परदेशीराम छत्तीसगढ़ विभूति अैेर संजीव कपिलनाथ कश्यप सम्मान से हुए सम्मानित
आल्हा लेखन के लिए नारायण चंद्राकर का किया गया अभिनंदन
भिलाई। महाकवि कपिलनाथ कश्यप की 113 वीं सरस्वती शिशु मंदिर के बुद्ध सभागार में मुख्य अतिथि डॉ. द्वारिका प्रसाद अग्रवाल तथा डॉ. विनय कुमार पाठक की अध्यक्षता में मनायी गई। कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती की प्रतिमा में दीप प्रज्जवलन से किया गया । इस समारोह में डॉ. परदेशीराम वर्मा उपन्यासकार, कहानीकार, समीक्षक, भिलाई-दुर्ग को छत्तीसगढ़ विभूति अलंकरण से सम्मानित किया गया। वहीं कपिलनाथ कश्यप की कृतियङ्क्षं को इंटरनेट के माध्यम से प्रचार प्रसार करने में विशिष्ट योगदान के लिए संजीव तिवारी साहित्यकार को महाकवि कपिलनाथ कश्यप साहित्य सम्मान प्रदान किया गया तथा कपिलनाथ कश्यप जी की कृति श्रीराम-कथा का पुर्नप्रकाशित कृति का लोकार्पण मुख्य अतिथि डॉ. द्वारिका प्रसाद अग्रवाल, डॉ. विनय पाठक, डॉ. परदेशीराम वर्मा तथा संजीव तिवारी के द्वारा किया गया ।
इस अवसर पर अध्यक्षीय उद्बबोधन में डॉ. विनय पाठक ने कहा कि कपिलनाथ कश्यप पर नारायण चंद्राकर द्वारा लिखा गया आल्हा छंद में लिखा गया है । यह निश्चित रूप से स्तुत्य कार्य है । मुख्य अतिथि डॉ. द्वारिका प्रसाद अग्रवाल ने कहा कि अपनी छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखा साहित्य में अलग रस देता है । छत्तीसगढ़ी की संस्कृति को हम आचरण में लाएं । छछत्तीसगढ़ी विभूति अलंकरण से सम्मानित डॉ. परदेशीराम वर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ी लिखने पढऩे में लेाग लज्जित होते थे लेकिन छत्तीसगढ़ी़ बनने के बाद स्थिति बदली है । श्रीराम कथा तथा महाभारत-कथा को जिस क्षेत्र में घटित हुई है उससे ज्यादा छत्तीसगढ़ी के लोग ज्यादा जानते हैं । कश्यप जी ने राम-कथा में शंकर-पार्वती का विवाह छत्तीसगढ़ी़ परिवेश में कराया है । संत धर्मदास की परम्परा मे कपिलनाथ कश्यप जी ने छत्तीसगढ़ी को सम्मानित किया है ।
कश्यप जी की 113 वीं जयंती कं अवसर पर डॉ. जगदीश कुलदीप एवं साथी के द्वारा कपिलनाथ कश्यप द्वारा रचित मोर छत्तीसगढ़ी महतारी तोर पईयां का गायन हुआ । महाकवि के जीवन पर नारायण चंद्राकर द्वारा लिखित आल्हा का गायन देवकुमार देशमुख और सुभाष बेलचंदन ने किया ।कार्यक्रम कं अंत में आभार प्रदर्शन समिति कं सचिव मुरली रोकड़े ने किया ।