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पूर्व सीएम शांता कुमार बोले- नशे में हिमाचल ”उड़ते पंजाब“ से भी बहुत आगे पहुंचा

पालमपुर (कांगड़ा). हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने कहा नशे के प्रकोप में हिमाचल प्रदेश ”उड़ते पंजाब“ से भी बहुत आगे पहुंच  गया है. कुल्लू जिला में एक महीने में तीसरी रेव पार्टी पकड़ी गई है. इससे पहले कसोल में रात के समय रेव पार्टी में 80 युवक-युवतियां चरस, कोकिन और गांजे समेत पकड़ी गई. अब पार्वती घाटी में इस प्रकार की रेव पार्टी पकड़ी गई है.

उन्होंने कहा कुछ दिन पहले करसोग का एक समाचार छपा था, जिस के अनुसार 13 वर्ष की एक छात्रा चरस के नशे में स्कूल पहुंच गई. आठवीं कक्षा की इस छात्रा ने बताया कि वो शराब भी पीती है. स्कूल के और भी बहुत से बच्चे शराब और नशे की लत में फंस गये है.

 

शांता कुमार ने कहा कि उन्हें खुशी है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने एक विशेष अभियान नशा छोड़ो चलाया है. पुलिस का एक विशेष दल भी बनाया जा रहा है. उन्होंने सरकार से आग्रह किया है कि इस सम्बंध में अतिशीघ्र प्रभावशाली और कठोर कार्यवाही यदि नहीं की गई तो प्रदेश को पछताना  पड़ेगा. प्रदेश में नशा लाने वाले कारोबारियों को पकड़ कर सख्त सजा देने की जरूरत है. छोटे-छोटे लोग पकड़े जाते है, परन्तु असली बड़े अपराधी छूट जाते हैं.उन्होंने कहा-इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि नई पीढ़ी बिलकुल संस्कार विहीन हो रही है. नशे के प्रकोप से मोबाइल का नशा हजार गुणा अधिक है.  नशा  तो चढ़ का उतर जाता है परन्तु मोबाइल का नशा  हमेशा के लिए पागल बना देता है. कुछ खबरे पढ़ कर दिमाग घूम जाता है. कुछ दिन पहले एक समाचार छपा था कि मां ने बेटे को मोबाइल में गेम खेलने के लिए मना किया और बाद में मोबाइल छीन लिया. कुछ देर बाद बेटे ने पिता की पिस्तौल से मां को गोली मार कर जान से मार दिया. ऐसे समाचार पढ़ कर मन ही नही आत्मा भी कांप उठती है. मोबाइल ने उस बच्चे को इतना पागल बना दिया था कि उसे मां में मां नहीं दिखाई दी, एक शत्रु दिखाई दिया.शांता कुमार ने कहा मुझे दुख है कि पूरा समाज बुद्धिजीवी और सरकार इस भंयकर संकट के प्रति पूरी तरह से जागरूक नहीं है. अपराधियों को पकड़ने की पूरी कोशिश की जाए, लेकिन सबसे जरुरी यह है कि सरकार नई पीढ़ी को संस्कार देने का प्रबन्ध करे. यह काम अब केवल शिक्षा जगत के द्वारा ही हो सकता है. योग और नैतिक शिक्षा को प्राईमरी से लेकर काॅलेज तक अनिवार्य विषय बनाया जाए. अब शिक्षा संस्थाएं ही संस्कार देने का काम कर सकती है. जब यह अनिवार्य विषय होगा तो बच्चों को उसकी और पूरा ध्यान देना पड़ेगा.

 

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