आरटीई के तहत सीटों को भरने के लिए डीपीआई गंभीर नही
शिक्षा का अधिकार के तहत बच्चों को किसी भी स्कूल में मिले प्रवेश
आरटीई के पोर्टल में अभी भी कई खामियां
दुर्ग। आरटीई कानून के प्रावधानों के अनुसार सभी निजी स्कूलों को अपने यहां उपलब्ध सीटों में से 25 प्रतिशत सीटें वंचित व कमजारो समूहों के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए भरनी होंगी, जिन्हें बढ़ाया भी जा सकता है, यदि प्रचालित एक किलोमीटर के दायरे में यह संख्या पूरी नही होती तो दायरे को बढ़ाया भी जा सकता है। शिक्षा का अधिकार कानून के अंतर्गत बच्चे नि:शुल्क शिक्षा पाने हिन्दी मिडियम स्कूल्स और ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित निजी स्कूलों में रूचि नहीं दिखा रहे है, क्योंकि आरटीई के अंतर्गत ज्यादातर रिक्त सीटें ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित निजी स्कूल और हिन्दी मिडियम स्कूलों में रह जाती है। आरटीई की प्रतिवर्ष हजारों सीटें रिक्त रह जा रही है और बच्चे पात्र होने के बावजूद उन्हें शिक्षा से वंचित होना पड़ रहा है जिस पर शासन करे गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।
छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसियेशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल का कहना है कि आरटीई पोर्टल में अभी भी कई खामियां है, जिसे दूर नहीं किया जा सका है। एक बच्चा एक ही आवेदन कर सकता है और एक किलोमीटर की परिधि में स्कूलों को मौपिंग कर दिया गया है, जबकि बच्चे को किसी भी स्कूल में आवेदन करने की अनुमति दिया जाना चाहिए, ताकि सभी आरक्षित सीटों को भरा जाये। प्राईवेट स्कूलों में जब आरटीई के अलावा दूसेर बच्चों को प्रवेश दिया जाता है, तो दूरी निर्धारित नहीं किया जाता है, क्योंकि पालकों से परिवहन शुल्क भी लिया जाता है और आरटीई कें अंतर्गत प्रवेशित बच्चों से भी परिवहन शुल्क लिया जाता है तो फिर प्रवेश देने के लिये भी दूरी निर्धारत नहीं किया जाना चाहिये। बिलासपुर हाईकोर्ट का भी यह आदेश है कि आरटीई के सभी सीटों को भरा जाना चाहिए और एक भी सीटें रिक्त नही रहें, यदि आरटीई के अंतर्गत पालक अपने बच्चों को रिक्त सीटों पर परिवहन शुल्क वहन कर पढाने को तैयार है तो उसे प्रवेश दिया जाना चाहिए। श्री पॉल का कहना है आरटीई की सभी आरक्षित सीटों को भरने के लिये हमने डीपीआई को कई सुझाव दिये है जिस पर अभी तक गंभीरता नहीं दिखाया जा रहा है शायद हमें अब न्यायालय से आग्रह करना पड़ेगा।