छत्तीसगढ़राजनांदगांव

भक्त मां कर्मा जयंती पर आप सबको ढेर सारी बधाई शुभकामनाएं – शिव वर्मा

राजनांदगांव / जिला भाजपा पिछड़ा वर्ग के जिलाध्यक्ष पार्षद दल के प्रवक्ता शिव वर्मा ने कहा कि श्रीकृष्‍ण की भक्त माता कर्मा का जन्म चैत्र कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी को साहू परिवार में हुआ था। बाल्यकाल में ही वह श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहकर उनके भजन गाती थी। उसके मनोहर गीत सुनकर भक्तागण झूमने लगते थे। माता की कथा हमें कई रूप में मिलती है। उनके पिता का नाम जीवनराम डूडी या राम साहू था। बड़ी होने पर पिता ने कर्मा का विवाह प्रसिद्ध साहूकार के पुत्र पदमजी साहूकार के साथ कर दिया। एक दिन माता कर्मा गृह्कार्यों से निवृत हो श्री कृष्ण भगवान की भक्ति में आंखे बंद कर भजन गा रही थी कि तभी उनके पति ने आकर सिहांसन से भगवान की मूर्ति को हटा कर छिपा दिया और स्वयं भी वहां से हट गए। कुछ समय पश्चात् जब कर्मा ने नेत्र खोले तो मूर्ति सिहांसन पर न देख बहुत घबराई और मूर्छित होकर गिर गई। जब उसे होश आया तो उसके पास ही बैठे पति को देख कर उठ खड़ी हुई और पति के चरणों में गिरकर अत्यन्त विनम्रतापूर्वक बोली- “प्राणनाथ! उस कृपालु भगवान, जो सबकी रक्षा करते हैं, की मूर्ति सिहांसन से गायब हो गई हैं। कर्मा की यह दशा देखकर उनके पति को अपने किए कृत्य पर पछतावा हुआ और उन्होंने क्षमा मांगी और मूर्ति को पुन: स्थापित करते हुए बोले कि ये लो मूर्ति, किन्तु प्रिय मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम दिन रात भगवान की भक्ति करती हो, भजन गया करती हो। क्या तुम्हें उनके प्रत्यक्ष दर्शन मिले हैं? पति की बातों को ध्यान से सुनकर कर्मा ने समझाते हुए कहा- “नाथ! ईश्वर बड़ा दयालू है। उसकी कृपा से ही संसार के सभी प्राणी भर पेट भोजन पाते हैं। वह अपने भक्तों कभी निराश नहीं करते और दर्शन भी अवश्य देते हैं। किन्तु परीक्षा करने के पश्चात्। अभी मेरी तपस्या पूर्ण नहीं हुई है। मुझे विश्वास है की भगवान दर्शन अवश्य देंगे। भक्त कर्मा के करुण क्रंदन को सुनकर भगवान् श्री कृष्णजी स्वयं को रोक न सके और तुरंत ही दौड़ पड़े। कर्मा को एक अभूतपूर्व मधुरवानी सुनाई दी- “भक्त कर्मा तू इतनी दुखी न हो। आना जाना तो इस संसार का क्रम है। इसे रोका जाना उचित नहीं। इस संसार में जो भी आता है, एक न एक दीन उसे जाना ही अवश्य होता है। यही संसार है। जाओ, अपने पति का क्रिया कर्म करो। अब तुम्हारा पति के प्रति यही धर्म है। माता कर्मा अपने पति के साथ ही सती होना चाहती थी परंतु श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया और बोले, ‘कर्मा तू अभी गर्भवती है और गर्भवती नारी का सती होना महान पाप है। जाओ अपने पति का क्रिया-कर्म करो और शेष जीवन भक्ति भाव से धैर्यपूर्वक व्यतीत करो। मैं तुम्हें जगन्नाथपुरी में साक्षात् दर्शन दूंगा। वह श्रीकृष्‍ण के आदेशानुसार जगन्नाथपुरी के मार्ग पर चल पड़ी। रात भर वह कितनी दूर निकल गई, उसे कुछ ज्ञात नहीं। दूसरे दिन प्रात: काल कर्मा नित्यकर्म से निवृत हो भगवान् का भजन कर पुनः आगे ही और चल दी। मार्ग में वह क्षुधा से पीड़ित होने लगी किन्तु खाने को उनकी पोटली में कुछ न था। केवल थोड़ीसी खिचड़ी पुरी में भगवान् का भोग लगाने के उद्देश्य से उसकी पोटली में बंधी थी। अंत में जब भूख असह्य हो गई तो उन्होंने वृक्षों की पत्तियां तोड़कर खायीं और फिर आगे जगन्नाथपुरी की और भगवान् के दर्शन हेतु चल दी। पैदल चलते चलते कर्मा को रात हो गई वह एक पेड़ के निचे लेट गई। वह लेते हुए सोचने लगी, भगवान्! आपने जगन्नाथपुरी में दर्शन देने का विश्वास दिलाया था किन्तु पुरी तो यहां से न जाने कितनी दूर है और मुझे मार्ग भी ठीक से मालूम नहीं है। ऐसी दशा में वहां कब और कैसे पहूचुंगी। प्रभु! अब तो बस आपका ही सहारा है। कुछ भी हो जाए अब मैं लौटूंगी नहीं। इस प्रकार भगवान् के दर्शन हेतु दृढ़ प्रतिज्ञा करते हुए कर्मा सो गई। यह भगवान का चमत्कार ही था कि जब उसकी आंख खुली तो जगन्नाथपुरी था। उसने आश्चर्य चकित हो अपने चारों और देखा और सोचने लगी कि मैं यहां कैसे आ गई हूं? मुझे यहां कौन लाया है और यह कौनसा स्थान है? उसने वहां के निवासियों से पूछा। वहां के लागों के बताने पर जब उसे यह पता चला की यह जगन्नाथपुरी है तो उसे भगवान् की माया समझते देर न लगी और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।  भगवान् के भजन गाती हुई कर्मा भगवान् जगन्नाथजी के विराट मंदिर में जा पहुंची। उस समय मंदिर में भगवान् की आरती चल रही थी। पुजारियों की टोलियां और सेठजन मंदिर में प्रवेश कर रहे थे। कर्म भी मंदिर में जाना चाहती थी, परंतु उसके फटे पुराने वस्त्र देख द्वारपाल ने उसे मंदिर में जाने से रोक दिया।  भगवान् की मूर्ति को मंदिर में अपने स्थान से गायब देखकर वहां के पुजारी और ब्राह्मणों में हड़कंप मच गया। लोगों को मूर्ति की खोज में दौड़ाया गया। शीघ्र ही मूर्ति के समुद्र तट पर पहूंचने का समाचार पूरे नगर में फैल गया। सभी लोग भगवान् के इस अदभूत चमत्कार को देखने के लिए चल पड़े और देखते ही देखते समुद्र तट पर अपार जन समूह एकत्र हो गया। इतना कहकर कर्मा श्रीकृष्ण भगवान् के चरणों में गिर पड़ी और सदा के लिए वैकुंठ लोक चली गई। तभी से पुरी में श्रीजगन्नाथ भगवान् को सर्वप्रथम, मां कर्मा की खिचड़ी का ही भोग लगाने की परम्परा है ।

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