दुर्ग भिलाई

संस्कृत बोधन वर्ग उद्घाटन समारोह में डॉ. शर्मा मुख्य अतिथि के तौर पर हुए शामिल

दुर्ग। जब तक देववाणी संस्कृत का पठन-पाठन और आदर इस देश में है, विश्व में भारत प्रतिष्ठित है। हमें संगठित होकर सरल संस्कृत को अपने वार्तालाप और व्यवहार में लाना है। कलियुग में संगठन में ही शक्ति होती है। भारत वर्ष सरस्वती का मंदिर है और संस्कृत अमृत जैसी मधुर और कोमल वाणी है।

हमारी संस्कृति का मूल और पूरे ज्ञान -विज्ञान का आधार संस्कृत है।” ये विचार हैं आचार्य डॉ. महेश चन्द्र शर्मा के। वे विगत दिनों संस्कृत भारती दुर्ग मण्डल द्वारा सरस्वती शिशु मंदिर कसारीडीह दुर्ग में आयोजित द्वि- दिवसीय भाषा बोधन वर्ग के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि की आसन्दी से बोल रहे थे। वाग्देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ।

संस्कृत भारती के प्रांतीय संगठन मंत्री हेमन्त साहू ने आचार्य शर्मा का परिचय दिया। उनके देश – विदेश के सफल सांस्कृतिक भ्रमणों और अनेक प्रकाशित और लोकप्रिय पुस्तकों की भी जानकारी दी। डॉ. शर्मा ने इसके बाद हेमन्त साहू और प्रो.महेश कुमार अलेन्द्र को” गागर में सागर” एवं प्रो.जनेन्द्र कुमार दीवान और संस्कृत भारती के प्रांतीय साहित्य प्रमुख प्रो.प्रवीण झाड़ी को “साहित्य और समाज” पुस्तकें भेंट कीं।

संस्कृत भारती की प्रान्तीय बालकेन्द्र प्रमुख डॉ.दिव्या देशपाण्डेय को दौंनों पुस्तकें विगत वर्ष भेंट की गयीं। डॉ. देशपाण्डेय ने भी सरल संस्कृत संवाद शैली पर रोचक प्रकाश डाला। कार्यक्रम के शुरू में प्रो. महेश कुमार अलेन्द्र आदि न आचार्य डॉ. महेशचन्द्र शर्मा का भावभीना स्वागत-सम्मान किया। सफल संचालन  प्रो.जनेन्द्र कुमार तथा आभार ज्ञापन हरित वर्मा ने किया। मौके पर डालेश्वरी साहू एवं रीता दास सहित बड़ी संख्या में संस्कृत प्रेमी जन उपस्थित थे।

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