अब तेजी से तवांग पहुंचेगी सेना, बिछा सड़कों और सुरंगों का जाल, 1962 में यहीं से घुसा था चीन Now the army will reach Tawang fast, a network of roads and tunnels laid, China had entered from here in 1962
नई दिल्ली. आजादी के महज पंद्रह साल बाद ही हमारे पड़ोसी चीन ने हम पर एक जंग थोप दी थी. 1962 में जो जंग लड़ी गई उसमें भारत हारा जरूर, लेकिन उसके बाद से भारत को अपनी कमियों के बारे में बेहतर तरीके से पता चल गया था. लंबे समय तक देश का सुदूर उत्तर पूर्व विकास के मामले में वंचित रहा. हालात ऐसे थे कि अरुणाचल की राजधानी इटानगर (Itanagar) से अगर तवांग (Tawang) जाना हो तो वो भी असम (Assam) के तेजपुर से होकर गुजरना पड़ता था. 446 किलोमीटर की इस दूरी को पूरा करने में तकरीबन 12 घंटे का समय लगता था, लेकिन अब सीधा इटानगर से तवांग तक की दूरी 5 से 6 घंटे कम हो जाएगी. इससे स्थानीय लोगों को भी राहत मिलेगी, साथ ही भारतीय सेना को तेजी के साथ बॉर्डर इलाकों में पहुंचने में मदद मिलेगी.दरअसल अरुणाचल में तवांग सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण इलाका है. 1962 में चीन इसी तरफ से भारत में घुसा था. पहले तवांग तक पहुंचने के लिए सिर्फ एक ही रास्ता हुआ करता था. लिहाजा अब तवांग पहुंचने के लिए कई वैकल्पिक रास्ते तैयार हो रहे हैं. अगले दो सालों में एक और वैकल्पिक रास्ता तैयार हो जाएगा, जिससे LAC तक पहुंचने के लिए सेना को भी दूसरा रास्ता मिल जाएगा. अभी टेंगा से आगे तवांग तक पहुंचने के लिए सेंट्रल एक्सिस जो कि बॉमडिला और सेला पास से होते हुए जाता है. इस एक्सिस पर कई टनल का काम जारी है, जिसमें एक निचिपु टनल भी है.BRO के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर बताते हैं कि ये टनल इस रूट के भूस्खलन और घने कोहरे के चलते होने वाली दिक्कतों को दूर कर देगा. फिलहाल, 500 मीटर लंबी इस टनल खोदने का काम आधे से ज्यादा पूरा हो चुका है. सिंह के मुताबिक, एक ऑल वेदर टनल है, जिससे साल के बारह महीने सेना के काफिले को कनेक्टिविटी मिल पाएगी और इस टनल से 6 किलोमीटर का सफर कम हो जाएगा. इस टनल को ड्रिल एंड ब्लास्ट पद्धति से बनाया जा रहा है. तकरीबन 5600 फीट की ऊंचाई पर बन रहा टनल डबल लेन है और उसके अंदर दोनों तरफ फुटपाथ भी तैयार किए जाएंगे, जिसे एस्केप रोड की तरह इस्तेमाल में लाया जा सकता है.इसके अलावा तवांग और उसके आगे बुमला तक पहुंचने के लिए दूसरा रास्ता वेस्टर्न एक्सेस भी तैयार किया जा रहा है. इस पर बड़ी तेजी से काम चल रहा है जो अगले दो साल में पूरा होने की उम्मीद है. ये रास्ता टेंगा से होते हुए शेरगांव और वहां से तवांग को जाएगा. पूरे इलाके में तीन टनल और 22 ब्रिज पर काम चल रहा है. इस समय पूरे देश में सीमावर्ती राज्यों में कुल 272 से ज्यादा रोड पर काम जारी है, जिनमें एलएसी से सटे सीमावर्ती इलाकों में सबसे ज्यादा रोड तैयार की जा रही है.
अरुणाचल प्रदेश में सबसे ज्यादा 64 रोड पर काम चल रहा है, तो जम्मू कश्मीर में 61 और लद्दाख में 43 सड़कों पर काम जारी है. कई पर काम पूरा भी हो चुका है. इन सड़कों में ज्यादातर ऑल वेदर रोड हैं, जो कि हर मौसम में सेना और स्थानीय निवासियों के इस्तेमाल में लाई जाने वाली होंगी. इन सड़कों को बनाते हुए इस बात का पूरा ध्यान रखा जा रहा है कि भारतीय सेना के भारी भरकम साजों सामान को आसानी से कम समय में बॉर्डर तक पहुंचाया जा सके. हाल ही में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने असम जाकर उत्तर पूर्व की 12 सड़कों को देश को समर्पित किया था, जिसमें 9 अरुणाचल प्रदेश की हैं. चीन को हमेशा से इस बात का फायदा मिलता है कि उसके इलाके में तिब्बत के पठार हैं और वहां पर सड़कों का निर्माण आसान है और वो बड़ी तेजी से भारतीय सीमा तक पहुंच सकता है, लेकिन अब भारत ने भी अपने एलएसी इलाके पर विषम परिस्थितियों के बावजूद अपने को पूरी तरह से तैयार कर लिया है कि हथियार और रसद को सड़क से जरिए एलएसी के फॉरवर्ड लोकेशन तक आसानी से पहुंचाया जा रहा है.