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सिटी बसों का दम निकालकर एजेंसी का संचालन से इंकार, The agency refused to operate the city buses

नई प्रक्रिया के बाद ही अब मिलेगी लोगों को सुविधा
भिलाई /  सिटी बसों का दम निकालने के बाद ठेका एजेंसी ने इसके संचालन से हाथ खड़े कर दिए हैं। भिलाई नगर निगम सिटी बस संचालन के लिए अधिकृत ठेका एजेंसी को कभी भी ब्लेक लिस्टेड कर सकती है। इसके साथ ही भिलाई-दुर्ग के लोगों को सस्ते व सुन्दर सफर के बेहतर विकल्प की सुविधा प्राप्त करने नये सिरे से होने वाली प्रक्रिया का इंतजार करना पड़ेगा।
कोरोना महामारी ने भिलाई-दुर्ग में सस्ते व सुन्दर सफर के विकल्प के रूप में लोकप्रिय रही सिटी बसों की सुविधा को छीन लिया है। निगम के जिम्मेदार अधिकारियों की मानें तो सिटी बसों का संचालन कर रही ठेका एजेंसी ने अब आगे काम करने के प्रति हाथ खड़े कर दिए हैं। ऐसे में अब निगम प्रशासन के पास ठेका एजेंसी को ब्लेक लिस्टेट करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता बचता नहीं है। अब दुर्ग जिले में नये सिरे से प्रक्रिया के बाद ही सिटी बसों की सडक़ पर वापसी संभव हो सकती है।
गौरतलब रहे कि वर्ष 2015 में केन्द्र सरकार की अर्बन ट्रांसपोर्ट योजना के तहत भिलाई-दुर्ग में सिटी बसों का संचालन शुरू हुआ था। भिलाई-दुर्ग के लिए 37 करोड़ खर्च कर 70 बसों का लाया गया था। इसमें कुछ-कुछ राशि सिटी बस की सुविधा वाले निकायों को भी देना था। लेकिन शिवाय भिलाई निगम के सिटी भी निकाय ने राशि नहीं दी। भिलाई निगम ने कुल 10 करोड़ रुए इस परियोजना के लिए दिए थे। बावजूद इसके 70 में से 56 बसों का परिचालन ही विभिन्न रूट पर होता रहा। सिटी बस परिचालन का ठेका दुर्ग-भिलाई ट्रांजिट प्रायवेट लिमिटेड को दिया गया।
यह कहना गलत नहीं होगा कि दुर्ग-भिलाई ट्रांजिट प्रायवेट लिमिटेड ने सिटी बसों को अपनी कमाई का जरिया बनाकर दम निकाल दिया। समय-समय पर होने वाले जरुरी मेंटेनेंस को नजर अंदाज करने से सडक़ पर दौड़ रही 56 बसें पुरी तरह से कंडम हो गई। वहीं 13 बस परमिट जारी नहीं होने की वजह से डिपो में खड़ी-खड़ी कंडम हो गई। जबकि एक बस को जामुल के पास दुर्घटना के चलते आक्रोशत भीड़ ने जला दिया था।
यहां पर यह बताना भी जरुरी है कि गत वर्ष मार्च के अंतिम दिनों में कोरोना संक्रमण के चलते घोषित पहले लॉकडाउन से ही सिटी बसों का परिचालन पूरी तरीके से बंद है। खास बात यह है कि कोरोना काल से पहले ही ज्यादातर सिटी बसें कंडम होने के कगार पर पहुंच चुकी थी। ऐसी बसें पूरे कोरोना काल में एक ही जगह पर लंबे समय तक खड़ी रहकर और भी ज्यादा कंडम हो गई है। बताते हैं अगर ठेका कंपनी उन्हीं बसों को फिर से चलाने के लायक बनाना चाहे तो प्रत्येक बस में औसतन डेढ़ से दो लाख रुपए का खर्च अनुमानित है। ठेका एजेंसी ने इस खर्च से हाथ खड़े कर दिया है।
काम नहीं आया कलेक्टर का आदेश
कलेक्टर दुर्ग डॉ सर्वेश्वर नरेन्द्र भूरे का सिटी बसों का परिचालन कोविड 19 की गाइड लाइन के अनुसार फिर से शुरू करने का आदेश काम नहीं आया। कलेक्टर ने दो माह पहले प्रशासनिक बैठक में जनहित की दृष्टि से सिटी बसों का परिचालन पुन: शुरू कराने जिम्मेदार अधिकारियों को निर्देशित किया था। बताते हैं जिसके बाद ठेका एजेंसी पर अधिकारियों ने दबाव भी बनाया लेकिन सिटी बसों के अनुपयोगी हो जाने और मरम्मत में लगने वाले खर्च को वहन कर पाने में बेबस बताकर ठेका एजेंसी ने हाथ खड़े कर दिए।

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