बिहार विधानसभा चुनाव 2020: कोरोना के बाद कैसे चला जाएगा सियासी दांव, कितना अलग होगा प्रचार, Bihar Assembly Elections 2020 How much will election campaign change after Corona migrant workers voting behavior-CSDS-bjp-jdu-rjd-dlop | patna – News in Hindi
प्रश्न: लॉकडाउन के बाद चुनाव का कलर कैसा होगा. चुनावी प्रक्रिया कितनी बदल सकती है?
संजय कुमार: अभी कोरोना के जो हालात हैं उसमें समय पर विधानसभा चुनाव होने की संभावना कम ही लगती है. फिर भी अगर समय पर यानी नवंबर में चुनाव हुए तो कैंपेन के स्वरूप पर सबसे बड़ा असर पड़ेगा. रैलियां, बड़ी पब्लिक मीटिंग और रोड शो पर कुछ न कुछ प्रतिबंध होंगे. शायद तब डोर टू डोर कैंपेन पर जोर दिया जाए. वो भी निर्धारित संख्या के हिसाब से. पहले जैसा चुनावी तामझाम नहीं होगा. यह सब करना पड़ेगा वरना कोरोना से स्थिति खराब हो जाएगी.
प्रश्न: बदले हालात में क्या सोशल मीडिया की भूमिका पहले के मुकाबले काफी बढ़ जाएगी?संजय कुमार: अगर कोरोना संक्रमण का यही हाल रहा तो चुनाव में सोशल मीडिया की भूमिका सबसे अहम होगी. क्योंकि प्रत्याशियों को वोटरों तक पहुंचने के लिए यही एक सहारा होगा. पहले भी कुछ चुनावों में सोशल मीडिया (Social media) का इस्तेमाल हुआ था लेकिन अब वो सबसे ज्यादा होगा. इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन के जूम जैसे कई और प्लेटफार्म आ सकते हैं. यह सब पार्टियों को करना होगा. नहीं करेंगे तो वोटरों तक अपनी बात कैसे पहुंचाएंगे.
प्रश्न: सोशल मीडिया पर चुनाव शिफ्ट हुआ तो किसे फायदा होगा?
संजय कुमार: सोशल मीडिया पर चुनाव शिफ्ट हुआ तो वो पार्टियां भारी पड़ेंगी जिनके पास संसाधन ज्यादा हैं. संसाधन से अर्थ पैसे और तकनीक दोनों से लगाया जाना चाहिए. जिसे सोशल मीडिया का पहले से अनुभव है वो पार्टियां फायदे में रहेंगी. वो इसका बेहतर इस्तेमाल कर पाएंगी. बीजेपी और कांग्रेस इस मामले में निश्चित तौर पर रीजनल पार्टियों से बेहतर स्थिति में होंगी.
क्या बिहार चुनाव में प्रचार का दारोमदार सोशल मीडिया पर होगा?
प्रश्न: देखा यह गया है कि सोशल मीडिया पर अपर कास्ट ज्यादा मुखर है, ऊपर से चुनाव कैंपेन सोशल प्लेटफार्म के जरिए लड़ा गया तो फिर फायदा किसे होगा?
संजय कुमार: देखिए, बीजेपी ऐसी पार्टी है जिसकी पैठ शहरों, मध्यम वर्ग और अपर कास्ट में ज्यादा है. उसका वोटर सोशल मीडिया पर मुखर है, उसकी प्रजेंस भी इन प्लेटफार्म्स पर ज्यादा है. उसके अनुपात में ओबीसी और अनुसूचित जातियों की प्रजेंस नहीं है और न तो वे इतने मुखर हैं. इसलिए अगर पूरा चुनाव सोशल प्लेटफार्म के जरिए लड़ा गया तो निश्चित तौर पर बीजेपी (BJP) को बड़ा फायदा मिल सकता है. उसका सोशल प्लेटफार्म पहले से ही बहुत मजबूत है.
प्रश्न: बड़े शहरों से पलायन करके बिहार गए मजदूर किस पार्टी को राजनीतिक नफा-नुकसान पहुंचा सकते हैं?
संजय कुमार: निश्चित तौर पर, कोरोना काल में परेशान हुए मजदूर (Migrant workers) बिहार चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बनेंगे. इसका सभी पार्टियां राजनीतिक नफा-नुकसान उठाएंगी. अगर चुनाव पारंपरिक तरीके से लड़ा गया तो इसका सत्ताधारी पार्टी जेडीयू (JDU) और बीजेपी को बड़ा नुकसान उठना पड़ सकता है. क्योंकि मजदूरों में गुस्सा है. मजदूरों ने बड़ी तकलीफ झेली है.
लेकिन अगर सोशल मीडिया के जरिए चुनाव नए तरीके से लड़ा गया तो शायद इस गुस्से की आंच थोड़ी कम आए. क्योंकि मजदूर सोशल मीडिया पर उतने मुखर नहीं हैं. मजदूरों में सभी वर्ग के लोग हैं, लेकिन इसमें लोअर ओबीसी और अनुसूचित जातियों का अनुपात कहीं अधिक है.
चुनाव में आरजेडी (RJD) व अन्य रीजनल पार्टियों को इनका ज्यादा समर्थन मिलता रहा है. हालांकि, 2019 के चुनाव में मजदूरों का बड़ा हिस्सा बीजेपी की ओर शिफ्ट हुआ था. लेकिन कोरोना काल में उन्हें हुई परेशानी के बाद यह सत्ताधारी दल से दूसरी तरफ शिफ्ट होता हुआ नजर आ रहा है.
बिहार चुनाव में किसका नफा-नुकसान करेंगे पलायन करके गांव गए मजदूर?
प्रश्न: क्या बिहार में विपक्षी गठबंधन का 2019 वाला हाल ही होता नजर आ रहा है?
संजय कुमार: देखिए, 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ विपक्ष का गठबंधन जरूर था लेकिन वो मतदाताओं का भरोसा हासिल नहीं कर पाए थे. अब स्थितियां भिन्न हैं. वैसे भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बहुत अंतर है. लोकसभा चुनाव में वोटर राष्ट्रीय पार्टियों को महत्व दे रहा है और विधानसभा में रीजनल पार्टियों को. आप देखेंगे कि 2014 से 2019 तक जितने भी राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं उनमें बीजेपी के वोट में 6 से 10 फीसदी तक का अंतर देखा गया है. इसलिए बिहार चुनाव में भी हालात लोकसभा के परिणाम जैसा होते नहीं नजर आ रहा है.
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इतनी गर्मी में भी शहर से क्यों पैदल गांव जाने को मजबूर हैं प्रवासी मजदूर?