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*रक्षाबंधन पर वृहद ज्योतिष के अनुसार भद्रा परिहार-पं सुधीर शुक्ला*

श्रावण शुक्ला की पूर्णिमा को रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है शास्त्र में भद्रा का प्रमाण के अनुसार श्रावणी और फाल्गुनी भद्रा दोनों वर्जित कहा गया है। श्रावण में राजा व फाल्गुनी से प्रजा का अनिष्ट होता है, ज्योतिष के अनुसार पंडित सुधीर शुक्ला(काँचरी) ने भद्रा के विषय में बताया भगवान सूर्यनारायण और छाया की पुत्री है भद्रा शनि देव की बहन है भद्रा का स्वरूप काले वर्ण वाली लंबे केश बड़े दांत तथा भयंकर रूप वाली उसका स्वरूप का वर्णन मिलता है।भद्रा स्वभाव शनिदेव की भांति कड़क है जन्म लेते ही भद्रा ऋषियों की यज्ञ अनुष्ठान में विघ्न बाधा पहुंचाने लगी भद्रा अपने समय में देव दानव मानव तीनों को कष्ट देती है। इस कारण यह समय अनुसार स्वर्ग पृथ्वी व पाताल लोक में निवास करती है महाराज जी ने रक्षाबंधन के पर्व पर पड़ रहे भद्रा के विषय में बृहद ज्योतिष सार का प्रमाण देते हुए बताया कि चंद्रमा की वर्तमान स्थिति के अनुसार भद्रा का स्थान सुनिश्चित होता है कि वह स्वर्ग में है पृथ्वी में है या पाताल लोक में है कुंभ मीन कर्क सिंह में जब चंद्रमा रहती है तो भद्रा मृत्यु लोक में निवास करती है मेष वृष मिथुन और वृश्चिक कि चंद्रमा में स्वर्ग पर और कन्या धनु तुला और मकर के चंद्रमा में भद्रा पाताल लोक में स्थित रहती है वर्तमान समय में 11 अगस्त को चंद्रमा मकर राशि में स्थित होने के कारण भद्रा जो है पाताल लोक में निवास करेगी बृहद ज्योतिष के अनुसार यह प्रमाण मिलता है की भद्रा जहां रहती है वहां ही इसका दोष लगता है इस कारण से पृथ्वी लोक व स्वर्ग पर इसका प्रभाव नहीं रहेगा इस कारण से 11 अगस्त को भाई-बहन के स्नेह प्रेम बंधन राखी के पावन त्यौहार में भद्रा का दोष पृथ्वी लोक में ना होने से दिनभर आप अपने समय के अनुसार रक्षाबंधन का पर्व मना सकते हैं ।रक्षाबंधन के संदर्भ में एक कथा भी प्रचलित है जिसमें मां लक्ष्मी ने राजा बलि को अपना भाई बनाकर भगवान विष्णु को प्राप्त किया।जब वामन बनकर भगवान विष्णु राजा बलि के द्वार पर गए तो राजा बलि के समर्पण आत्मा निवेदन देखकर राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए अपने पति को प्राप्त करने के लिए राजा बलि की कलाई में रक्षा सूत्र बांधकर माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को प्राप्त किया उसी दिन से यह रक्षाबंधन का पावन पर्व भाई बहन स्नेह प्रेम के रूप में मनाया जाने लगा।

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