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Coronavirus: घातक वायरसों पर काम कर रही वुहान की वो लैब, जिसे अमेरिका और फ्रांस दे रहे हैं मदद coronavirus scientific collaboration of wuhan laboratory with america and france | knowledge – News in Hindi

Coronavirus: घातक वायरसों पर काम कर रही वुहान की वो लैब, जिसे अमेरिका और फ्रांस दे रहे हैं मदद

वुहान की इस लैब को न केवल अमेरिका, बल्कि फ्रांस जैसे देशों से भी मदद मिलती रही है (फोटो- AFP)

चीन के जिस लैब (lab in China) पर कोरोना संक्रमण (corona infection) फैलाने का इलजाम लग रहा है, उस लैब को न केवल अमेरिका (America), बल्कि फ्रांस (France) जैसे देशों से भी मदद मिलती रही है. ये लैब इतनी खतरनाक है कि वहां घुसने से पहले और घर लौटने के वक्त वैज्ञानिक खुद को रसायनों से साफ करते हैं.

दुनियाभर में कोरोना संक्रमितों (corona infected) की संख्या 26 लाख 30 हजार से ऊपर जा चुकी है. अरबों की आबादी घरों में बैठने को मजबूर है. ऐसे में लगातार ये जानने की कोशिश हो रही है कि आखिर खतरनाक कोरोना वायरस के फैलने की वजह क्या थी. अमेरिका में कोरोना (corona in America) का कहर फैलने से बाद से अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप (American president Trump) लगातार चीन पर आरोप लगा रहे हैं. उनका कहना है कि वुहान के वायरोलॉजी लैब (Wuhan Institute of Virology) से ही वायरस फैला है. हालांकि जिस लैब पर ये आरोप लग रहा है, उसे खुद अमेरिका से फंडिंग मिलती रही है. फ्रांस (France) भी इसकी वैज्ञानिक मदद करता रहा है.

कंस्पिरेसी थ्योरी की शुरुआत
चीन के इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने वुहान से करीब 1 हजार मील दूर युन्नान (Yunnan) से कुछ चमगादड़ों को पकड़ा और वे उस पर प्रयोग कर रहे हैं. इसी प्रयोग को जारी रखने के लिए अमेरिकी सरकार ने वुहान की लैब को 3.7 मिलियन डॉलर (लगभग 28 करोड़ रुपए) का फंड दिया था. ऐसा डेली मेल की एक रिपोर्ट में बताया गया है. इसके बाद से वुहान की लैब से अमेरिकी संबंध की चर्चा सुर्खियों में आ गई और वायरस फैलने के मामले को और भी ज्यादा संदेह से देखा जा रहा है.

माना जा रहा है कि वुहान के वायरोलॉजी लैब (Wuhan Institute of Virology) से ही वायरस फैला है

अमेरिकी वैज्ञानिक उतरे बचाव में
माना जा रहा है कि जनवरी 2018 में लैब के खुलने से पहले से ही टेक्सास के Galveston National Laboratory के डायरेक्टर James Le Duc ने ही चीन के वुहान स्थित इस लैब के स्टाफ को प्रशिक्षित किया था और लैब के फंक्शनल होने के पहले उसका दौरा भी किया था. अब इस लैब पर आरोप लगने के साथ ही डायरेक्टर Le Duc खुद इसके बचाव में आ गए हैं. यहां तक कि Le Duc वुहान लैब की डेपुटी डायरेक्टर Shi Zhengli का भी बचाव कर रहे हैं. ये वही डेपुटी हैं, जिन्होंने चमगादड़ों पर ये रिसर्च शुरू की थी. डायेक्टर Le Duc के मुताबिक दुनिया में फैली ये बीमारी प्राकृतिक रूप से चमगादड़ों से फैली है और इसका लैब से कोई लेना-देना नहीं है. साथ ही वे लैब की सुरक्षा व्यवस्था के बारे में भी मानते हैं कि वो अमेरिकी या यूरोपियन लैब-4 की व्यवस्था जितनी ही तगड़ी है.

यूरोप भी करता रहा है मदद
वुहान लैब की डेपुटी के बचाव में कई दूसरे इंटरनेशनल वैज्ञानिक भी सामने आए हैं. यूरोप में एक नॉन-प्रॉफिट संस्था के प्रेसिडेंट Peter Daszak भी इनमें से एक हैं. वे खुद भी चमगादड़ों पर हो रहे रिसर्च का लगभग 15 सालों से हिस्सा रहे हैं. वे कहते हैं कि लैब की डेपुटी को लगातार जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं, जबकि वे दुनिया के शीर्ष वैज्ञानिकों में से हैं. उन्होंने ही सबसे पहले Sars-CoV-2 के बारे में कहा था और इसलिए वे हीरो मानी जानी चाहिए.

