रहे हैं, कि “हमारे वश में अब कुछ नहीं है। अब तो भगवान ही मालिक है।” इसलिए भगवन! मैं अंत में आप की शरण में आया हूं। अब आप ही मेरी रक्षा करें। मेरे सब दुखों को दूर करें।
इस प्रकार से हम देखते हैं, कि *अंतिम शरण तो ईश्वर ही है। कैसी भी खराब परिस्थिति हो, व्यक्ति अंत में ईश्वर के पास ही जाता है। यदि सारे सहारे प्रभावहीन हो जाते हैं। तब केवल वही याद आता है। तो क्यों न सारे जीवन, ऐसे उत्तम ईश्वर को अपना सहारा बना कर चलें, कि ऐसी मुसीबत आए ही नहीं।और यदि हमारे आलस्य प्रमाद आदि अन्य दोषों के कारण से, कभी-कभार मुसीबत आ भी गई, तो ईश्वर की शक्ति हमारे साथ होने से, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाएगी। *इसलिए यही उत्तम मार्ग है, कि अपने नित्य मित्र ईश्वर को कभी न छोड़ें। वही हमारा तथा सब का रक्षक है। उसी पर सबसे अधिक विश्वास करें।अन्यों का भी सहयोग लेवें, इस बात का निषेध नहीं है। परंतु सबसे अधिक विश्वास ईश्वर पर करें। अन्य सहारे कभी छूट भी जाएं, सहयोग न दें या कम सहयोग देवें, अथवा वे सहारे असमर्थ हो जाएँ, हमारी समस्याओं को हल न कर पाएँ, तब भी चिंता न करें। ईश्वर तो नित्य सहारा है ही। अतः ईश्वर को कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए। सदा ईश्वर के आदेश निर्देश संदेश का पालन करना चाहिए। उसके विरुद्ध आचरण नहीं करना चाहिए। *ईश्वर के आदेश निर्देश के विरुद्ध आचरण करना ही, ईश्वर को छोड़ देना कहलाता है।

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