कर्मचारियों की वेतन वृद्धि एवं कटौती से कर्मचारियों में रोष, कर्मचारियों का शोषण करने वाला आदेश।
सबका संदेस न्यूज़ छत्तीसगढ़-
कर्मचारियों की वेतन वृद्धि एवं कटौती से कर्मचारियों में रोष, कर्मचारियों का शोषण करने वाला आदेश डोंगरगढ़_ छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जहां एक ओर किसानों का कर्जा माफ् किया जा रहा है, धान का समर्थन मूल्य अन्य राज्यों से अधिक दिया जा रहा है, बोनस दिया जा रहा है वहीं दूसरी ओर कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के दौर में अपनी जान जोखिम में डालकर बिना अवकाश के कार्य करने वाले कर्मचारियों की वार्षिक वेतन वृद्धि एवं अन्य भत्तो में कटौती करने से कर्मचारियों में राज्य सरकार के प्रति रोष उत्पन्न हो रहा है।
डोंगरगढ़ कर्मचारी संघ ने सरकार के इस निर्णय को कर्मचारियों का शोषण करने वाला बताया, संघ के पदाधिकारियों ने कहा कि एक तरफ किसान न्याय योजना के तहत किसानों के खाते में राशि डाली जा रही है दूसरी तरफ कर्मचारियों को विशेष भत्ता देने के बजाय उनकी वेतन वृद्धि एवं अन्य भत्तो में कटौती की जा रही है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि किसान ही छत्तीसगढ़ के मतदाता है और मजदूर कर्मचारी उनके मतदाता नहीं है इसलिए कर्मचारियों के हितों को दरकिनार करते हुए केवल किसानों पर ही ध्यान केंद्रित किया जाता है।।
कर्मचारियों ने बताया कि कोविड्-19 में कोरोना से मुक्ति दिलाने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर अपने प्राणों की बाजी लगाकर कर नौतप्पा जैसी भीषण गर्मी में भी कार्य करने वाले कर्मचारियों की सुध लेना या उन्हें सम्मानित करना तो दूर उनके वेतन में कटौती करना कर्मचारियों का शोषण करने वाला दुर्भाग्यपूर्ण कदम है जिसकी कर्मचारी संघ निंदा करता है। शासन के इस सौतेले व्यवहार से कर्मचारी संघ में खासी नाराजगी है। कोविड्- 19 में सुरक्षा को ताक में रखकर कार्य कर रहे कर्मचारियों को प्रोत्साहन देने के बजाय वेतन से लेकर वेतन वृद्धि भत्ता एवं अन्य भत्तों का नहीं दिया जाना छत्तीसगढ़ सरकार की अकर्मण्यता को दर्शाता है जिसका खामियाजा आगामी विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। सत्ता आती जाती है किन्तु किसी भी सरकार की रीड की हड्डी कर्मचारी ही होते हैं।
कुल मिलाकर एक बात प्रमुख रूप से उभरकर आती है कि जो जनप्रतिनिधि पांच साल के कार्यकाल में आउटसोर्स से इतनी संपत्ति एकत्रित कर लेते हैं कि उनकी सात पुस्ते बैठकर खा सकती हैं ऐसे जनप्रतिनिधि को सिर्फ पांच साल के कार्यकाल के बदले जीवन भर पालने का ठेका सरकार ले सकती है लेकिन 60 से 65 वर्ष तक सरकार की सेवा करने वाले कर्मचारियों के हितों को भूल जाती हैं। यदि कटौती करना ही है तो इन जनप्रतिनिधियों के पेंशन में बन्द करें या इनके पेंशन में कटौती करे। यदि इन जनप्रतिनिधियों के पेंशन में कटौती कर दी जाती तो अभी पूरी मीडिया में और संसद में बहस का विषय बन जाता लेकिन कर्मचारियों के शोषण के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई जाती और ना ही कोई जनप्रतिनधि बहस के लिए आगे आयेगा।
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