छत्तीसगढ़

आज द्रोणाचार्या संस्कृत उच्च. माध्य.विद्यालय सोनसरी में राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया गया हैं।
आज के इस विशेष दिवस का शुभ आरंभ मां सरस्वती की पूजा अर्चना से आरंभ करके कार्यक्रम को आगे बढ़ाया इसमें गणित के अध्यापक श्री शिवकुमार पटेल जी ने आज के इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बताया कि गणित दिवस क्यों मनाते हैं जिसमे उन्होंने श्रीनिवासन रामानुजन के जीवन परिचय के बारे में जानकारी प्रदान की उन्होंने बताया कि रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर 1887 को भारत के दक्षिणी भूभाग में स्थित कोयम्बटूर के ईरोड नामके गांव में हुआ था। वह पारम्परिक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। इनकी माता का नाम कोमलताम्मल और इनके पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर था। इनका बचपन मुख्यतः कुंभकोणम में बीता था जो कि अपने प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है। बचपन में रामानुजन का बौद्धिक विकास सामान्य बालकों जैसा नहीं था। यह तीन वर्ष की आयु तक बोलना भी नहीं सीख पाए थे। जब इतनी बड़ी आयु तक जब रामानुजन ने बोलना आरंभ नहीं किया तो सबको चिंता हुई कि कहीं यह गूंगे तो नहीं हैं। बाद के वर्षों में जब उन्होंने विद्यालय में प्रवेश लिया तो भी पारम्परिक शिक्षा में इनका कभी भी मन नहीं लगा। रामानुजन ने दस वर्षों की आयु में प्राइमरी परीक्षा में पूरे जिले में सबसे अधिक अङ्क प्राप्त किया और आगे की शिक्षा के लिए टाउन हाईस्कूल पहुंचे। रामानुजन को प्रश्न पूछना बहुत पसंद था। उनके प्रश्न अध्यापकों को कभी-कभी बहुत अटपटे लगते थे। जैसे कि-संसार में पहला पुरुष कौन था? पृथ्वी और बादलों के बीच की दूरी कितनी होती है? रामानुजन का व्यवहार बड़ा ही मधुर था। इनका सामान्य से कुछ अधिक स्थूल शरीर और जिज्ञासा से चमकती आखें इन्हें एक अलग ही पहचान देती थीं। इनके सहपाठियों के अनुसार इनका व्यवहार इतना सौम्य था कि कोई इनसे नाराज हो ही नहीं सकता था। विद्यालय में इनकी प्रतिभा ने दूसरे विद्यार्थियों और शिक्षकों पर छाप छोड़ना आरंभ कर दिया। इन्होंने स्कूल के समय में ही कालेज के स्तर के गणित को पढ़ लिया था। एक बार इनके विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने यह भी कहा था कि विद्यालय में होने वाली परीक्षाओं के मापदंड रामानुजन के लिए लागू नहीं होते हैं। हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्हें गणित और अंग्रेजी मे अच्छे अंक लाने के कारण सुब्रमण्यम छात्रवृत्ति मिली और आगे कालेज की शिक्षा के लिए प्रवेश भी मिला।
आगे एक परेशानी आई। रामानुजन का गणित के प्रति प्रेम इतना बढ़ गया था कि वे दूसरे विषयों पर ध्यान ही नहीं देते थे। यहां तक की वे इतिहास, जीव विज्ञान की कक्षाओं में भी गणित के प्रश्नों को हल किया करते थे। नतीजा यह हुआ कि ग्यारहवीं कक्षा की परीक्षा में वे गणित को छोड़ कर बाकी सभी विषयों में फेल हो गए और परिणामस्वरूप उनको छात्रवृत्ति मिलनी बंद हो गई। एक तो घर की आर्थिक स्थिति खराब और ऊपर से छात्रवृत्ति भी नहीं मिल रही थी। रामानुजन के लिए यह बड़ा ही कठिन समय था। घर की स्थिति सुधारने के लिए इन्होने गणित के कुछ ट्यूशन तथा खाते-बही का काम भी किया। कुछ समय बाद 1907 में रामानुजन ने फिर से बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी और अनुत्तीर्ण हो गए। और इसी के साथ इनके पारंपरिक शिक्षा की इतिश्री हो गई।विद्यालय छोड़ने के बाद का पांच वर्षों का समय इनके लिए बहुत हताशा भरा था। भारत इस समय परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा था। चारों तरफ भयंकर गरीबी थी। ऐसे समय में रामानुजन के पास न कोई नौकरी थी और न ही किसी संस्थान अथवा प्रोफेसर के साथ काम करने का मौका। बस उनका ईश्वर पर अटूट विश्वास और गणित के प्रति अगाध श्रद्धा ने उन्हें कर्तव्य मार्ग पर चलने के लिए सदैव प्रेरित किया। नामगिरी देवी रामानुजन के परिवार की ईष्ट देवी थीं। उनके प्रति अटूट विश्वास ने उन्हें कहीं रुकने नहीं दिया और वे इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी गणित के अपने शोध को चलाते रहे। इस समय रामानुजन को ट्यूशन से कुल पांच रूपये मासिक मिलते थे और इसी में गुजारा होता था। रामानुजन का यह जीवन काल बहुत कष्ट और दुःख से भरा था। इन्हें हमेशा अपने भरण-पोषण के लिए और अपनी शिक्षा को जारी रखने के लिए इधर उधर भटकना पड़ा और अनेक लोगों से असफल याचना भी करनी पड़ी।रामानुजन संख्याएँ
‘रामानुजन संख्या’ उस प्राकृतिक संख्या को कहते हैं जिसे दो अलग-अलग प्रकार से दो संख्याओं के घनों के योग द्वारा निरूपित किया जा सकता है।

उदाहरण –
9
3
+
10

3

1
3
+
12

3

1729
{ 9^{3}+10^{3}=1^{3}+12^{3}=1729}.

इसी प्रकार,

2
3
+
16

3

9
3
+
15

3

4104
{ 2^{3}+16^{3}=9^{3}+15^{3}=4104}
10
3
+
27

3

19
3
+
24

3

20683
{10^{3}+27^{3}=19^{3}+24^{3}=20683}
2
3
+
34

3

15
3
+
33

3

39312
{ 2^{3}+34^{3}=15^{3}+33^{3}=39312}
9
3
+
34

3

16
3
+
33

3

40033
{ 9^{3}+34^{3}=16^{3}+33^{3}=40033}
अतः 1729, 4104, 20683, 39312, 40033 आदि रामानुजन संख्याएं हैं। इस कार्यक्रम को राष्टीय स्तर पर मनाए जाने के कारण को विद्यालय के प्राचार्या महोदय श्री कुंजल राम मरार ने बताया की गणित जीवन का आधार हैं,साथ ही संघर्ष भरे जीवन में अपने आप को किस प्रकार व्यवस्थित करके आगे बढ़ना चाहिए। इसको बताया इस कार्यक्रम में विद्यालय परिवार की ओर से प्राचार्य महोदय श्रीमान कुंजल राम पटेल उप प्राचार्य महोदय श्रीमान फिरतू राम पैंकरा जी श्रीमती दुर्गेश्वरी साहू श्रीमती नीतू जायसवाल श्रीमान ओंकार प्रसाद पटेल श्री शिवकुमार पटेल श्री लख राम पटेल श्री विजय कुमार पटेल और विद्यालय परिवार के शिक्षक एवम सभी छात्र-छात्राएं एवं समस्त विद्यालय परिवार उपस्थित रहें।।

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