इस्पात मंत्री प्रधान ने किया दल्ली-राजहरा में नए ओर बेनेफिसिएशन संयंत्र का शिलान्यासं
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भिलाई। पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस एवं इस्पात मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने अपने भिलाई प्रवास के दूसरे दिन शुक्रवार 21 फरवरी को संयंत्र को आपूर्ति किए जाने वाले लौह अयस्क की गुणवत्ता में और अधिक सुधार हेतु लौह अयस्क परिसर में स्थापित किए जा रहे नए ओर बेनेफिसिएशन संयंत्र का शिलान्यास किया।
दल्ली-राजहरा लौह अयस्क परिसर में दो आयरन ओर प्रोसेसिंग प्लांट हैं। इनमें से एक राजहरा में और दूसरा दल्ली में स्थित है। विभिन्न खानों राजहरा मेकेनाइज्ड माइंस, दल्ली मेकेनाइज्ड माइंस, झरनदल्ली, दल्ली मैनुअल माइन एवं महामाया माइन से आयरन ओर को इन दोनों संयंत्रों में प्रोसेसिंग किया जाता है। राजहारा आयरन ओर प्रोसेसिंग प्लांट से आमतौर पर अच्छी गुणवत्ता का अयस्क प्राप्त किया जाता है और यह ड्राई प्रोसेसिंग प्लांट है। दल्ली लौह अयस्क प्रोसेसिंग संयंत्र, जिसे सीएसडब्ल्यू संयंत्र के रूप में भी जाना जाता है, इस संयंत्र को 5.55 एमटीपीए (मिलियन टन प्रति वर्ष) क्षमता के प्रचालन के लिए डिजाइन किया गया है। यह सामान्यत: अयस्क की कम गुणवत्ता को बेनेफिसिएशन करने वाली वॉशिंग इकाई है। लौह अयस्क में गैंग कंटेंट (सिलिका और एल्यूमिना का मिश्रण) अधिक मिलता है। लौह बनाने में अधिकतम गैंग कंटेंट एक बाधा है और यह पूरी प्रक्रिया आर्थिक रूप से महंगी है। लौह अयस्क से गैंग सामग्री को निकालना/कम करना आयरन ओर बेनेफिसिएशन के नाम से जाना जाता है।
सीएसडब्ल्यू प्लांट में क्रशिंग, स्क्रीनिंग और वाशिंग की सुविधा है। यह सामान्यत: दो लाइन संयंत्र है, प्रत्येक लाइन की क्षमता 750 टीपीएच (टन प्रति घंटा) है। मौजूदा संयंत्र में बेनेफिसिएशन सुविधाएँ अयस्क की धुलाई एवं सिन्टर फाइंस के वर्गीकरण का एक संयोजन है। आयरन ओर काम्प्लेक्स की सभी खानों में लौह अयस्क के भंडार में कमी के साथ लौह अयस्क की गुणवत्ता में 12 से 15 प्रतिशत तक गैंग है जिसमें 9 से 12 प्रतिशत सिलिका फाइंस ग्रेड है। मौजूदा क्लासिफायर अधिक प्रभावी नहीं है और सिंटर फाइंस से सिलिका लोड को कम करने में सहायक भी नहीं है। वर्तमान में -10 मिमी गैंग मटेरियल (सिलिका और एल्यूमिना) जो पूर्व में 10 से 12 प्रतिशत तक रहता था के स्थान पर 13 से 15 प्रतिशत तक आ रहा है। प्रस्तावित बेनेफिसिएशन प्लांट से 12 से 15 प्रतिशत गैंग के स्थान पर 9 प्रतिशत से भी कम का फाइंस प्राप्त किया जा सकता है।
ज्ञातव्य हो कि सिलिका में कमी लाने के लिए विकसित समाधान खोजने हेतु बीएसपी ने आरडीसीआईएस को परियोजना सौंपी थी। इसने बेंच स्केल टेस्ट वर्क के आधार पर फ्लो शीट विकसित किया। इस फ्लो शीट को राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) हैदराबाद के अनुसंधान व विकास केन्द्र के द्वारा दल्ली माइंस के मटेरियल को (-) 10 मिमी के 15वें सेम्पल पर पायलट स्केल टेस्ट के माध्यम से सत्यापित किया गया था। इसके बाद कंसल्टेंट सीईटी-रांची द्वारा टेंडर स्पेसिफिकेशन तैयार किया गया। सीएसडब्ल्यूपी दल्ली में बेनेफिसिएशन सुविधाएं प्राप्त करने के लिए यह परिजोजना की अनुमानित लागत 153.87 करोड़ होगी। अवार्ड शुरू करने से लेकर इसके स्थापना कार्यक्रम 20 महीने का होगा।