ये लैब आबादी से काफी दूर होते हैं ताकि कोई दुर्घटना हो भी जाए तो आबादी पर उसका असर न हो

लैब में पहले होता था खेती पर काम
वुहान इंस्टीट्यूट की शुरुआत साल 1956 में महज एक माइक्रोबायोलॉजी लैब की हुई थी. इसका मुख्य काम खेती-किसानी में मदद करना था. स्टेट न्यूज एजेंसी Xinhua के मुताबिक ये इंस्टीट्यूट मिट्टी में मिलने वाले वायरस और बैक्टीरिया पर काम करता था. उस वक्त इसे एक चीनी वैज्ञानिक Gao Shangyin देख रहे थे. बाद के सालों में बदलाव हुए और मिट्टी में मिलने वाले पैथोजन्स पर काम करते-करते वे इंसानों की बीमारियों पर काम होने लगा. हालांकि 17 साल पहले सार्स के हमले के दौरान चीन में वायरोलॉजी लैब की जरूरत महसूस हुई.

सार्स के धक्के के बाद वायरस पर काम शुरू 
China Science Daily की एक रिपोर्ट के अनुसार इसके बाद ही लैब में खतरनाक और संक्रामण पैथोजन पर काम चल निकला और लैब लेवल-4 श्रेणी के लैब में बदल गई. इसे बायोसेफ्टी लेवल (BSL)-4 लैब भी कहते हैं. ये वे लैब होते हैं, जहां पर दुनिया के सबसे खतरनाक पैथोजन होते हैं और उनपर लगातार प्रयोग भी चलता रहता है. आमतौर पर यहां वही वायरस या बैक्टीरिया होते हैं, जो लाइलाज हों और जानलेवा भी. यही वजह है कि ये लैब आबादी से काफी दूर होते हैं ताकि कोई दुर्घटना हो भी जाए तो आबादी पर उसका असर न हो. इस लैब की इमारत में पानी से लेकर हवा की सप्लाई भी अलग होती है और संक्रमण मुक्त करने का सिस्टम भी अलग होता है.

यहां एक खास तरह का सूट पहनकर 4 से 6 घंटे तक लगातार काम किया जाता है

फ्रांसीसी लैब की तर्ज पर बनी है इमारत
सार्स हमले के बाद चीन के इस लैब को फ्रांस से भी मदद मिली. इस यूरोपियन देश के साथ चीन का साल 2004 में एक एग्रीमेंट हुआ. इसमें लगभग 42.4 मिलियन डॉलर लगाए गए ताकि फ्रांस की तर्ज पर एक अत्याधुनिक लैब बन सके. फ्रांस के लिऑन शहर में बने Jean Mérieux-Inserm Laboratory जैसा ही मॉडल वुहान में बना. बता दें कि लिऑन शहर का ये लैब भी खतरनाक वायरसों पर काम करता है और यहीं पर साल 2004 में इबोला वायरस के बारे में पता चला था. फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने वुहान के वैज्ञानिकों को शुरुआती ट्रेनिंग भी दी कि कैसे लेवल-4 लैब में काम होता है.

क्या खास है लैब-4 में
बता दें कि चौथे लेवल की लैब सबसे खतरनाक होती है. चूंकि यहां उन्हीं वायरस और बैक्टीरिया या दूसरे पैथोजन पर काम होता है, जिनका इलाज न हो और जो जानलेवा हों, इसलिए यहां काम करने वाले वैज्ञानिकों और बाकी स्टाफ को भी सुरक्षा का खास खयाल रखना होता है. यहां एक खास तरह का सूट पहनकर 4 से 6 घंटे तक लगातार काम किया जाता है, जिस दौरान बाथरूम जाने या पानी पीने की भी इजाजत नहीं होती क्योंकि ऐसा करने पर वायरस संक्रमण का खतरा बढ़ता है. यहां तक कि लैब में घुसने से पहले और घर लौटने के वक्त भी वैज्ञानिक खुद को रसायनों से संक्रमण-मुक्त करते हैं. ये प्रक्रिया आधे घंटे चलती है यानी दिन का लगभग 1 घंटा संक्रमण दूर करने में लगाना होता है.

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First published: April 23, 2020, 11:08 AM IST



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