कविता-गणेश्वर आजाद “गँवईंहा” साहित्यकार,सुन्द्रावन-पलारी बलौदाबाजार(भाटापारा

!! चल ना खेत डाहर जाबो !!
चपकनहा कन्हार भर्राहा मटासी
आमा के चटनी सँगे बोरे बासी
कुहुक मारै कोयली झुमै अमराई
आए अषाढ़ भुईयां ल सिरजाबो
मेढ़ पार ल बनाबो दुई चार ढ़ेला चढा़बो
चल ना खेत डाहर जाबो…
झुमत हे डोंगरी झुमैं पहाड़
चल ना खेत डाहर जाबो आगे अषाढ़
कोनो बिनय ग बंबरी कोनो मोखला काँटा ?
चल ना कमा लेबो संगी अपने अपन बाँटा
फांफा मिरगा के रखवारी तुम्हला हवय जुमेवारी
लुबलुबावय तरी उपर मारथे चोभी
येही बछर के दिन बढी़या काहथे जन
माटी म माटी मिला लेबो तन-मन
मेचकी अउ मेचका दुनो भुँईया ल झकोरा
संगे लेके आबे बदरिया हावय तोरे अगोरा
बरमसी करेला काहय अब्बड़ झमेला
दउडे़ परवा छानी सेमी आनी-बानी
बाढे़ हे पटुवा जेमा झुलय तोराई
संझा बिहनिया जेला राँधय कका दाई
लागे कुँवार छाए रे सोमना
नरजवाँ कउँवाकेनी फुलगे फुलेता
बदौरी साँवां जमो जीव ल अड़हेरे
आँखी-आँखी म कईसे हमला लडे़रे ?
कातिक अघनिया नुवाखाई आगे
लिपाए हे अँगना लिपाए हे बियारा
काकी सकेलै कका बाँधै भारा
बबा अउ नाती लेगय जेला गाड़ी म बियारा
अन-धन भरे राहय पुरखा
अईसन देवत रहिहौ अशीष
कोठा म गोबर कोठी ल छोईला
झन छोड़य जनमो-जनम
हावा-पानी के करजा चुकाबो
आए हे अषाढ़ दुई चार ढे़ला चढा़बो
चल ना खेत डाहर जाबो…
चल ना खेत डाहर जाबो…
चल ना खेत डाहर जाबो…
गणेश्वर आजाद “गँवईंहा” साहित्यकार
सुन्द्रावन-पलारी(बलौदाबाजार-भाटापारा)
छत्तीसगढ़
सबका संदेश 9425569117