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जैसे-जैसे म्यूटेशन बढ़ेगा, कितना खतरनाक होता जाएगा कोरोना वायरस? coronavirus mutation more dangerous and deadly says research | knowledge – News in Hindi

30 अप्रैल को bioRxiv में आई एक स्टडी के नतीजे काफी डरा रहे हैं. न्यू मैक्सिको की Los Alamos National Laboratory लैब में वायरस के स्ट्रेन्स की जांच हुई. इस दौरान दिखा कि वायरस में तेजी से म्यूटेशन हो रहा है और अलग-अलग देशों, महाद्वीपों में इसके अलग-अलग प्रकार सामने आए हैं. ये अपने रूप के अनुसार घातक से लेकर माइल्ड असर कर रहे हैं. चीन में भी Zhejiang University के वैज्ञानिकों ने मिलती-जुलती स्टडी की. इसके नतीजे बताते हैं कि दिसंबर से लेकर 5 महीनों के भीतर वायरस 30 रूप बदल चुका है. इसका सबसे घातक रूप (deadliest virus) दूसरे वायरसों से 270 गुना तेजी से बढ़ता है.

स्टडी 2 बातों को ध्यान में रखते हुए हुई. पहला- वायरस कितनी तेजी से बढ़ता है यानी वायरल लोड कैसा है. दूसरा- क्या वायरस अपनी होस्ट कोशिका की संरचना में भी बदलाव लाता है, यानी साइटोपैथिक इफैक्ट की जांच करना. मेल ऑनलाइन में आई खबर के मुताबिक इस दौरान देखा गया कि लोगों के शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं को संक्रमित करने और खत्म करने के दौरान एक ही वायरस 30 तरह के प्रकार दिखाता है. जल्दी-जल्दी रूप बदल सकने की वजह से ये वायरस इतना संक्रामक और खतरनाक साबित हो रहा है. यहां तक कि वायरस का एक नया प्रकार आम कोरोना वायरस से 270 गुना ज्यादा तेजी से बढ़ता है इसलिए ये सबसे खतरनाक हो सकता है. अमेरिका, इटली और स्पेन जैसे देशों में वैज्ञानिकों के मुताबिक यही स्ट्रेन फैल चुका है.

नतीजे बताते हैं कि दिसंबर से लेकर 5 महीनों के भीतर वायरस 30 रूप बदल चुका है

भारतीय वैज्ञानिक भी म्यूटेशन और खतरे को जुड़ा हुआ मानते हैं. जैसे गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के स्ट्रेन लगभग एक ही तरह के हैं, जो काफी घातक साबित हो रहे हैं. इन्हें L स्ट्रेन कहा गया है. वहीं केरल में इसका S टाइप स्ट्रेन मिल रहा है, जो अपेक्षाकृत कमजोर है, जिसकी वजह से मृत्युदर कम है.क्या है म्यूटेशन
वायरस खुद को लंबे समय तक प्रभावी रखने के लिए लगातार अपनी जेनेटिक संरचना में बदलाव लाते रहते हैं ताकि उन्हें मारा न जा सके. ये सर्वाइवल की प्रक्रिया ही है, जिसमें जिंदा रहने की कोशिश में वायरस रूप बदल-बदलकर खुद को ज्यादा मजबूत बनाते हैं. म्यूटेशन की ये प्रक्रिया वायरस को काफी खतरनाक बना देती है और ये जब होस्ट सेल यानी हमारे शरीर की किसी कोशिका पर हमला करते हैं तो कोशिका कुछ ही घंटों के भीतर उसकी हजारों कॉपीज बना देती है. यानी शरीर में वायरस लोड तेजी से बढ़ता है और मरीज जल्दी ही बीमारी की गंभीर अवस्था में पहुंच जाता है.

वायरस का एक नया प्रकार आम कोरोना वायरस से 270 गुना ज्यादा तेजी से बढ़ता है

क्यों जरूरी है म्यूटेशन पर नजर रखना

किसी भी नए वायरस के आने पर वैज्ञानिक लगातार उसका म्यूटेशन ट्रैक करते हैं. इसकी वजह ये है कि रूप बदलने पर अगर वायरस खतरनाक हो जाए तो नई बनाई गई वैक्सीन उस पर असर नहीं करेगी. यही बात पुराने हो चुके वायरस पर भी लागू होती है. जैसे इंफ्लूएंजा की कई तरह की वैक्सीन बन चुकी हैं लेकिन चूंकि कोरोना फैमिली से आने वाला ही इसका वायरस लगातार रूप बदलकर मजबूत हो रहा है, लिहाजा इंफ्लूएंजा में कभी वैक्सीन काम करती है तो कभी नहीं. ऐसे में वैक्सीन या दवाओं को भी वायरस की ताकत के मुकाबले मजबूत करना होता है.

कोरोना वायरस को लेकर वैज्ञानिक इसलिए भी डरे हुए हैं कि अगर ये गर्मी में भी खत्म नहीं होता है तो फिलहाल तैयार की जा रही वैक्सीन्स बेकार हो जाएंगी और बीमारी बनी रहेगी. Los Alamos National Laboratory की मुख्य रिसर्चर अपनी टीम के साथ अमेरिका में वैक्सीन पर काम कर रही हैं. उनके मुताबिक म्यूटेशन होना वैक्सीन की प्रक्रिया पर असर डाल सकता है. हालांकि वायरस का जेनेटिक सीक्वेंस लेकर उस पर लगातार काम हो रहा है.

अगर ये गर्मी में भी खत्म नहीं होता है तो फिलहाल तैयार की जा रही वैक्सीन्स बेकार हो जाएंगी और बीमारी बनी रहेगी

अभी दो म्यूटेशन पर सबसे ज्यादा फोकस किया जा रहा है जो दुनिया के ज्यादातर देशों में दिख रहा है. इन्हें D614G और S943P नाम दिया गया है. स्टडी के ट्रेंड बता रहे हैं कि D614G वुहान से निकला और यूरोप पहुंचते हुए ये नए वातावरण में न सिर्फ एडजस्ट हो गया, बल्कि खतरनाक हो गया. वैज्ञानिकों को डर है कि अगर ये और घातक हुआ तो एक बार कोरोना संक्रमित हो चुके लोगों के शरीर में बनी एंटीबॉडी बेकार हो जाएगी और वे दोबारा संक्रमित हो सकते हैं. वायरस का दूसरा म्यूटेशन S943P कई दूसरे स्ट्रेन्स के साथ मिलकर काम कर रहा है. हालांकि इसके बढ़ने की गति काफी कमजोर है.

वैज्ञानिकों के दूसरे खेमे का कहना है कि म्यूटेशन से वायरस की प्रवृति पर असर नहीं होता. न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में जीनोम टेक्नोलॉजी सेंटर की प्रोफेसर एड्रियाना हेगेय कहती हैं कि वायरस सर्वाइव करने के लिए हरदम म्यूटेट होते रहते हैं लेकिन इसका उनके फैलने या गंभीरता से संबंध नहीं है. इसी कड़ी में अमेरिका के एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी ने भी दावा किया कि समय के साथ वायरस कमजोर होगा और शरीर की इम्युनिटी उसका मुकाबला कर सकेगी, जैसा कि सार्स के दौरान हुआ था, जब उसका जेनेटिक सीक्वेंस कमजोर पड़ता गया.

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