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*कुछ समय ईश्वर से भी बात कर लिया करें – ज्योतिष*

कभी कभी आप डी एस पी साहब, कलैक्टर साहब आदि बड़े-बड़े अधिकारियों से बात करते हैं, वहां आपको बहुत लाभ और आनन्द मिलता है। कुछ समय ईश्वर से भी बात कर लिया करें। उससे भी आपको बहुत लाभ और आनन्द मिलेगा।

बहुत से लोग कहते हैं, “आजकल मेरा समय बहुत अच्छा चल रहा है।”कभी कहते हैं, कि आजकल समय बुरा चल रहा।”यह गौण कथन है। क्योंकि *

“जो समय आपके लिए अच्छा है, वही समय किसी और के लिए बुरा है। जो समय आपके लिए बुरा है, वही समय किसी दूसरे व्यक्ति के लिए अच्छा है।”इसका अर्थ हुआ, कि समय न अच्छा है, न बुरा है। समय तो सबके लिए एक जैसा है। केवल अनुकूलता प्रतिकूलता की बात है।

वास्तव में सबकी इच्छाएं और अनुकूलताएं अलग-अलग हैं। जब किसी को अनुकूलता होती है, अर्थात उसे उसकी मनचाही वस्तु मिल जाती है, उसकी इच्छा पूरी हो जाती है, तो इसी स्थिति को वह व्यक्ति ‘समय’ के नाम से कह देता है। “कि मेरा समय अच्छा चल रहा है।” और जिसकी इच्छा पूरी नहीं हो पाती, वह कहता है, कि “मेरा समय बुरा चल रहा है। यह सिर्फ कथन मात्र है कि “समय अच्छा है, या बुरा है। वहां समय अपनी ओर से अच्छाई बुराई कुछ भी नहीं करता। क्योंकि वह तो जड़ होने से कुछ जानता ही नहीं, जिसके कारण वह किसी व्यक्ति का कुछ अच्छा कर सके, और किसी का कुछ बुरा कर सके।”इसलिए इसमें समय की कोई विशेषता नहीं है, फिर भी आलंकारिक रूप से, या गौण कथन के रूप में ऐसा कह दिया जाता है।

वास्तव में, जब व्यक्ति को मनचाही वस्तुएं मिल जाती हैं, तब उस व्यक्ति पर, उन वस्तुओं की प्राप्ति का प्रभाव पड़ता है। तब व्यक्ति सुख का अनुभव करता है, और ऐसा कह देता है, कि “मेरा समय बहुत अच्छा चल रहा है।” ऐसा कथन वास्तविक न होने से, ‘गौण कथन’ कहलाता है।”

भाषा विज्ञान के शास्त्रों में दो प्रकार के कथन बताए गए हैं। एक ‘मुख्य कथन’ और दूसरा ‘गौण कथन’। जैसे कभी कभी लोग कहते हैं, कि *”रेलगाड़ी दिल्ली स्टेशन पर पहुंच गई.”* यह मुख्य कथन है, वास्तविक कथन है। और जब कुछ लोग इसी बात को ऐसे कहते हैं, कि पानीपत आ गया, सोनीपत आ गया, दिल्ली आ गई।” यह गौण कथन है, अवास्तविक कथन है। *”क्योंकि तब वहां पर न पानीपत आया, न सोनीपत आया, न दिल्ली आई। सभी स्टेशन वहीं खड़े हैं, रेलगाड़ी चलकर पानीपत, सोनीपत और दिल्ली आई।” फिर भी ऐसा कह सकते हैं। इस कथन को ‘गौण कथन’ कहते हैं, और यह व्यवहार में स्वीकृत है।

इस तरह के प्रयोग शास्त्रों में भी मिलते हैं। जैसे, नदी का किनारा गिरना चाहता है। किनारा जड़ वस्तु है। उसमें कोई इच्छा नहीं है। फिर भी ‘गौण कथन’ के रूप में ऐसा कह दिया जाता है, कि नदी का किनारा गिरना चाहता है।” भाव यह है कि *”किनारा गिरने वाला है। क्योंकि वहां की मिट्टी गल चुकी है।”इसी प्रकार से, हमारे स्टूडियो की घड़ी के अनुसार अब 8:00 बजना ही चाहते हैं।” यह सब ‘गौण कथन’है। इसी प्रकार का यह कथन भी है कि आजकल मेरा समय अच्छा चल रहा है, और मेरा समय बुरा चल रहा है.

ठीक है, गौण कथन को भी हम स्वीकार करते हैं। परंतु यदि गौण कथन ही करना हो और यह कहना भी हो, कि “मेरा समय बहुत अच्छा चल रहा है.। तो इस समय को अच्छा कहने के लिए, समय को कुछ अच्छा बनाना भी चाहिए। आपके 24 घंटे में सबसे अधिक अच्छा समय वही है, जब आप ईश्वर से बात करें।”

क्या कारण है? जब आप कभी किसी बड़े अधिकारी से बात करते हैं, तो उससे आपको अनेक लाभ होते हैं, उस से बहुत सी सुविधाएं मिलती हैं, सुरक्षा मिलती है, बातचीत करके बहुत आनंद भी मिलता है, कि “मैं कलेक्टर साहब से बात कर रहा हूं। इसी प्रकार का आनंद ईश्वर से बात करके भी मिलता है। तो जैसे आप कलेक्टर साहब से, DSP साहब से बात करने के लिए उत्सुक होते हैं, लालायित रहते हैं। इसी तरह से ईश्वर से बात करने के लिए भी उत्सुक एवं लालायित होना चाहिए।”

कलेक्टर साहब से, DSP साहब से, मिलने और बात करने के लिए तो समय (अपाॅंयटमैंट) भी लेना पड़ता है। ईश्वर से मिलने और बात करने के लिए तो इसकी भी कोई आवश्यकता नहीं है। जब आपके पास फुर्सत हो, आप तभी बात कर सकते हैं। ईश्वर तो 24 घंटे बातचीत करने के लिए उपलब्ध रहता है।” यह कितनी अच्छी सुविधा है, इसका लाभ अवश्य लें।

अपनी व्यस्त दिनचर्या में से कम से कम 15 / 20 मिनट सुबह और 15 / 20 मिनट शाम को ईश्वर के साथ बात अवश्य करें। उस की स्तुति प्रार्थना करें। उसका ध्यान चिंतन मनन करें। अपने मन की बात, अपनी समस्याएं ईश्वर से कहें। और उस समय ईश्वर से आनंद प्राप्ति का अनुभव भी करें।” “आप के जीवन में 24 घंटे में सबसे अच्छा और महत्त्वपूर्ण समय वही होता है। क्योंकि उस समय आप संसार के सबसे बड़े राजा से बात कर रहे होते हैं।”

अपनी समस्याओं को दूर करने के लिए व्यवहार में पूर्ण पुरुषार्थ भी करें। तभी ईश्वर आपकी बात सुनेगा, आपकी समस्या भी हल करेगा, और आपको आनंद भी देगा। स्मरण रहे – ईश्वर पुरुषार्थियों की ही सहायता करता है, आलसियों की नहीं।” “यह उसका अनादि काल से नियम है, और अनंत काल तक रहेगा। क्योंकि ईश्वर अपने नियमों को कभी भी भंग नहीं करता *ज्योतिष कुमार*

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