नई से महंगी मिलती हैं रोलेक्स की सैकेंड हैंड घड़ियां, लेकिन क्यों होता है ऐसा?

नई दिल्ली. महंगी घड़ियां पहनने का शौक काफी लोगों को होता है. हालांकि, यह शौक सभी पूरा नहीं कर पाते. ऐसा इसलिए क्योंकि इन घड़ियों की कीमत कई लोगों के साल भर के वेतन के बराबर होती है. आमतौर पर अगर आप कोई चीज फर्स्ट हैंड नहीं खरीद कर सकते तो आप कोशिश करते हैं कि उसे सेकंड हैंड खरीद लिया जाए. इससे आपका शौक भी पूरा हो जाएगा और आपको नई चीज के पैसे भी नहीं देने होंगे
प्रीमियम क्लास की घड़ियों के बारे में यह बात ठीक नहीं बैठती. यहां मामला लगभग उल्टा हो जाता है. आप सोच रहे होंगे कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं? दरअसल, कई बार इन घड़ियों की सैकेंड हैंड मार्केट की कीमत फ्रेश माल से ज्यादा हो जाती है. इसके पीछे बेहद रोचक लॉजिक भी है. आप कह सकते हैं कि प्रीमियम कंपनियां अपने सैकेंड हैंड माल की कीमत बढ़ाने में भी बड़ा रोल अदा करती हैं.यूज्ड माल की कीमत ज्यादा कैसे?
उदाहरण के लिए दुनिया की जानी मानी घड़ी निर्माता रोलेक्स की घड़ियां सेकंड हैंड मार्केट में कई बार फ्रेश माल से भी ज्यादा महंगी बिकती हैं. लेकिन इसके पीछे कारण क्या है? रोलेक्स की घड़ियों की बाजार में डिमांड बहुत ज्यादा है लेकिन रोलेक्स साल में केवल 10 लाख घड़ियां ही बनाती है. इससे वह बाजार में अपने माल की आर्टिफिशियल कमी बनाती है ताकि उसकी डिमांड हमेशा बनी रहे. डिमांड बहुत ज्यादा रहने के कारण कई बार वे लोग भी ये घड़ी खरीद नहीं पाते हैं जिनके पास इसे अफोर्ड करने की क्षमता होती है. ऐसे लोग फिर सेकेंडरी मार्केट का सहारा लेते हैं और वहां नए माल से ज्यादा कीमत देने को तैयार हो जाते हैं. इस तरह से जो घड़ी प्राइमरी मार्केट में 1000000 की है संभव है कि वही घड़ी सेकेंडरी मार्केट में 1100000 की या 1200000 की मिले.और भी प्रोडक्ट हैं ऐसे
हालांकि, ऐसा हर बार नहीं होता लेकिन कुछ ब्रांड के मामले में यह बात सही है. ऐसा केवल रोलेक्स घड़ियों के साथ ही नहीं होता शनैल के परफ्यूम, हरमिस बर्किन की एक्सेसरीज भी इसी कैटेगरी में आती हैं. कई बार विंटेज कारों की कीमत उनके ओरिजनल प्राइस से कहीं ज्यादा होती हैं. लोग इन उत्पादों में अपने पैसे खर्च नहीं इन्वेस्ट करते हैं. कई जानकार मानते हैं कि लोग इन सामानों को खरीदकर उन्हें सहेज कर रखते हैं क्योंकि कुछ सालों बाद किसी जमीन या जस्टॉक की तरह ही इनके प्राइस भी ऊपर की ओर ही जाते हैं. बाजार को या इनके खरीददारों को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि यह सेकंड हैंड माल हैं