छत्तीसगढ़

मुंगेली करवा चौथ का व्रत महिलाओं ने बड़े अच्छे से मनाया अपने पति की लंबी आयु के लिए रखे निर्जला व्रत

मुंगेली करवा चौथ का व्रत महिलाओं ने बड़े अच्छे से मनाया अपने पति की लंबी आयु के लिए रखे निर्जला व्रत

करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से पहले शुरू होता है और चंद्रमा निकलने के बाद खत्म होता है।सुहागन महिलाएं चांद को अर्ध्य देने के बाद छन्नी में दीया रखकर चंद्रमा की पूजा करती हैं और फिर इसी छलनी से पति को देखती हैं. इसके बाद पति के हाथों पानी पीकर अपना दिनभर का निर्जला व्रत तोड़ती हैं।

इस दिन होती है चंद्रमा की पूजा-

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी के रिश्ते की डोर को मजबूती प्रदान करता है।चंद्रमा को लंबी उम्र, सुख और शांति का कारक माना गया है. इनकी पूजा से वैवाहीक जीवन खुशहाल बना रहता है।

करवा चौथ व्रत कथा

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक एक साहूकार के सात बेटे थे और उसकी करवा नाम की एक बेटी थी। एक बार करवा चौथ के दिन साहूकार के परिवार में व्रत रखा गया।रात को जब सब भोजन करने लगे तो करवा के भाइयों ने उसे भी भोजन करने के लिए कहा।लेकिन उसने मना कर दिया।उसने कहा कि वह चांद को अर्ध्य देकर ही भोजन करेगी।सुबह से भूखी प्यासी बहन की हालत भाइयों से देखी नहीं जा रही थी।इस कारण सबसे छोटा भाई दूर एक पीपल के पेड़ पर एक दीप प्रज्वलित कर आया और अपनी बहन से बोला व्रत तोड़ लो।चांद निकल आया बहन।करवा अपने भाई की चतुराई को समझ नहीं पाई और उसने खाने का निवाला मुंह में रख लिया।जैसे ही उसने निवाला खाया उसके पति की मृत्यु की सूचना मिली। दुख के कारण वह अपने पति के शव को लेकर 1 साल तक बैठी रही।शव के ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही। अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि विधान से करवा चौथ का व्रत किया।जिसके फलस्वरूप उसका पति जीवित हो उठा। तभी से हर सुहागन महिला करवा चौथ का व्रत पूरे नियम के साथ रखती आ रही हैं।

मनीष नामदेव मुंगेली

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