क्या हैं वे 2 बीमारियां, जिनसे एक्टर इरफान खान जूझ रहे थे bollywood actor irrfan khan death colon infection and neuroendocrine tumor | knowledge – News in Hindi
कहां होता है न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर
वैसे तो ये ट्यूमर शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है लेकिन सबसे ज्यादा मामलों में पेट में देखा गया है. जैसे पाचन नलिका, आंत, अग्नाशय, फेफड़ों या एपेंडिक्स के भीतर. दूसरे किसी भी कैंसर की तुलना में ये कैंसर धीरे-धीरे बढ़ता है इसलिए शुरुआत में इसका पता चल पाना मुश्किल ही होता है. इस ट्यूमरस कैंसर के भी दो प्रकार होते हैं-
- पहला है कार्सिनॉइड ट्यूमर (Carcinoid tumors), जो पाचन नलिका, फेफड़ों और एपेंडिक्स पर असर डालता है. वैसे ये ट्यूमर लिंफ नोड, मस्तिष्क, हड्डियों, स्किन और यहां तक कि ओवरी या फिर टेस्टिकल में भी हो सकते हैं.
- दूसरे प्रकार को पैंक्रिएटिक न्यूएंडोक्राइन ट्यूमर (Pancreatic neuroendocrine tumor) कहते हैं. जैसा कि नाम से साफ है ये पैंक्रियाज यानी अग्न्याशय में होता है.
ये ट्यूमर पेट में हो जाए तो मरीज को लगातार कब्ज की शिकायत रहती है
क्या हैं लक्षण
ट्यूमर के आकार, उसके टाइप और वो किस अंग में हुआ है, इस पर निर्भर करता है कि मरीज में कैसे लक्षण दिखेंगे. हालांकि अक्सर इसका पता काफी देर से और तब लगता है जब कैंसर बढ़ता हुआ लिवर तक न पहुंच जाए या फिर किसी एक अंग को बुरी तरह से प्रभावित न कर दे. अगर ये ट्यूमर पेट में हो जाए तो मरीज को लगातार कब्ज की शिकायत रहेगी. फेफड़ों में हो जाए तो मरीज को लगातार बलगम रहेगा. बीमारी होने के बाद मरीज का ब्लड प्रेशर और शुगर लेवल बढ़ता-घटता रहता है
वजह की कोई जानकारी नहीं
ये बीमारी क्यों होती है, इसका कोई एक कारण अभी तक नहीं मिल सका है. वजह न मिल पाने के कारण डॉक्टर इस कैंसर के लिए रिस्क एसेसमेंट करते हैं. जैसे किस तरह के लोगों में इस बीमारी की आशंका ज्यादा है. इसका आनुवंशिकी से भी संबंध है. जैसे परिवार के किसी एक पुरुष में Multiple endocrine neoplasia बीमारी हो तो आने वाली पीढ़ियों में इसका खतरा बढ़ जाता है. उम्र बढ़ने के साथ भी न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर का खतरा बढ़ता है. ये भी देखा गया है कि जो लोग धूप में ज्यादा एक्सपोज होते हैं उन्हें इस कैंसर के एक खास टाइप Merkel cell carcinoma का डर होता है. ज्यादा धूप में स्किन के डीएनए नष्ट हो जाते हैं, जिससे कोशिकाएं तेजी से बढ़ती हैं और ट्यूमर में बदल सकती हैं.
कोलोन संक्रमण शरीर की बड़ी आंत पर असर डालता है
यहां एंडोक्राइन सिस्टम को समझना भी जरूरी है
यह शरीर की वह व्यवस्था होती है जिसमें हार्मोन्स और वह ग्लैंड्स/ ग्रंथियां शामिल होती हैं जो हार्मोन्स को रक्त प्रवाह में छोड़ने का काम करती हैं ताकि वह अपने निर्धारित अंग तक पहुंचकर अपना काम कर सके. हार्मोन्स उन केमिकल्स को कहते हैं जिसे शरीर के अंदर ग्रंथियां छोड़ती हैं. अलग अलग हार्मोन के अपने टार्गेट अंग होते हैं. खून की नलियां इन हार्मोन्स को अपने निर्धारित अंग तक ले जाने का काम करती हैं. हार्मोन ही होते हैं जो विभिन्न कोशिकाओं और अंग के प्रदर्शन पर असर डालते हैं. ऐसे में नर्वस सेल्स को बनाने वाले हार्मोन में जब कुछ असामान्य होने लगे तो शरीर पर उलटा असर पड़ने लग सकता है.
कैसे होता है इलाज
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर के इलाज के कई तरीके हैं, जो बीमारी की अवस्था पर निर्भर होते हैं. इनमें सबसे पहले सर्जरी के तहत ट्यूमर को निकाल दिया जाता है. इसके बाद कीमोथैरेपी, हार्मोन थैरेपी जैसे विकल्प आते हैं. अगर बीमारी काफी फैल चुकी हो और सर्जरी मुमकिन न हो तब रेडिएशन थैरेपी की जाती है.
ये जानना भी जरूरी है कि कोलोन इंफेक्शन असल में क्या है और कितना खतरनाक हो सकता है.
इरफान खान की हालिया बीमारी
ट्यूमर से पिछले तीन सालों से जूझ रहे इरफान खान हाल ही में कोलोन संक्रमण की वजह से अस्पताल में थे. यहां ये जानना भी जरूरी है कि कोलोन इंफेक्शन असल में क्या है और कितना खतरनाक हो सकता है. आमतौर पर गंदे पानी या खाने के कारण होने वाली इस बीमारी में पेट के भीतरी हिस्से में बड़ी आंत में सूजन आ जाती है. कोलोन संक्रमण की इस अवस्था को कोलाइटिस भी कहते हैं. वैसे संक्रमण की वजह के आधार पर कोलोन इंफेक्शन की कई श्रेणियां हैं, जैसे शरीर पर बैक्टीरिया या वायरस का हमला हुआ है या फिर शरीर में खून का बहाव ठीक से नहीं हो पा रहा.
कई बार कैंसर के मरीजों में भी कोलोन इंफेक्शन दिखता है, जो Inflammatory bowel syndrome (IBD) के तहत आता है. दर्द या सूजन कम करने वाली दवाएं काफी वक्त तक लेने पर भी कोलोन संक्रमण का डर रहता है, जिसे Drug-induced colitis कहते हैं.
कोलोन संक्रमण के लक्षण और इलाज
इसके लक्षणों में पेट दर्द, उल्टियां, थकान और तेज बुखार जैसे संकेत शामिल हैं. मरीज का वजन तेजी से कम होता है और उसे बार-बार टॉयलेट जाने की जरूरत पड़ती है. वक्त पर पकड़ में आने पर कोलाइटिस या कोलोन इंफेक्शन का इलाज मुश्किल नहीं. आमतौर पर इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि बीमारी की वजह क्या है. एंटीबायोटिक और लाइस्टाइल में बदलाव से इस पर नियंत्रण किया जा सकता है. कई बार गंभीर मामलों में आंतों की सर्जरी की जरूरत भी हो सकती है.
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