#जीवन संवाद : निकटता के पुल! | Jeevan Samvaad motivational talks by dayashankar mishra on Bridge of Proximity | nation – News in Hindi


जीवन संवाद
jeevan Samvad: मजबूत मन का अहंकार कम होता है. इसीलिए वह मजबूत होता है. लेकिन जैसे जैसे मन कमजोर होता जाता है उसका अहंकार बढ़ता जाता है. जब तक मन में अहंकार रहेगा वह छोटी-छोटी बातों पर आपको दुविधा में डालता रहेगा.
यहां ‘हमारे’ को समझना भी जरूरी है, पहले इस ‘हमारे’ में दोस्त, रिश्तेदार, पड़ोसी तक शामिल होते, अब इसमें भाइयों और माता-पिता के लिए भी जगह कम पड़ रही है. हमने निजी को इतना जरूरी बना लिया कि हम परिवार की उस परंपरागत खासियत से दूर होते जा रहे हैं, जिसमें बरसों से हमें संकटों से बचाने की अद्भुत शक्ति थी. परिवार की एकता और सुख-दुख को बांटने के लिए निकटता और प्रेम के जिन पुलों की जरूरत होती है, वह सब हमने धीरे-धीरे टूटने दिए. जर्जर होने दिए.
कोरोना से जो आर्थिक संकट खड़ा हुआ है, इतनी आसानी से नहीं टलने वाला. लेकिन यह संकट केवल आर्थिक नहीं है. आर्थिक और सामाजिक दोनों है. दोनों एक साथ मिल गए हैं इसलिए अधिक संकटकारी हो गए हैं. इस समय जो परिवार, दोस्तों का साथ हासिल कर पा रहे हैं. उनके मन बाकी लोगों के मुकाबले अधिक सहज और सुखी हैं.
एक ईएमआई का भार हमेशा मुश्किल होता है. लेकिन अगर उसे दूसरे का भरोसा भर हासिल हो जाए तो उसका मुकाबला करना कहीं सरल हो जाता है. आर्थिक संकट इस समय इतना बड़ा नहीं है जितना हमारा मन कमजोर हो चला है. हम सबके भीतर एक सहज अहंकार होता है. जो अपने मन का समय-समय पर उपचार नहीं करते. उसका ख्याल नहीं रखते. मन को प्यार, स्नेह, संवाद का खाद पानी नहीं देते उनके मन अक्सर ही कमजोर हो जाया करते हैं. मजबूत मन का अहंकार कम होता है. इसीलिए वह मजबूत होता है. लेकिन जैसे जैसे मन कमजोर होता जाता है उसका अहंकार बढ़ता जाता है. जब तक मन में अहंकार( ईगो) रहेगा वह छोटी-छोटी बातों पर आपको दुविधा में डालता रहेगा. आप कहेंगे मदद मांगने में कोई दिक्कत नहीं है, मन का ईगो तुरंत खड़ा हो जाएगा और कहेगा कोई जरूरत नहीं. सब कुछ अकेले ही संभालना होगा. कोई किसी की मदद नहीं करता. मन के अहंकार की अनेक परतें होती हैं! जितनी दिखती नहीं उससे कहीं अधिक गहरी हो और अमरबेल की तरह मन से चिपकी रहती हैं. इनके कारण अक्सर निकटता और प्रेम के पुल कमजोर होते जाते हैं.
परिवार के साथ हमेशा मुश्किल में ही खड़ा नहीं होना होता. उसे आपके साथ की जरूरत कहीं गहराई से होती है. किसी पिता और माता से इसकी सहज पुष्टि की जा सकती है. अगर आप उनसे पूछें कि अपने बच्चे की किस चीज़ से वह सबसे अधिक दुखी रहते हैं तो उसमें आर्थिक बात हमेशा बाद में आती है. पहले बच्चे का साथ ना मिलना. बेटी/ बेटे के पास उनके लिए समय न होना. उनको समझने की कोशिश न करना. उनसे नियमित संपर्क में न रहना है.
निकटता के पुल ऐसे ही टूटते हैं. कमजोर होते जाते हैं. पुराने दोस्त समय की आंधी से नहीं छूटते. वह हमारे प्रेम की कमी से अधिक छूटते हैं. हमारा ध्यान जैसे-जैसे रिश्तों से अधिक व्यावहारिक और व्यापारिक होने लगता है, हम अपने दोस्तों से दूर होते जाते हैं. इसलिए इस बात को समझना बहुत जरूरी है कि जो आपके, अपने हैं उनसे किस तरह निकटता बनी रहे. प्रेम और स्नेह बना रहे! रिश्तों को केवल तभी याद मत कीजिए, जब आप संकट में हों. उनका उस वक्त ख्याल रखिए, जब दूसरे संकट में हों! निकटता और प्यार के पुल इससे ही स्थाई बनते हैं!
शुभकामना सहित…
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First published: June 23, 2020, 11:00 PM IST